महेंद्र सिंह धोनी.. टिकट कलेक्टर से ट्रॉफी कलेक्टर तक

माही जब मारता है तो अच्छे-अच्छों की सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है. क्योंकि महेंद्र सिंह धोनी सिर्फ एक क्रिकेटर का नाम नहीं है, बल्कि एक पूरा सफर है रेलवे के टिकट कलेक्टर से क्रिकेट के ट्रॉफी कलेक्टर तक का..

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Jul 7, 2020, 06:32 PM IST
    • बड़े से बड़े दबाव को चुटकियों में हैंडल करने वाले माही
    • महेंद्र सिंह धोनी का कूल अंदाज बनाता है सबसे जुदा
    • वो शख्सियत, टिकट कलेक्टर से बन गया ट्रॉफी कलेक्टर
महेंद्र सिंह धोनी.. टिकट कलेक्टर से ट्रॉफी कलेक्टर तक

खेल जगत का सबसे कूल क्रिकेटर जिसने हर मुश्किल घड़ी में अपनी सूझबूझ और समझदारी के बूते भारतीय टीम को ना सिर्फ संकट से उबारा बल्कि प्रतिद्वंदियों के दांत खट्टे करके हिन्दुस्तानी क्रिकेट का डंका पूरी दुनिया में बजाया. उस शख्सियत का नाम है महेंद्र सिंह धोनी

टिकट कलेक्टर से ट्रॉफी कलेक्टर तक सफर

आज धोनी का जन्मदिन है. जिसकी जिंदगी में असंभव नाम का कोई भी शब्द नहीं है और धोनी ने उस शब्द का जिक्र कभी नहीं होने दिया. क्योंकि महेंद्र सिंह धोनी सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि एक पूरा सफर है "टिकट कलेक्टर से ट्रॉफी कलेक्टर तक"

क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं बल्कि महेंद्र सिंह धोनी की पूरी जिंदगी है, इस खेल को खुद में उतार लेना और क्रिकेट को ही भगवान मानकर धोनी गुलेल में फंसी उस गोटी की तरह हैं जिन्हें जिंदगी ने पीछे काफी पीछे खींचा और जब धोनी उस गुलेल से निकले तो गोली की रफ्तार से आगे बढ़ते गए. कभी फुटबॉल खेलने वाले धोनी ने कभी ये सोचा ही नहीं होगा कि वो गोलकीपर नहीं बल्कि दुनिया के सबसे बेहतरीन विकेट कीपर बन जाएंगे. एक प्लेटफॉर्म से दूसरे प्लेटफॉर्म पर भाग-भागकर टिकट कलेक्ट करने वाले माही ने कभी सोचा ही नहीं होगा कि वो भारत के एक दिन दो-दो क्रिकेट वर्ल्ड कप दिलवाएंगे.

फुटबॉल, क्रिकेट और रांची के सिंघाड़े

महेंद्र सिंह धोनी स्कूल में फुटबाल खेलते थे और विकेटकीपिंग करते थे. लेकिन उनके गेंद लपकने के तजुर्बे को देखकर स्पोर्ट टीचर ने क्रिकेट खेलने की सलाह दी, वो विकेट कीपर बन गए और देखते ही देखते क्रिकेट उनकी जिंदगी में उतरने लगा. उस वक्त क्रिकेट उनकी जिंदगी का सबसे रोचक हिस्सा था, धोनी के बचपन वाले दोस्त बात-बात पर चाय और सिंघाड़े (समोसे) की शर्त लगा लिया करते थे.

इतना ही नहीं बचपन में धोनी ने एक बार जिद करके सचिन तेंदुलकर का पोस्टर खरीदकर घर में लगया था, इसके लिए उनके पिता उनसे नाराज भी हो गए थे. सबसे पसंदीदा क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को टीवी पर देखने वाले धोनी ने कभी सोचा ही नहीं होगा कि वो कभी उनके साथ ना सिर्फ खेल पाएंगे बल्कि उनकी कप्तानी में सचिन इंडिया के लिए खेलेंगे.

और एक दिन अचानक छोड़ी दी TC की नौकरी

साल 2001 में धोनी की किस्मत ने अजीब सा मोड़ लिया, जब खेल और प्रतिभा को देखते हुए उन्हें स्पोर्ट कोटे से रेलवे की नौकरी मिल गई. रेलवे में महेंद्र सिंह धोनी को उस वक्त 3000 हजार रुपये मिलते थे. खड़गपुर रेलवे स्टेशन उनकी तैनाती हुई, उन्होंने रेलवे की टीम में भी जगह बना ली और क्रिकेट की तरफ आगे बढ़ते रहे. लेकिन दो साल बाद धोनी ने ऐसा रिस्क लिया जिससे उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई. साल 2003 में उन्होंने रेलवे की नौकरी छोड़ दी.

इस बीच क्रिकेटर प्रकाश पोद्दार ने धोनी को खेलते देखा और उनका खेल देखकर वो पूरी तरह सन्न रह गए, उन्होंने धोनी की रिपोर्ट उस वक्त के सेलेक्टर्स बोर्ड के चेयरमेन किरण मोरे तक पहुंचाई.

साल 2004 में पहली बार धोनी ने इंडिया के लिए खेला

धोनी का खेल ही ऐसा था, जो विश्व क्रिकेट में बिल्कुल अलग था, किरण मोरे ने भी धोनी के खेल को देखकर उनके मुरीद हो गए. धोनी के परिश्रम का फल मिलने का वक्त आ चुका था. उस वक्त भारतीय टीम के पास कोई बेहतर विकेटकीपर नहीं था. कभी कभी तो मजबूरी में राहुल द्रविड को कीपिंग करनी पड़ती थी. सेलेक्टर्स ने धोनी का खेल मोहाली में देखा उन्होंने शानदार कीपिंग के साथ आशीष नेहरा की गेंद पर ऐसा हुक किया कि सेलेक्टर्स का दिल पसीज गया और उन्होंने मूड बना लिया कि Dhoni In

ये पारी नहीं होती तो शुरू होते ही खत्म हो जाता सफर

महेंद्र सिंह धोनी ने अपने करियर का पहले वनडे इंटरनेशनल मैच साल 2004 में बांग्लादेश के खिलाफ खेला, लेकिन न जाने धोनी के बल्ले को उस वक्त क्या हो गया था. धोनी उस वक्त कुछ कर ही नहीं पा रहे थे. लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ विशाखापट्टनम में उन्होंने 148 रनों की धमाकेदार पारी से हर किसी का दिल जीत लिया. धोनी खुद मानते हैं कि अगर उस मैच में वो परफॉर्म नहीं कर पाते तो उनका करियर वहीं खत्म हो जाता.

महेंद्र सिंह धोनी ने ना सिर्फ देश का मान बढ़ाया बल्कि क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन के टीम में रहते वर्ल्ड कप जीतने का सपना भी साकार करके दिखाया. धोनी के अंदाज का कोई जवाब ही नहीं.

मुश्किल वक्त में खुद के कंधे पर उठा लेते हैं सारा बोझ

धोनी का बल्ला चलता रहा और भारत का डंका बजता रहा. धोनी मतलब हैलिकॉप्टर शॉट, बच्चे-बच्चे की जुबान पर धोनी का नाम गूंजने लगा. गली-मोहल्ले और छोटे-छोटे क्रिकेट के मैदानों से लेकर दुनियाभर में धोनी का जलवा तूफान से भी तेज बिखर रहा था. लेकिन धोनी की सबसे एक खास बात है, जो उन्हें औरों से बिल्कुल जुदा बनाती है. वो है उनका कूलनेस.. देखते गी देखते धोनी के खेल और विकेटकीपिंग से प्रभावित होकर भारतीय टीम की कप्तानी थमा दी गई और फिर टिकट कलेक्टर ने ट्रॉफी कलेक्टर की ओर अपना कदम बढ़ाना शुरू कर दिया.

महेंद्र सिंह धोनी का कूल अंदाज हर किसी को बेहद पसंद आता है. मुश्किल से मुश्किल घड़ी में टीम को बिखरता देख वो सारा बोझ खुद के कंधे पर उठा लेते हैं और इस बात का किसी को अंदाजा भी नहीं लगने देते हैं कि उनके उपर ज़रा भी दबाव या तनाव है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण साल 2011 का विश्वकप है. जब टीम के दिग्गज बल्लेबाज पवेलियन लौटने लगे और जिस वक्त भारत को एक मजबूत साझेदारी की जरूरत थी तो उस वक्त धोनी खुद बल्ला उठाकर मैदान पर उतर गए. और फिर क्या हुआ उसे पूरी दुनिया ने देखा. यही वजह है कि उनका नाम कैप्टन कूल पड़ गया.

ट्रॉफी कलेक्टर महेंद्र सिंह धोनी का कारनामा

महेंद्र सिंह धोनी को ट्रॉफी कलेक्टर कहने के पीछे बहुत बड़ा लॉजिक है. क्योंकि उन्होंने खुद के लिए नहीं बल्कि भारत देश के लिए एक के बाद एक ट्रॉफी जीतकर देश का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया. माही ने एक-एक करके सारी अनहोनी को होनी में बदल दिया. उन्होंने साबित किया कि धोनी के लिए कुछ भी इम्पॉसिबल नहीं है. आपको धोनी के हर कारनामे से रूबरू करवाते हैं.

  • कैप्टन कूल ने साल 2007 में पहले ICC T-20 विश्वकप में भारत को जीत दिलाई
  • साल 2007-08 में महेंद्र सिंह धोनी ने कॉमनवेल्थ बैंक सीरीज में भारत को जीत दिलाई
  • साल 2011 में ICC वनडे विश्वकप में धोनी ने दुनिया में भारत का डंका बजाया
  • साल 2013 में धोनी की कप्तानी में इंडियन क्रिकेट टीम ने चैम्पियंस ट्रॉफी जीती
  • साल 2013 में ही माही के नेतृत्व में भारत ने बॉर्डर-गावस्कर ट्राफी जीता, जिसमें ऑस्ट्रेलिया को 4-0 से हराया
  • 2 सितम्बर साल 2014 को धोनी ने भारत को 24 सालों के बाद इंग्लैंड में वनडे सीरीज में जीत दिलाई

ऐसी कई ट्रॉफी और उपलब्धियां हैं, देश को लगातार जीत दिलाकर भारतीय क्रिकेट टीम के साथ-साथ महेंद्र सिंह धोनी भी नई ऊचाइयां और कीर्तिमान हासिल कर रहे थे. धोनी की शानदार कप्तानी, बल्लेबाजी और विकेट कीपिंग के दम पर पूरी दुनिया में उनका डंका बजता रहा. इसी बीच साल 2018 में महेंद्र सिंह धोनी चौथे भारतीय क्रिकेटर और ODI क्रिकेट में 10 हजार रन बनाने वाले दूसरे विकेटकीपर बन गए.

बिहार के लिए रणजी ट्रॉफी से अपने क्रिकेट करियर की शुरुआत करने वाले महेंद्र सिंह धोनी ने अपनी दम पर भारत को एक के बाद एक जीत दिलाते चले गए. लेकिन क्या आपको इस बात की जानकारी है कि धोनी ने 16 वर्ष की आयु में ही डबल सेंचुरी ठोक दी थी?

40 ओवर के मैच में धोनी ने लगाया था दोहरा शतक

वो वर्ष 1997 का वक्त था जब एक स्कूल टूर्नामेंट के दौरान महेंद्र सिंह धोनी ने दोहरा शतक ठोक दिया था. बताया जाता है कि ये मैच सिर्फ 40 ओवर का था. जिसमें उन्होंने अपने साथी के साथ मिलकर 378 रनों की पार्टनरशिप की थी. धोनी उस वक्त ग्राउंड पर जब प्रैक्टिस किया करते थे तो छक्के मारकर खिड़कियों के शीशे तोड़ दिया करते थे. जब धोनी खेलने लगते थे तो पूरी रांची का बच्चा बच्चा ये कहता था कि 'माही मार रहा है'

धोनी के फैंस चाहते हैं कि जिस तरह से 2011 का विश्वकप में जीत दर्ज करने के साथ सचिन को क्रिकेट से विदाई दी गई थी उसी तरह साल 2023 में होने वाले विश्वकप के साथ धोनी को क्रिकेट से विदा किया जाए.

धोनी की तपस्या के बारे में जितना बताया जाए शायद इसके लिए शब्द कम पड़ जाएंगे क्योंकि हर वक्त धोनी ने चुनौती को ना सिर्फ स्वीकारा बल्कि चुनौतियों को चुनौती देकर मात देना धोनी की जिंदगी की फितरत बन गई. तभी तो ट्रेन के टॉयलेट के पास बैठ और सो कर सफर करने वाले माही, 625 रुपये की पहली नौकरी करने वाले धोनी और रेलवे स्टेशन पर टिकट कलेक्ट करने वाले महेंद्र सिंह धोनी ने जिंदगी में ऐसी उड़ान भरी कि वो "टिकट कलेक्टर से ट्रॉफी कलेक्टर बन गए".

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