West Bengal Election: क्या `गोलकीपर` दीदी बंगाल में मोदी की `किक` को रोक पाएंगी?
सवाल ये भी है कि अगर 10 साल के कार्यकाल में ममता दीदी बंगाल को तरक्की की पटरी पर नहीं ला पाईं तो क्या इसके लिए वो बीजेपी को जिम्मेदार ठहरा सकती हैं.
कोलकाता: बंगाल की सियासी जंग में बात अब किक और गोलकीपर तक आ पहुंची है. बीजेपी(BJP) के लगातार आक्रामक तेवरों से तमतमाई ममता दीदी (Mamta Didi) ने खुद को बंगाल की गोलकीपर बताया है. कोलकाता की एक रैली में बोलते हुए दीदी ने कहा कि वो बंगाल को बचाने के लिए गोलकीपर की भूमिका निभाएंगी.
इसका साफ मतलब है कि दीदी बचाव की मुद्रा में हैं और अपने बिखरते कुनबे को बचाने के लिए फिक्रमंद हैं. क्योंकि गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) की स्ट्राइक के बाद अबतक दीदी के कुनबे के करीब 20 नेता टीएमसी को छोड़ चुके हैं.
लेकिन सवाल ये है कि क्या बंगाल को बचाने का ठेका बंगाली मानुष ने दीदी को दिया है? अगर 10 साल के कार्यकाल में दीदी बंगाल को तरक्की की पटरी पर नहीं ला पाईं तो क्या इसके लिए वो बीजेपी को जिम्मेदार ठहरा सकती हैं.
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गोलकीपर बन गईं दीदी
दीदी ने पीएम मोदी (PM Modi) को चुनौती दी है कि आगामी विधानसभा चुनाव में वो बंगाल में गोल करके दिखाएं. वो मोदी और शाह की हर किक को रोकने के लिए तैयार हैं. वो गोलकीपर की भूमिका में बंगाल में खड़ी हो गईं हैं.
उन्होंने बीजेपी से कहा कि वो चाहें तो लेफ्ट और कांग्रेस (Congress) को भी अपनी टीम में शामिल कर सकते हैं. लेकिन दीदी ने कहा कि वो अकेले लड़ेंगी और देखेंगी कि पीएम मोदी (PM Modi) की अगुवाई में बीजेपी कितने गोल कर सकती है.
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बंगाल में कितना स्कोर?
बंगाल में 294 विधानसभा सीटों के लिए अप्रैल में चुनाव होने हैं. सभी दलों ने अपने-अपने लिए गोल सेट कर लिए हैं. बीजेपी जहां 200 गोल मारने का मंसूबा बना चुकी है और बंग विजय के लिए अबकी बार 200 पार का नारा दिया है वहीं टीएमसी यानी दीदी (Mamta Banerjee) की पार्टी जीत की हैट्रिक लगाने के लिए 250 पार का लक्ष्य लेकर चल रही है. लेकिन टीएमसी का 'गोल' काफी कठिन दिखाई दे रहा है.
दीदी की M फैक्टर से जीत-हार
मतुआ समाज (Matua Community) की बढ़ती नाराजगी से दीदी को कम से कम 60 सीटों पर नुकसान झेलना पड़ सकता है जहां मतुआ समाज की 35 से 40 फीसदी वोटर हैं.
मतुआ समाज ने पिछले विधानसभा चुनाव में दीदी का समर्थन किया था और उनकी सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन दीदी उन्हें नागरिकता का अधिकार नहीं दिला पाईं जबकि बीजेपी ने साफ कह दिया है कि कोरोना वैक्सीनेशन प्रोग्राम खत्म होने के बाद मतुआ समाज को नागरिकता देने का काम शुरू हो जाएगा और उनका सम्मान भी किया जाएगा.
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ठाकुरनगर में मां के दरबार में हाजिरी लगाने के बाद शाह ने मतुआ समाज के लिए कई बड़े वादे किए हैं. इनमें ठाकुर नगर रेलवे स्टेशन का नाम बदलने और मतुआ समाज के लिए कई वेलफेयर स्कीम शुरू करने की बात है.
बंगाल की लड़ाई में 'पीर' पराई
फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने पिछले चुनाव में दीदी का खुलकर साथ दिया था और तृणमूल की सरकार बनाने में अहम योगदान दिया था. लेकिन हैदराबादी भाईजान AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी से मिलने के बाद पीरजादा अब बेगाना हो गया है.
फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने अपनी अलग पार्टी बना ली है और चुनाव मैदान में कूदने का ऐलान कर दिया है. उधर हैदराबादी भाईजान ओवैसी भी सत्तू पानी लेकर चुनावी जंग में कूद पड़े हैं. इन दोनों की सीधी एंट्री से बंगाल में दीदी का M फैक्टर बिखरता दिख रहा है जिनका बंगाल की 110 सीटों पर सीधा असर पड़ सकता है.
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दीदी की तुष्टीकरण की राजनीति पर शाह की 'किक'
उधर बीजेपी ने हिंदू और बंगाली वोटर का दिल जीतने के लिए दीदी पर तुष्टीकरण की राजनीति करने का आरोप लगाकर बड़ा उलटफेर करने की पटकथा लिख दी है. जो 'परिबोर्तन' का नारा देकर 10 साल पहले दीदी सत्ता में आई थी. अब वही परिवर्तन उन्हें सत्ता के बियावान में ढकेलता दिखाई दे रहा है.
राम से बैर दीदी की नहीं खैर
सनातन के अपमान को बीजेपी ने बंगाल में बड़ा मुद्दा बना दिया है. बीजेपी बार बार बंगाली मानुष को याद दिला रही है कि मुस्लिम वोटों के लिए दीदी हिंदू संस्कृति के प्रतीक पुरुषों का अपमान कर रही हैं.
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दीदी की पार्टी के मदन मित्रा और कल्याण बनर्जी जैसे नेता सनातन के खिलाफ जहरीली जुबान बोलकर बीजेपी की ही मदद कर रहे हैं. ऐसे में दीदी क्या गोल की रक्षा कर पाएंगी. फिलहाल जो समीकरण और माहौल बंगाल में दिख रहा है उससे तो लगता है कि मोदी की किक को रोक पाना दीदी के बूते की बात नहीं है.
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