मैं सुशांत सिंह राजपूत, मेरा बैंक अकाउंट करेगा हत्यारों की पहचान..!

इस वक्त खबरों में सबसे हॉट टॉपिक मेरी मौत का रहस्य है. मैं हर किसी को ये बता देना चाहता हूं कि मेरी मौत कोई आत्महत्या नहीं, बल्कि एक सोच-समझकर की गई हत्या है. मेरे हत्यारों की पहचान करने के लिए मेरा बैंक अकाउंट सबसे बड़ा क्लू साबित हो सकता है. मैं सुशांत,

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Jul 30, 2020, 05:41 PM IST
    • सुशांत की चिट्ठी में हत्यारे का पता
    • अकाउंट से होगी कातिलों की पहचान
    • '15 करोड़' में सुशांत की मौत का सच?
    • सुशांत की चिट्ठी : लेखक की कलम से
मैं सुशांत सिंह राजपूत, मेरा बैंक अकाउंट करेगा हत्यारों की पहचान..!

मैं सुशांत सिंह राजपूत.. मेरी रहस्यमयी मौत कोई सुसाइड की गुत्थी नहीं है, बल्कि मुझे मारा गया है. जी हां, मेरी हत्या की गई है. क्या कभी किसी का ध्यान इस तरफ गया है कि मुझे मारकर सबसे ज्यादा फायदा किसे हुआ होगा? मेरी मौत को सुसाइड बताकर रहस्य पर पर्दा डालने की कोशिश की जा रही है. मेरे हत्यारों को पकड़ने के लिए मेरा बैंक अकाउंट एक बड़ा जरिया साबित हो सकता है.

मुझे मौत की नींद सुलाने वाले हत्यारों के ज़ेहन में सिर्फ और सिर्फ एक ख्याल था कि वो किसी तरह से मुझे इस दुनिया से मिटा दे और इसे सुसाइड बनाकर मेरी मौत का भरपूर फायदा उठा सके. जांच की तरीका देखकर ये कहना गलत नहीं होगा कि एक ब्रिगेड मेरी मौत को आत्महत्या बनाने में जबरदस्त भूमिका निभा रहा है. लेकिन हत्यारों की पहचान करने के लिए मेरा बैंक अकाउंट काफी मददगार साबित हो सकता है. मैं अपनी चिट्ठी में आखिर ऐसा क्यों लिख रहा हूं? इस सवाल का जवाब जानिए..

मैंने दिल्ली में थिएटर से अपने करियर की शुरुआत की, एक थिएटर करने का उस वक्त महज 250 रूपया मिलता था. एक बात जरूर था कि मैं बहुत खुश था. मुझे दिल्ली बहुत पसंद था, लेकिन बॉलीवुड के माफियाओं ने मुंबई को ही फिल्म इंडस्ट्री का अड्डा बना रखा था. एक के बाद एक करके मैं लगातार आगे बढ़ता रहा, मैं यानी आप सबका सुशांत सिंह राजपूत 250 रुपये कमाने से लेकर करोड़ों की फिल्में साइन करने लगा.

मेरा मकसद पैसे कमाने और स्टार बनने तक सीमित नहीं था. मैं तो अपने ख्वाबों के पंख का सहारा लेते हुए आसमान में उड़ना चाहता था. मेरे ज्यादातर खर्च मेरे सपनों की सीढ़ी बनाने में ही होते थे. मेरी कंपनी, महिलाओं, प्रतिभाशाली बच्चों, किसानों और तरह तरह के लोगों की मदद के लिए भी मेरे ढेर सारे प्लान थे. मैं पैसे कमाकर इस सभी सपनों को धीरे-धीरे हकीकत में बदल भी रहा था. इतने में किसी ने मुझे मार डाला, मेरी हत्या कर दी और मुझे पागल साबित करने की कोशिश करने लगे.

मेरे बैंक अकाउंट्स का हत्या से कनेक्शन!

मैं एक बिहारी था, वो बिहार जहां 100-100 रूपये के लिए गोलियां चल जाती हैं, एक दूसरे की हत्या कर दी जाती है. मेरे अकाउंट्स को देखकर ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि मेरे साथ कितने रूपये की हेरा-फेरी की गई है. आप सभी ने मेरे बैंक अकाउंट को लेकर हाल ही में हुए खुलासे के बारे में जरूर सबकुछ जानते होंगे. मेरा एक बैंक अकाउंट, खाता नंबर 1011972591 कोटक महिन्द्र बैंक में था. जिसमें से 15 करोड़ रूपये के के हिसाब-किताब की जानकारी मुझे ठीक से याद तक नहीं है.

मेरे बैंक अकाउंट्स और कार्ड की जानकारी किसके पास थी, ये मुझे बताने की जरूरत नहीं है. लेकिन यहां ये बताना बहुत जरूरी है कि जिस पुलिस ने मेरी मौत के बाद मेरे अकाउंट्स की जांच को लेकर सबकुछ ok-ok कर दिया था, वो मुंबई पुलिस भला इतनी लापरवाह कैसे हो सकती है? पुलिस ने मेरे केस को जितना सुलझाया नहीं उससे कहीं ज्यादा उलझा कर रख दिया है.

पोस्टमार्टम से लेकर मौका-ए-वारदात और बैंक अकाउंट्स की जांच को लेकर पुलिस ने राज़ खोलने के बजाय, सबूतों पर पर्दा डालकर हत्या को और रहस्यमयी बनाती रही. जिससे मेरी मौत पर सुसाइड का ठप्पा लगाने में पुलिस को आसानी हो. यदि शुरू में ही अकाउंट्स की जांच सही तरीके से हुई होती तो जो बातें मेरी मौत के डेढ़ महीने बाद अकाउंट्स के जरिए सामने आ रही हैं, वो काफी पहले आ जाती और सबसे बड़ी बात कि तब मुंबई पुलिस की लापरवाही के चलते इसपर सुसाइड का ठप्पा लगाने की कोशिश भी नहीं होती.

ऐसा ही माजरा मेरी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी है, मेरी हत्या को आत्महत्या बताकर जल्द से जल्द इस केस को रफा-दफा करने की कोशिश करने वालों ने गजब का षड्यंत्र रचा. मेरे गले के निशान, दवा, बीमारी वगैरह-वगैरह.. इतना तक तो ठीक था मुंबई पुलिस की लापरवाही की हद को तब हो गई, जब मेरी हाइट को 5 सेमी. तक कम कर दिया गया.

बहरहाल, आखिरकार मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं कि मेरी मौत के रहस्य से पर्दा उठाने में बैंक अकाउंट्स अहम भूमिका कैसे निभा सकता है. मेरे हत्यारों ने मुझे क्यों मारा इसकी वजह अकाउंट्स में छिपा हो सकता है. फिर से ये दोहराना चाहूंगा कि मैं बिहार से हूं, जहां 100-100 रूपये के लिए कत्ल हो जाते हैं, फिर ये तो करोड़ों का माजरा है.

मैंने खुद को नहीं मारा, बल्कि मेरी हत्या की गई है. आखिर ऐसा मैं बार-बार क्यों कह रहा हूं? किसी भी जुर्म की पूरी गुत्थी सिर्फ एक ही शब्द के आस पास उलझी होती है, उस शब्द को हम सभी 'कारण' या 'वजह' के नाम से जानते हैं. मेरे हत्यारों के पास मुझे मारने का क्या कारण था? इसकी जानकारी सामने लाने के लिए कुछ अहम तथ्यों का सामने आना बेहद जरूरी है. क्योंकि, जांच की प्रक्रिया देखकर ये समझ आने लगा है कि कुछ लोग मुझे पागल साबित करके मेरे हत्यारों को बचाने के फिराक में जुटे हुए हैं.

मुझे यकीन है कि एक-एक सबूतों को आधार बनाकर हत्यारों तक पहुंचने में काफी आसानी होगी, लेकिन मेरी हत्या की जांच को लेकर मुंबई पुलिस की लापरवाही हद से ज्यादा हो रही है. मुझे इंसाफ चाहिए, क्योंकि मैं मरना नहीं चाहता था. मुझे बेरहमी और बड़ी ही चालाकी से मार दिया गया. मेरे हत्यारे को ढूंढने में हर कोई मदद कर सकता है, इसमें कोई शक नहीं है कि मेरी हत्या के केस को अबतक आप लोगों ने ही मजबूत कर रखा है, वरना कुछ गंदे लोग तो कबका मेरी हत्या को सुसाइड बता देते.

अब तो ऐसा लगने लगा है कि मेरे अपनों की चाहत के दम पर ही मुझे इंसाफ मिलेगा. मेरा बैंक अकाउंट और कई ऐसे सबूत हत्यारों तक पहुंचने में अहम लीड साबित हो सकता है. मैं सुशांत सिंह सुशांत, मेरा बैंक अकाउंट करेगा हत्यारों की पहचान..!

यह अभी तक मिले सबूतों के आधार पर आयुष सिन्हा की कलम से लिखा गया है, कोई

मैं सुशांत सिंह राजपूत, मुझे पागल साबित करने की कोशिश हो रही है..!

मैं सुशांत सिंह राजपूत, मैं आत्महत्या कर ही नहीं सकता..!

मैं सुशांत सिंह राजपूत, मेरी मौत को आत्महत्या बताने की जल्दबाजी क्यों?

मैं सुशांत सिंह राजपूत, मैं खुद से फांसी लगा ही नहीं सकता..!

ट्रेंडिंग न्यूज़