नई दिल्ली: सुब्बना (Shivamogga Subbanna) कन्नड़ सुगम संगीत यानी लाइट म्यूजिक की दुनिया के बादशाह थे. संगीत में आने से पहले सुब्बना एक वकील के तौर पर काम कर रहे थे साथ ही नोटरी भी थे. दिग्गज कवियों की कविताओं को गीतमाला में पिरोकर सुब्बन्ना ने लोगों तक पहुंचाया. 83 साल की उम्र में दुनिया से विदा कहने वाले शिवमोगा सुब्बन्ना अपने पीछे गानों की अपार संपत्ति छोड़ गए.
दिल का दौरा पड़ने से मौत
कन्नड़ गायक शिवमोगा सुब्बन्ना का देर रात बेंगलुरू के एक अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सुब्बन्ना शहर के जयदेव अस्पताल में भर्ती थे. उनके परिवार में उनके अलावा उनकी पत्नी, एक बेटी और एक बेटा हैं. उनकी बेटी एस. भाग्यश्री द हिंदू कर्नाटक की रेजिडेंट एडिटर हैं.
कैसे हुए प्रसिद्ध
शिवमोगा सुब्बन्ना ने ज्ञानपीठ अवॉर्ड विजेताओं की कविताओं को संगीत दिया और अपने अंदाज में लोगों तक पहुंचाया. सुब्बन्ना पहले कन्नड़ भाषा के प्लेबैक सिंगर थे जिन्हें 1978 में राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया. ये पुरस्कार उन्हें ‘काडू कुडुरे ओडी बानडिट्टा’ के लिए मिला था.
कैसे राग जोड़ बनाते थे संगीत
पेशे से वकील होने के बावजूद उनकी संगीत की समझ बेहद शानदार थी. प्रसिद्ध कन्नड़ कवियों केवी पुट्टप्पा, दा रा बेंद्रे और अन्य की कविताओं के लिए सुब्बन्ना ने राग कंपोज किए. उनकी कविताओं को रागमयी तरीके से आम जनता तक पहुंचाया. राष्ट्रीय पुरस्कार के अलावा उन्हें 2006 में कन्नड़ कंपू पुरस्कार दिया गया, कुवेंपु विश्विविद्यालय से उन्हें डॉक्टरेट भी प्राप्त है.
उनके चाहने वाले आज भी उनकी आवाज को अपने फोन में सहेज कर रखे होंगे. जब भी उन्हें शिवमोगा सुब्बन्ना की याद आएगी वो सुन लिया करेंगे विरह के राग. यही पुंजी उन्होंने जिंदगी भर कमाई और इसी को वो जनता के बीच छोड़कर हमेशा के लिए विदा कह गए.
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