नई दिल्लीः पश्चिम बंगाल (West Bangal) का मतुआ समाज जिसकी आबादी करीब 3 करोड़ के आसपास है, उसे वोट का अधिकार तो है, उसके पास आधार कार्ड तो है लेकिन नागरिकता का प्रमाणपत्र नहीं है. ये समाज हिंदुस्तान का हिस्सा है लेकिन हिन्दुस्तानी होने का प्रमाणपत्र इसके पास नहीं है. इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि इस समाज ने सूबे में कांग्रेस की सरकार देखी, वामपंथी सरकार देखी और ममता बनर्जी की टीएमसी सरकार भी देखी.
सुविधाएं मिलीं पर नहीं मिला हक
इस गरीब समाज के लोगों ने सभी पर भरोसा किया लेकिन विकास के नाम पर उसे सुविधाएं तो मिलीं लेकिन हक नहीं मिला, अधिकार नहीं मिला, वो अधिकार जिसका ये समाज हकदार है. मतुआ समाज की बोरो मां यानी मतुआ माता की ठाकुरबाड़ी में प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) से लेकर तमाम दिग्गज नेता सिर झुका चुके हैं.
मतुआ माता ने 2010 में ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) को आशीर्वाद दिया था उन्हें समाज का संरक्षक बनाया था लेकिन नागरिकता की उनकी मांग को ममता सरकार पूरा नहीं कर पाई. अब BJP ने CAA कानून लागू कर इस समाज को नागरिकता का भरोसा दिया है जबकि ममता सरकार सीएए कानून का विरोध कर रही है ऐसे में नागरिकता का मुद्दा बंगाल की लड़ाई में परिवर्तन की हवा बन सकता है.
अमित शाह का 'ठाकुरबाड़ी' प्लान
मतुआ समाज पर BJP की पैनी नजर है, लोकसभा चुनाव में BJP ने मतुआ माता के पोते शांतनु ठाकुर को टिकट दिया और जीत दर्ज की. लोकसभा चुनाव में मिले जनाधार के जरिए बीजेपी विधानसभा चुनाव में भी अपनी वैतरणी पार लगाने की जुगत में है. मतुआ समाज को साधने के लिए ही अमित शाह (Amit Shah) 11 फरवरी को ठाकुरनगर में विशाल जनसभा को संबोधित करने वाले हैं.
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उम्मीद है कि शाह मतुआ समाज को लेकर कोई बड़ा ऐलान कर सकते हैं. 19 दिसंबर के बंगाल दौरे के वक्त उन्होंने सीएए को जल्द लागू करने के संकेत दिए थे, अपने पिछले दौरे में उन्होंने मतुआ समाज के घर खाना खाकर राजनैतिक बिसात बिछा दी थी, गुरुवार को ठाकुरनगर में मतुआ समाज को संबोधित करने से पहले अमित शाह मतुआ समाज के मंदिर में पूजा-अर्चना भी करेंगे. BJP के प्लान ठाकुरबाड़ी से ममता बनर्जी टेंशन में हैं.
मतुआ समाज क्यों है अहम ?
मतुआ समाज की अहमियत बंगाल की सभी पार्टियां समझ रही हैं, भले ही आप इस समाज को शरणार्थी कहें या आदिवासी कहें, लेकिन आज ये समाज बंगाल की सियासत की धुरी बन चुका है. मतुआ संप्रदाय की शुरुआत 1860 में बंगाल में समाज सुधारक हरिचंद ठाकुर ने की थी, विभाजन के बाद हरिचंद ठाकुर का परिवार भारत आ गया था. हरिचंद ठाकुर के परपोते प्रथम रंजन ठाकुर ने इस समाज के उत्थान का जिम्मा उठाया, उनकी पत्नी बीणापाणि देवी को मतुआ माता कहा जाता है जिन्होंने शरणार्थियों की सुविधा के लिए ठाकुरगंज नाम की बस्ती बसाई थी, उन्होंने समाज को एकजुट किया है.
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आज मतुआ माता नहीं हैं लेकिन नागरिकता की अपनी अहम मांग को लेकर ये समाज अब मुखर है क्योंकि नागरिकता नहीं मिलने की वजह से वो सरकारी नौकरियों से दूर है. पिछले दिनों इस समाज का एक तबका गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) से मिल चुका है. बंगाल में मतुआ समाज का प्रभाव करीब 40 विधानसभा सीटों पर है, जबकि 10 लोकसभा सीटों पर उसका वोट प्रतिशत 30-40 फीसदी है. यानी जिस भी पार्टी को ये वोटबैंक जाएगा उसे बंगाल का सत्ता की चाबी मिलनी तय है.
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मतुआ समाज ने ममता बनर्जी को पूरा समर्थन दिया लेकिन नागरिकता की मांग पूरी नहीं होने से ये समाज खुद को ठगा महसूस कर रहा है, अब देखना ये है कि भगवा की परिवर्तन यात्रा से मतुआ समाज की जिंदगी परिवर्तित होती है या नहीं.
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