Bismillah Khan Death Anniversary: कमरुद्दीन से ऐसे बने थे बिस्मिल्लाह खां, काशी में आज भी बसती है उनकी रूह

Bismillah Khan Death Anniversary: काशी कहे या बनारस...इस शहर के हर नाम में एक अपनापन सा एहसास है. ये शहर कई मायनों में खास है. एक वजह उस्ताद बिस्मिल्लाह खां भी हैं, जिनकी शहनाई की गूंज को वहां गलियां बहुत याद करती हैं. ..गंगा का किनारा आज भी उनकी तलाश में रहता है...  

Written by - Manushri Bajpai | Last Updated : Aug 21, 2023, 09:00 AM IST
  • शहनाई बजाकर देश की आजादी का किया था स्वागत
  • शहनाई को अपनी बेगम बताते थे उस्ताद
Bismillah Khan Death Anniversary: कमरुद्दीन से ऐसे बने थे बिस्मिल्लाह खां, काशी में आज भी बसती है उनकी रूह

नई दिल्ली:Bismillah Khan Death Anniversary: बिस्मिल्लाह खां पर नजीर बनारसी की एक नज्म बिल्कुल सही बैठती है. उन्होंने कहा है- 'सोएंगे तेरी गोद में एक दिन मरके, हम दम भी जो तोड़ेंगे तेरा दम भरके, हमने तो नमाजें भी पढ़ी हैं अक्सर, गंगा तेरे पानी से वजू कर के...' जी हां, उस्ताद गंगा को उतना ही मानते थे, जितना एक हिंदू. वह कहते थे कि गंगा में स्नान करना उनके लिए उतना ही जरूरी है, जितना शहनाई बजाना. गंगा में स्नान करे बिना उन्हें सुकून नहीं मिलता था.

ऐसे मिला बिस्मिल्लाह खां नाम

कमरुद्दीन का जन्म 21 मार्च, 1916 को बिहार के बक्सर जिले में हुआ था. उन्हें बिस्मिल्लाह खान नाम उनके दादा ने दिया था. जानकारी के मुताबिक कमरुद्दीन को उनके दादा ने जैसे ही पहली बार गोद में उठाया उनके मुंह से पहला शब्द ‘बिस्मिल्लाह’ निकला था. उस दिन के बाद से वह उन्हें बिस्मिल्लाह  कहकर पुकारने लगे थे. उस्ताद  संगीत घराने से ताल्लुक रखते थे. उनके चाचा, अली बक्श, काशी विश्वनाथ मंदिर में शहनाई बजाते थे. वह भी उनके साथ मंदिर जाकर शहनाई बजाने लगे और चाचा को ही अपना गुरू बना लिया था.

गंगा को मानते थे मां

बिस्मिल्लाह खां गंगा को मां मानते थे. जैसे उनके लिए पांच टाइम नवाज जरूरी थी, वैसे गंगा में स्नान करना उनके लिए उतना ही जरूरी था. वह रोज अपने गुरू यानी चाचा के साथ सुबह-सुबह गंगा घाट जाते थे. वहां जाकर शहनाई का रियाज करते थे. इसके बाद दोनों चाचा भतीजे की जोड़ी मंदिरों और शादियों में शहनाई बजाने लगे.

फिल्मों में सुनाई दी उनकी शहनाई 

बिस्मिल्लाह खां  एक असाधारण शहनाई वादक थे. उनके जैसा न कोई था....न कोई होगा. वह शास्त्रीय धुनों को बड़ी सहजता से बजाते थे. राजनेता से लेकर अभिनेता तक उनकी शहनाई वादन के मुरीद थे. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इंदिरा गांधी को भी उनकी शहनाई सुनने का बहुत शौक था. बिस्मिल्लाह खां ने कई फिल्मों के लिए भी शहनाई बजाई है. सत्यजीत रे की फिल्म ‘जलसाघर’, हिन्दी फिल्म ‘गूंज उठी शहनाई’ और आशुतोष गोवारिकर की फिल्म ‘स्वदेश’ में भी उनकी शहनाई सुनाई दी है.

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