सुशांत के हत्यारों ने मीडिया को अपनी ऊंगलियों पर नचाया!

सुशांत सिंह राजपूत की मौत हो गई, लेकिन अबतक सिनेमा का बुद्धिजीवी गैंग ड्रग्स पर क्यों चुप है? असली कातिल को पकड़ने की मुहिम फीकी पड़ने लगी है, क्योंकि मीडिया को सुशांत की मौत पर लगातार गुमराह किया गया है. तो क्या अंत में सुशांत की हत्या करने वाले भी बच निकलेंगे और सुशांत की मौत पर आत्महत्या बता दिया जाएगा?

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Sep 18, 2020, 06:31 PM IST
  • नशे में 'उड़ते बॉलीवुड' पर क्यों 'मौन व्रत'?
  • ड्रग्स पर बॉलीवुड की चिट्ठी में डबल स्टैंडर्ड?
  • पोल खुलने पर आई, तो मीडिया की खिंचाई?
  • रिया पर 'लाउड', सुशांत पर 'साइलेंट' क्यों?
सुशांत के हत्यारों ने मीडिया को अपनी ऊंगलियों पर नचाया!

मान्यता है कि पत्रकारिता लोकतंत्र का चतुर्थ स्तंभ है, लेकिन सुशांत सिंह राजपूत की हत्या के बाद मीडिया का पूरी तरह से इस्तेमाल किया गया. एक तरह से सुशांत की हत्या में पूरी तरह मीडिया ट्रायल को हथियार बना लिया गया. सुशांत की मौत के तुरंत बाद से ही मीडिया को गुमराह किया जाता रहा. मीडिया कठपुतली की तरह नाचती रही और कातिलों ने पूरा इस्तेमाल किया. ऐसा हम क्यों कह रहे हैं आपको इस मीडिया ट्रायल की एक-एक कड़ियां समझाते हैं.

14 जून, 2020- जब सुशांत को मार डाला

एक Bollywood नाम की दुनिया है, जिसका ठिकाना मुंबई शहर में है और इस शहर को मायानगरी के नाम से भी जाना जाता है. 14 जून को बॉलीवुड में अपनी प्रतिभा के दम पर पहचान बनाने वाले सुशांत सिंह राजपूत की मौत की खबर सामने आती है. कहा जाता है कि सुशांत ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. हालांकि इस बात पर यकीन करना बेहद मुश्किल था, क्योंकि जो भी सुशांत के स्वभाव से वाकिफ था. उसका इस बात पर यकीन कर पाना मुश्किल था कि सुशांत ने खुद से खुद को मार लिया. और यहीं से शुरू होता है, सुशांत की हत्या पर मीडिया ट्रायल..

सुशांत को पागल साबित करने की कोशिश

कहां तक मामले की जांच होती, पड़ताल होती, मुंबई पुलिस ने इस बात पर मुहर लगा दी कि सुशांत ने सुसाइड कर ली. पुलिस को इस बात से नहीं मतलब था कि सुशांत का शव पंखे से लटका हुआ पाया गया भी या नहीं, फांसी लगाने वाला कुर्ते के निशान और गले पर जो निशान हैं वो एक हैं या नहीं, बस पुलिस को शायद ये आदेश मिला था कि जल्द से जल्द इस आत्महत्या का केस बनाकर मामले को रफा-दफा करो. अब मुंबई पुलिस अपने काम में जुट गई. लेकिन असल मोड़ तो तब आया जब सुशांत के हत्यारों ने मुंबई पुलिस का साथ देने के लिए सुशांत के डिप्रेशन की गाथा रच दी.

हर किसी को इसी बात की तलाश थी कि अगर सुशांत ने सुसाइड किया भी तो इसके पीछे की वजह क्या होगी. ऐसे में कुछ लोगों ने सुशांत के ड्रिप्रेशन वाली थ्योरी पर कहानियां लिखनी शुरू कर दी. मीडिया को गुमराह करने का ये पहला तरीका था. मीडिया ने भी इस बात की पड़ताल शुरू की और फिर सुशांत की डीप थिंकिंग को उसका ड्रिप्रेशन बताया जाना शुरू हो गया.

अरे भई.. सुशांत पढ़ा लिखा एक्टर था, उसे इंजीनियरिंग, साइंस, एस्ट्रोनेट की दुनिया में दिलचस्पी थी. सुशांत ने दिल्ली में इंजीनियरिंग की पढ़ाई को ड्रॉप आउट कर दिया और फिर निकल पड़े फिल्मी दुनिया के सितारे बनकर चमकने के लिए.. सुशांत के स्ट्रगल टाइम में न जाने कितनी परेशानियां रही, वो IIFA के बैकअप डांसर से लेकर फिल्मी पर्दे के महेंद्र सिंह धोनी बन गए. लेकिन इन सबके दौरान उन्हें सिर्फ और सिर्फ अपनी उड़ान से प्यार था. तो जब सबसे मुश्किल दौर में सुशांत डिप्रेशन जैसी बीमारी का शिकार नहीं हुए तो भला उनकी डीप सोच से इस बात का तगाजा कैसे लगाया जा सकता है कि वो डिप्रेशन का शिकार थे. इस थ्योरी से ये साफ समझ आता है कि सुशांत को पागल साबित करने की भरपूर कोशिश की गई.

कातिल को बचाने के लिए 'नेपोटिज्म की पहेली'

अब जब सुशांत के डिप्रेशन वाली थ्योरी नहीं जमी, तो दाल गलाने के लिए नेपोटिज्म के मुद्दे को हल्का सा हवा दे दिया गया. फिर क्या था मीडिया ने धड़ाधड़ नेपोटिज्म पर बॉलीवुड के माफियाओं की खटिया खड़ी करनी शुरू कर दी. अब कातिलों को इस बात की खुशी भी थी, कम से कम अभी तक सुशांत केस में हत्या का एंगल सामने नहीं आया है, लेकिन तकलीफ भी इस बात की हो रही थी कि नेपोटिज्म के मामले में हम भी ना नप जाएं. खैर,..

नेपोटिज्म की पहेली खूब बुझाई गई, लेकिन इस बीच सुशांत की हत्या को लेकर ऐसे सवाल उठने लगे. जिन्हें झुठलाया जा पाना लगभग नामुमकिन था.

1). मुंबई पुलिस की लापरवाही

मुंबई पुलिस का क्या कहना.. न जाने पुलिस पर इस केस को लेकर कौन सा दबाव था या ये कहें कि किसने आदेश दिया था कि जल्द से जल्द सुसाइड साबित करो, ऐसे में मुंबई पुलिस ने जांच करने के बजाय अपनी सारी मेहनत इस केस को सुसाइड बनाने में लगा दी और यहीं से शुरू हुआ हत्या का शक..

2). सुशांत के गले के निशान

सुशांत सिंह राजपूत के गले के निशान को देखकर ये समझना आसान हो जाता है कि कम से कम ये निशान कुर्ते का तो नहीं है. सुशांत के गले पर चोट थी, फिर भी पुलिस और डॉक्टरों ने इस बात को छिपाया और इसे सुसाइड बनाते रहे. पोस्टमार्टम में गले पर चोट के निशान का जिक्र तक नहीं किया गया.

3). किसी ने नहीं देखी लटकी बॉडी

सबसे बड़ा सवाल तो ये उठा कि आखिर सुशांत की लटकी हुई बॉडी को किसने देखा? चाबी वाले ने रूम का ताला तोड़ा, लेकिन सामने लटकी डेड बॉडी नहीं देख पाई. सुशांत की बॉडी पंखे से लटकी थी, लेकिन कुर्ते की लंबाई, पंखे की लंबाई, बेड की हाइट और सुशांत का कद अगर जोड़ दिया जाए तो सुशांत का लटककर आत्महत्या करना नामुंकिन है. अब इस झूठ को सच बनाने के लिए मुंबई पुलिस ने सुशांत की हाइट को ही कम बता दिया. ऐसे में ये समझ आने लगा कि कुछ न कुछ गड़बड़झाला है.

मैं सुशांत सिंह राजपूत, मैं खुद से फांसी लगा ही नहीं सकता..!

4). बिहार पुलिस की जांच में बाधा

सुशांत सिंह राजपूत की ड्रीम 50 की लिस्ट अधूरी रह गई. उनका सपना जिसे वो हर कीमत पर पूरा करना चाहते थे. कुछ महीने पहले तक उन्होंने ये साफ किया था कि जब मैं हीरो बनने निकला था, तो लोगों ने मुझे पागल कहा था. लेकिन मैंने कर दिखाया न, इसी तरह ड्रीम 50 को भी जरूर पूरा करूंगा. सुशांत ने आत्महत्या नहीं की है, इसकी जांच करने के लिए जब बिहार पुलिस मुंबई पहुंची तो.. मुंबई पुलिस ने ये किया..... "खेलब ना खेले देब, खेलवे बिगाड़ब" मतलब समझिए, न जांच करेंगे, न जांच करने देंगे और सुसाइड बनाकर रहेंगे.

सुशांत सिंह राजपूत के 'कातिलों' को बचा रही है मुंबई पुलिस? 3 अहम संकेत

5). जूस और ऑनलाइन गेम्स

कभी आपने ये सोचा है कि यदि कोई भी शख्स सुसाइड करने के बारे में सोच रहा है और वो मरने से ठीक पहले एक गिलास जूस पीना चाहेगा या फिर ऑनलाइन गेम खेलेगा. मतलब हद है,

इसी तरह से कड़ियां खुलती गई और पूरे देश में एक लहर से ये आवाज गूंजने लगी कि सुशांत ने आत्महत्या नहीं की है. ज़ी हिन्दुस्तान ने इस बात को सबसे पहले प्रमुखता से उठाई, जब सारी मीडिया नेपोटिज्म और डिप्रेशन की गुत्थी को सुलझाने में जुटी हुई थी, उस वक्त हमने सुशांत की चिट्ठी आपतक पहुंचाई.

मैं सुशांत सिंह राजपूत, मैं आत्महत्या कर ही नहीं सकता..!

लेकिन, मीडिया ट्रायल का सिलसिला यहीं नहीं रुका. अब इस मुद्दे को और उलझाने के लिए रिया चक्रवर्ती का सहारा लिया गया, ताकि सुशांत के कातिल बिल में छिपे रहे और किसी का उस तरफ ध्यान नहीं जाए. ऐसा ही हुआ, रिया पर एक के बाद एक प्रहार होता गया. रिया चक्रवर्ती को सुशांत की हत्यारी के तौर पर पेश किया जाने लगा और फिर वो हुआ जो किसी ने सोचा भी नहीं था. 60 दिनों की जांच में मुंबई पुलिस ने कुछ भी नहीं हासिल किया, जांच के नाम पर केस को गोल-गोल घुमाया. लेकिन CBI के हाथों में केस आते ही, सुशांत की हत्या का ड्रग्स कनेक्शन सामने आ गया.

बॉलीवुड का ड्रग्स कनेक्शन और 'नशेड़ी रूप'

खैर, ड्रग्स कनेक्शन भी एक प्रकार का मीडिया ट्रायल बनने लगा. निश्चित तौर पर बॉलीवुड के ड्रग्स रैकेट का खुलासा होना चाहिए, लेकिन मीडिया को फिर गुमराह किया गया और असली कातिल को पकड़ने की मुहिम फीकी पड़ने लगी. सुशांत के कातिल फिर से अपने आप को सुरक्षित महसूस करने लगे और मीडिया ड्रग, रिया और बॉलीवुड में फंस कर रह गई. मीडिया को और उलझाने के लिए कुछ Bollywood के ठेकेदारों ने अपनी भूमिका का निर्वहन शुरू भी कर दिया है.

खुद को बचाने के लिए चिट्ठी लिखी

बॉलीवुड में ड्रग्स के पाताललोक की हर कड़ी का खुलासा हो रहा है. इससे वो सभी लोग परेशान हैं. जो फिल्म इंडस्ट्री में ड्रग्स कनेक्शन को राज़ बनाए रखना चाहते थे. कुछ फिल्मी सितारों ने रिया केस में मीडिया कवरेज को लेकर चिट्ठी भी लिखी है. चिट्ठी में कहा गया है कि मीडिया ख़बर के पीछे भागे, किसी महिला के पीछे नहीं. लेकिन सवाल ये है कि चिट्ठी लिखने वाले ड्रग्स केस में रिया नेक्शन क्यों नज़रअंदाज़ कर रहे हैं..

बॉलीवुड के जो लोग फिल्मी सितारों के बरसों पुराने ड्रग्स कनेक्शन पर ख़ामोश थे, उन्हें अब नशे में उड़ते बॉलीवुड की मीडिया कवरेज पर गुस्सा आ रहा है.

नशे में 'उड़ते बॉलीवुड' पर क्यों 'मौन व्रत'?

बॉलीवुड के जो लोग सुशांत सिंह राजपूत को बूंद-बूंद ड्रग्स दिए जाने और उनकी मौत पर ख़ामोश थे, अब उन्हें रिया चक्रवर्ती को लेकर मीडिया कवरेज पर गुस्सा आ रहा है.

पोल खुलने पर आई, तो मीडिया की खिंचाई?

बॉलीवुड के ड्रग्स गैंग, सुशांत और रिया को लेकर दोहरा व्यवहार करने वाले बॉलीवुड के कुछ बुद्धिजीवियों ने मीडिया को संबोधित करते हुए एक पत्र लिखा है. पत्र साइन करने वालों में सोनम कपूर, अनुराग कश्यप, शिवानी दांडेकर, जोया अख़्तर समेत करीब 2500 बॉलीवुड से जुड़े लोग और कई संगठन हैं. इन्होंने चिट्ठी में लिखा है.

रिया स्वतंत्र विचारों वाली महिला है, तो मीडिया उनके चरित्र पर सवाल उठा रहा है. सलमान और संजय दत्त के वक्त तो मीडिया का रुख नरम था, लेकिन रिया के केस में ऐसा नहीं है. किसी भी लड़की का चरित्र हनन करना आसान है, असली खबरें दिखाना मुश्किल है. 'विषकन्या' और 'डायन' जैसे शब्दों ने डिप्रेशन की समस्या को पीछे छोड़ दिया है. खबरों के पीछे भागें, किसी महिला के पीछे नहीं.

इस चिट्ठी में संजय दत्त और सलमान खान के आरोपों पर मीडिया कवरेज और रिया चक्रवर्ती के आरोपों पर मीडिया कवरेज की तुलना भी की गई है. लेकिन सवाल ये है, कि रिया चक्रवर्ती के समर्थन में खडे लोग क्यों ड्रग्स कनेक्शन को नज़रअंदाज कर रहे हैं, कौन लोग हैं, जो नहीं चाहते कि नशे में उड़ता बॉलीवुड ज़मीन पर आए और नशे से मुक्त हो जाए? इन सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि संजय दत्त और सलमान खान के मुद्दे पर मीडिया ने ऐसा क्या गलत कर दिया था? अगर हिरन का शिकार करोगे, फुटपाथ पर सोए लोगों पर गाड़ी चढ़ाओगे, आतंकी हमले में इस्तेमाल होने वाले हथियार छिपाओगे, तो क्या मीडिया तुम्हारी आरती उतारेगी? ऐसे लोगों को तो शर्म भी नहीं आती कि ऐसे गुनाह अगर आम आदमी किया होता तो सजा पर माफी नहीं मिलती, जो इन्हें मिली है. खैर,

मीडिया ट्रायल का नुकसान

हत्यारे लगातार सुशांत की हत्या वाले एंगल से गुमराह करने पर तुले हुए हैं. ऐसे में अगर लगातार मीडिया के गुमराह होने का सिलसिला चलता रहा तो, निश्चित तौर पर सुशांत सिंह राजपूत को मारने वाले बचकर निकल जाएंगे. दिव्या भारती, जिया खान की तरह सुशांत को भी सुसाइडर घोषित कर दिया जाएगा. मीडिया को उंगलियों पर नचाने वाले हत्यारे ये समझ लें, कि ज़ी हिन्दुस्तान सुशांत को मौत का सच जरूर सामने लाकर रहेगा.

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