नई दिल्ली: ओमप्रकाश राजभर और आईएएस ऑफिसर संजय खत्री के बीच विवाद भले ही पुराना है, लेकिन इन दिनों यूपी चुनाव में ओमप्रकाश राजभर योगी सरकार को उखाड़ फेंकने का दावा कर रहे हैं. इस बीच वो बार-बार मीडिया के सवालों पर ये कहते नजर आ रहे हैं कि योगी सरकार ने पिछड़ा वर्ग के साथ धोखा किया, इसी के चलते उन्होंने उनका साथ छोड़ा. हालांकि ये जगजाहिर है कि गाज़ीपुर के तत्कालीन डीएम से छिड़ी जंग ही योगी सरकार और राजभर के बीच मनमुटाव की पहली सीढ़ी थी.
डीएम संजय खत्री का गाज़ीपुर वाला प्यार
संजय खत्री को बतौर डीएम गाज़ीपुर में पहली पोस्टिंग मिली थी, अखिलेश यादव की सरकार में ही वर्ष 2016 में उसको चुनाव से ठीक पहले शहर के डीएम का पद मिला. सरकार बदल गई और योगी सरकार के शुरुआती दिनों में ही मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने ही जिलाधिकारी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, धरना और प्रदर्शन होने लगा. इन सबके बीच संजय खत्री का गाज़ीपुर से नाता काफी गहरा हो चुका था, उनकी मोहब्बत की कुछ ऐसी ही कहानी है.
संजय खत्री पिछले कई वर्षों में अलग-अलग पदों पर तैनात रहे, लेकिन जब वो गाज़ीपुर आए तो उनकी मुलाकात उनकी होने वाली जीवनसाथी से हुई. प्यार शायद पुराना था, लेकिन संजय खत्री ने उसे मुकम्मल गाज़ीपुर आने के बाद ही किया. विजयलक्ष्मी की पढ़ाई गाज़ीपुर के ही एक इंटर कॉलेज से हुई. इसके बाद वो उच्च शिक्षा के लिए बाहर चली गईं और फिर दिल्ली में उनकी मुलाकात संजय खत्री से हुई.
दरअसल, दिल्ली में IAS की तैयारी के दौरान संजय कुमार खत्री की मुलाकात विजयलक्ष्मी से हुई थी, उस समय दोनों के बीच एक सहपाठी की तरह ही संबंध थे. खत्री ने इस दौरान UPSC का एग्जाम क्लीयर कर लिया, लेकिन तीन बार कोशिश के बाद विजयलक्ष्मी को परीक्षा में सफलता हासिल नहीं हुई, इसके बाद वो वापस गाज़ीपुर आ गई थी.
जिलाधिकारी बनने के बाद हुई मुलाकात
ये संयोग ही था कि जिलाधिकारी के तौर पर संजय खत्री को गाज़ीपुर में पहली तैनाती मिली, इसी बीच विजयलक्ष्मी अपने पुरानी साथी से मिलने पहुंची. दोनों की इस मुलाकात के बाद पुरानी यादें ताजा हो गईं. मिलने-जुलने और आने-जाने का सिलसिला बढ़ने लगा. कभी व्यक्तिगत काम, तो कभी सामाजिक सरोकार से जुड़े मामले को लेकर वो संजय खत्री के पास जाती रहती थी.
मुलाकात कब प्यार में बदल गई शायद किसी को नहीं पता चला, इसी बीच गाज़ीपुर में ही उनके खिलाफ राजनेताओं ने मोर्चा खोल दिया. कुछ वक्त बाद ही सितंबर 2017 में उनका तबादला रायबरेली कर दिया गया. इसके दो महीने बाद ही यानी नवंबर 2017 में उन्होंने विजयलक्ष्मी से शादी रचा ली.
संजय खत्री की शादी के बाद ये अफवाहें उड़ने लगी कि डीएम ने एक फरियादी से शादी कर ली. हालांकि कुछ वक्त बाद उन्होंने खुद इस बात की जानकारी सभी को दी कि विजयलक्ष्मी फरियादी नहीं बल्कि उनकी सहपाठी थी. उन्होंने बताया कि वो उन्हें करीब 7-8 सालों से जानते थे. उनकी विजयलक्ष्मी से मुलाकात दिल्ली में हुई थी, उनके ग्रुप में कई सारे सहपाठी थे, विजयलक्ष्मी भी उन्हीं में से एक हैं.
जयपुर के रहने वाले हैं संजय खत्री
विजयलक्ष्मी मूल रूप से गाज़ीपुर शहर के चीतनाथ जेरे किला मोहल्ला निवासी हैं. वहीं यदि संजय खत्री की बात करें तो उनका जन्म राजस्थान के बाड़मेर में 27 जनवरी 1981 को हुआ था. उनके पिता शिक्षा अधिकारी थे, कक्षा आठवीं की पढ़ाई के बाद वो उनके साथ जयपुर चले गए थे. इंटर, बीए और फिर एलएलबी की पढ़ाई के बाद उन्होंने प्रशासनिक सेवा की तैयारी में जुट गए.
पहले संजय का चयन राजस्थान प्रशासनिक सेवा में हो गया. उन्होंने जालौर व पाली में अपनी सेवा दी, इसके बाद वो भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हो गए. उन्होंने ट्रेनी के रूप में उरई (जालौन) में काम किया. प्रतापगढ़ में ज्वाइंट मजिस्ट्रेट रहे और सीडीओ झांसी भी बने.
ओमप्रकाश राजभर से अदावत की वजह
मंत्री रहते ओमप्रकाश राजभर ने जिस डीएम से अदावत मोल ली थी, उस संजय खत्री ने इससे पहले कई ताबड़तोड़ कार्रवाई की थी, बसपा सरकार के कार्यकाल में संजय ने खनन सिंडिकेट पर छापेमारी की, यह सिंडिकेट सीधे पॉन्टी चड्ढा से जुड़ा हुआ था. गाज़ीपुर में तैनाती के वक्त उन्होंने राजभर के समर्थकों के खिलाफ एक्शन लिया था.
दरअसल, प्रापर्टी को लेकर बड़ेसर गांव में एक विवाद हुआ था. इस दौरान कानूनगो, लेखपाल और मंत्री ओम प्रकाश राजभर के समर्थकों के बीच झड़प भी हुए थी. डीएम संजय खत्री ने इस मामले में एक्शन लेते हुए ओमप्रकाश राजभर के समर्थकों समेत जिलाध्यक्ष रामजी राजभर पर मुकदमा दर्ज करवा दिया था. यहीं से डीएम और मंत्री के बीच अदावत की शुरुआत हुई थी.
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संजय खत्री फिलहाल प्रयागराज के डीएम हैं. उन्हें सीएम योगी का करीबी कहा जाता है. ओमप्रकाश राजभर ने तो योगी सरकार को अपना सबसे बड़ा दुश्मन बना लिया है. चुनाव में हुंकार भर रहे हैं और अखिलेश को सीएम बनाने के लिए दमखम झोंक रहे हैं. अब देखना होगा कि क्या राजभर की इस कोशिश से अखिलेश यादव की ताजपोशी होती है या फिर सपना अधूरा ही रह जाता है. सवाल ये भी है कि यदि अखिलेश की सरकार आती है तो क्या राजभर पावर में आकर उस पुराने विवाद को ताजा करते हैं या उसे भुलाकर आगे बढ़ जाएंगे.
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