अपने ही घर में घिर गए हैं ओम प्रकाश राजभर, जहूराबाद से मिल सकती है करारी हार

कभी योगी सरकार में मंत्री रहे ओम प्रकाश राजभर को अपने ही गढ़ में मुंह की खानी पड़ सकती है. अखिलेश की साइकिल पर सवाल होने के राजभर की राह में कई कांटे खड़े हो गए हैं. यूं कहा जाए कि जहूराबाद सीट पर उनका समीकरण बिगड़ रहा है, तो गलत नहीं होगा.

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Feb 11, 2022, 08:14 PM IST
  • ओम प्रकाश राजभर की मुसीबतें बढ़ी
  • अपनी ही सीट ना हार जाएं राजभर
अपने ही घर में घिर गए हैं ओम प्रकाश राजभर, जहूराबाद से मिल सकती है करारी हार

नई दिल्ली: ओम प्रकाश राजभर ने भले ही गाजीपुर की जहूराबाद विधानसभा से अपना नामांकन भर दिया हो, लेकिन इस बार उनकी राह आसान नहीं होगी. इसकी एक या दो नहीं कई सारी वजह हैं. सबसे बड़ी वजह अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव की करीबी नेता शादाब फातिमा हो सकती हैं. आपको जहूराबाद सीट का समीकरण गहराई से समझना चाहिए.

ओम प्रकाश राजभर की राह नहीं आसान

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया और योगी सरकार में पिछड़ा कल्याण मंत्री रहे ओम प्रकाश राजभर की राह में बड़े-बड़े कांटे आ गए हैं. राजभर ने योगी सरकार और भाजपा गठबंधन से कन्नी काटने के लिए कई सारे बहाने बनाए थे, लेकिन इस बार उनके गले की फांस शादाब फातिमा बन गई हैं.

आखिर ये कैसे और क्यों हुआ इसे समझने के लिए आपको 10 साल पहले हुए विधानसभा चुनाव को याद करना चाहिए. वर्ष 2012 में जहूराबाद विधानसभा से ओमप्रकाश राजभर और सैय्यदा शादाब फातिमा एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे. उस वक्त शादाब फातिमा समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार थी और ओम प्रकाश राजभर अपनी सुभासपा से चुनाव लड़ रहे थे.

उस चुनाव में शादाब फातिमा ने ना सिर्फ जीत हासिल की, बल्कि ओम प्रकाश राजभर की ऐसी दुर्गति हुई कि उन्हें तीसरे पायदान पर रह कर संतोष करना पड़ा था. राजभर के खाते में 48 हजार 865 वोट गए थे, जबकि शादाब फातिमा ने 67 हजार 12 वोट हासिल किए थे.

अखिलेश ने नहीं दिया टिकट को गुस्सा आया

शादाब फातिमा अखिलेश सरकार में मंत्री रही हैं, शिवपाल यादव की करीबी शादाब को उम्मीद थी कि इस बार उन्हें टिकट जरूर मिलेगा. हालांकि उनकी उम्मीदों पर सपा ने पानी फेर दिया. अब यहां आपको ये भी जानना चाहिए कि आखिर शादाब फातिमा की उम्मीदें धराशायी क्यों हुई.

दरअसल, जब चाचा-भतीजा विवाद गहराया था तो उस वक्त शादाब फातिमा ने चाचा के खेमे को चुना था. अब भले ही चाचा-भतीजा एक होकर चुनाव लड़ रहे हो, लेकिन शादाब फातिमा की बगावत की सजा अखिलेश ने दे ही दी. लेकिन अब शादाब फातिमा को गुस्सा आ गया है और उन्होंने ओम प्रकाश राजभर के खिलाफ चुनाव लड़ने का मन बना लिया है.

अब सवाल ये कि क्या शादाब फातिमा निर्दलीय चुनाव लड़ेगी या फिर बसपा उन पर दांव खेलेगी. तो माना ये जा रहा है कि बसपा के हाथी पर सवार होकर वो मैदान में उतर सकती हैं. निश्चित तौर पर यदि ऐसा हुआ तो राजभर को करारी हार झेलनी पड़ सकती है. सवाल ये भी है कि वो कैसे? तो कैसे का जवाब समझने के लिए आपको जहूराबाद सीट पर वोट का गणित और जातीय समीकरण का हिसाब-किताब समझना होगा.

जहूराबाद में कौन-कितना बलवान?

यदि जहूराबाद विधानसभा सीट की बात करें, तो यहां करीब 3 लाख 74 हजार वोटर्स हैं. वर्षों से इस सीट पर सपा और बसपा की टक्कर होती आई है. ये बात और है कि 2017 में मोदी लहर के दौरान जब सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर ने भाजपा का साथ पकड़कर जीत हासिल कर ली थी. इस बार का मुकाबला बेहद अलग और कड़ा होने वाला है.

जातीय समीकरण की बात करें तो एक अनुमान के अनुसार इस विधानसभा में सबसे अधिक दलित वोटर्स हैं. यहां दलित वोटर्स की तादाद तकरीबन 75 हजार है. दूसरे नंबर पर राजभर मतदाता हैं, जिनकी संख्या करीब 67 हजार है. वहीं यहां यादव मतदाताओं की संख्या करीब 45 हजार है. यहां 35 हजार चौहान वोटर्स, करीब 30 हजार मुस्लिम मतदाता और करीब 15 हजार ब्राह्मण वोटर्स हैं.

यहीं से समझा जा सकता है कि यदि शादाब फातिमा को बसपा ने मैदान में उतारा तो ओम प्रकाश राजभर के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है. कहीं न कहीं दलित वोटर्स का झुकाव बसपा की ओर होगा, जिनकी तादाद सबसे अधिक है. इतना ही नहीं, ओम प्रकाश राजभर को लेकर उनके क्षेत्र में भारी नाराजगी भी देखी जा रही है. ज़ी हिन्दुस्तान की जमीनी पड़ताल में हमने आपको बताया भी था.

अपने ही इलाके में कम हुआ ओम प्रकाश राजभर का प्रभाव, क्या बचा पाएंगे अपनी सीट?

ओम प्रकाश राजभर कहते हैं कि योगी सरकार ने पिछड़ा वर्ग के साथ धोखा किया, इसी वजह से उन्होंने भाजपा का साथ छोड़ा. लेकिन अब सपा की पुरानी योद्धा रही शादाब फातिमा के खिलाफ लड़ना और जीत पाना क्या राजभर के लिए आसान होगा? योगी सरकार को उखाड़ फेंकने का दंभ भरने वाले राजभर क्या अपनी ही सीट बचा पाएंगे? इस सवाल का जवाब तो आगामी 10 मार्च को ही मिलेगा.

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