नई दिल्ली: संगीत ऐसा जो पैरों को थिरकने पर मजबूर कर दे, संगीत वो जो तन में तरंगे और मन में उमंगे भर दे. आज के दौर में कम ही ऐसा संगीत सुनने को मिलता है. लेकिन अगर आप भी म्यूजिक का ऐसा ही जादू महसूस करना चाहते हैं, तो इसके लिए बप्पी लाहिरी (Bappi Lahiri) के गानों से बेहतर कोई विकल्प हो ही नहीं सकता.
डिस्को किंग बने बप्पी दा
डिस्को किंग के नाम से मशहूर बप्पी दा ने पूरी फिल्म इंडस्ट्री के सामने डिस्को गानों की एक सटीक परिभाषा कायम की. जिस दौर में लोग रोमांटिक म्यूजिक में डूबे हुए थे उस समय बप्पी दा ने सभी को अपनी डिस्को की धुन पर ऐसा नचाया कि आज भी लोग खुद को रोक नहीं पा रहे हैं. 70 के दशक में अपने करियर की शुरुआत करने वाले बप्पी दा जादू 80 के दशक तक हर शख्स पर चल चुका था.
संगीत घराने में हुआ था जन्म
बप्पी दा जन्म पश्चिम बंगाल में एक संगीत घराने में हुआ था. 27 नवंबर, 1952 को बंगाली सिंगर अपरेश लाहिरी के घर एक बेटे ने जन्म लिया. नाम रखा गया अलोकेश लाहिरी.
उनकी मां बांसुरी लाहिरी भी अपने जमाने की मशहूर संगीतकार थीं. परिवार में हर समय संगीत की धुनें सुनने वाले अलोकेश को भी इससे बहुत लगाव हो गया. माता-पिता ने भी सिर्फ 3 साल की उम्र में उन्हें तबला सिखाना शुरू कर दिया.
19 की उम्र में हिन्दी सिनेमा में दिया म्यूजिक
अलोकेश को संगीत की शिक्षा अपने माता-पिता से ही मिली. उन्होंने अपने सिंगिग करियर की शुरुआत बंगाली फिल्मों से की. धीरे-धीरे बप्पी लाहिरी के नाम से मशहूर हुए इस बच्चे ने सिर्फ 19 साल की उम्र में ही बॉलीवुड में नाम कमाने के लिए कोलकाता छोड़ दिया. उन्होंने पहली बार 1973 में हिन्दी फिल्म 'नन्हा शिकारी' नाम की फिल्म में संगीत दिया.
मुश्किल दौर में बनाई पहचान
देखते ही देखते बप्पी दा इंडस्ट्री में राज करने लगे. उनका म्यूजिक जितना अलग था, लोगों के बीच पहचान भी उन्होंने उतनी ही अलग बनाई. बप्पी दा उस समय उभरकर आगे जब पूरी फिल्म इंडस्ट्री में आर डी बर्मन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और राहुल देव बर्मन जैसे म्यूजिक डायरेक्टर्स का डंका बजता था. इसके बावजूद बप्पी दा ने कभी किसी के सामने खुद को कमजोर नहीं पड़ने दिया.
लगा था म्यूजिक चोरी का आरोप
एक वक्त वो भी था जब आलोचकों ने बप्पी दा के म्यूजिक पर चोरी का आरोप लगा डाला था. उस दौर में कहा जाने लगा था कि बप्पी लाहिरी विदेशी धुनों को चुराकर लोगों के बीच पेश करते हैं. हालांकि, इन आलोचनाओं का उन पर कभी कोई फर्क नहीं पड़ा. बप्पी लाहिरी ने हमेशा सिर्फ इस बात पर ध्यान दिया कि वह कैसे अपने काम को और निखार सकते हैं. शायद यही कारण था कि कुछ ही वक्त में बप्पी लाहिरी को 'डिस्को किंग' कहा जाने लगा.
हर उम्र के लोग बने दीवाने
कई दौर बदले, रंग-रूप बदले, लेकिन बप्पी लाहिरी का चार्म कभी कम नहीं हुआ. बप्पी दा इकलौते ऐसे सिंगर रहे हैं जिन्होंने हर उम्र के लोगों के दिलों में राज किया है. उनके गाने बच्चों से लेकर बड़े-बूढ़ों तक हर किसी को लुभाते हैं. उन्होंने जो जादू 70 और 80 के दशक में चलाया था, वही खूबसूरती और जोश उनके म्यूजिक में आज भी दिखता है.
नए दौर में भी किया कमाल
2011 में रिलीज हुई फिल्म 'डर्टी पिक्चर' का उनका गाना 'ऊह ला ला ऊह ला ला' ने लोगों को हैरान कर दिया था. क्योंकि सालों बाद भी बप्पी लाहिरी के गानों में वही यूनिकनेस और ताजगी दिखेगी यह किसी ने सोचा भी नहीं होगा. उनका ये गाना भी सुपरहिट साबित हुआ था. युवा उनसे प्रभावित होकर आज भी उनके गानों को नए रूप में पेश कर रहे हैं. 1989 में आई फिल्म थानेदार का गाना 'तम्मा तम्मा' तो सभी को याद होगा, जिसे 'बद्रीनाथ की दुल्हनिया' में रीक्रिएट किया गया.
हमेशा के लिए कह दिया दुनिया को अलविदा
आज बप्पी लाहिरी हमारे बीच न होकर भी अपनी बेहतरीन धुनों और नग्मों के दम पर हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगे. मंगलवार को देर रात मुंबई के एक अस्पताल में बप्पी लाहिरी का निधन हो गया. वह अभी 69 वर्ष के थे. अब उनके अचानक निधन से पूरा देश सदमे में है.
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