जस्टिस खानविलकर के वो 8 फैसले, जो न्यायिक इतिहास में रखे जाएंगे याद

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस ए एम खानविलकर अपने 6 साल 71 दिन के कार्यकाल के बाद शुक्रवार को सेवानिवृत्त हो गए. अंतिम कार्यदिवस पर जस्टिस खानविलकर ने सीजेआई एन वी रमन्ना के साथ बेंच में कई मामलों की सुनवाई की. जस्टिस खानविलकर 13 मई 2016 को सुप्रीम कोर्ट में बतौर जज नियुक्त हुए थे.

Written by - Nizam Kantaliya | Last Updated : Jul 29, 2022, 04:13 PM IST
  • ईडी के पक्ष में सुनाया फैसला
  • दागी जनप्रतिनिधियों को दी राहत
जस्टिस खानविलकर के वो 8 फैसले, जो न्यायिक इतिहास में रखे जाएंगे याद

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस ए एम खानविलकर अपने 6 साल 71 दिन के कार्यकाल के बाद शुक्रवार को सेवानिवृत्त हो गए. अंतिम कार्यदिवस पर जस्टिस खानविलकर ने सीजेआई एन वी रमन्ना के साथ बेंच में कई मामलों की सुनवाई की. जस्टिस खानविलकर 13 मई 2016 को सुप्रीम कोर्ट में बतौर जज नियुक्त हुए थे.

जस्टिस खानविलकर फरवरी 2018 में उस वक्त काफी चर्चा में आए थे, जब उन्होंने बिना कारण बताए बहुचर्चित बोफोर्स मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था. अक्सर विवादों से दूर रहने वाले जस्टिस खानविलकर के उन महत्वपूर्ण फैसलों के बारे में जानिए, जो देश के न्यायिक इतिहास में दर्ज हो गए.

1. ईडी के पक्ष में सुनाया फैसला
सेवानिवृत्ति से दो दिन पूर्व 27 जुलाई को उनकी अध्यक्षता में तीन सदस्यीय बेंच ने ईडी के पक्ष में अहम फैसला सुनाया. बेंच ने PMLA के तहत ED के जांच, गिरफ्तारी और संपत्ति जब्त करने के अधिकार को उचित बताया.

2. सीबीआई को दी छूट
जस्टिस ए एम खानविलकर की पीठ ने 24 अप्रैल 2020 को सीबीआई के पक्ष में भी अहम फैसला देते हुए दिल्‍ली-एनसीआर में किए अपराधों की जांच के ‌लिए सीबीआई को दूसरे राज्यों में जाने की छूट दी थी. गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों ने सीबीआई को दी गई जांच की सहमति को वापस ले लिया था. इसके बाद भी सीबीआई दिल्ली में दर्ज होने वाली एफआईआर की जांच के लिए उन राज्यों में प्रवेश करने लगी. कई राज्यों ने इसे सीबीआई की दूसरे दरवाजे से एंट्री का प्रयास बताया था.

3. दागी जनप्रतिनिधियों को दी राहत
जस्टिस खानविलकर उस बेंच का हिस्सा रहे, जिसने देश में दागी जनप्रतिनिधियों/नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से इनकार किया था. 24 सितंबर 2018 को तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा की संविधान पीठ ने इस पर फैसला सुनाया था.

4. सेंट्रल विस्टा को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं को भी जस्टिस ए एम खानविलकर की बेंच ने खारिज किया था. फैसला देते हुए उन्होंने कहा कि ये सरकार का नीतिगत मामला है. हर चीज की आलोचना की जा सकती है लेकिन 'रचनात्मक आलोचना' होनी चाहिए. उपराष्ट्रपति का आवास कहीं और कैसे हो सकता है? उस जमीन का इस्तेमाल हमेशा से सरकारी काम के लिए किया जाता रहा है.

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के नए आधिकारिक आवास में बदलाव को चुनौती दी गई थी. याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह मामला याचिकाकर्ता की पर्सनल प्रॉपर्टी से संबंधित नहीं है.

5. गुजरात दंगेः एसआईटी की क्लीन चीट बरकरार
उनकी बेंच ने गुजरात दंगों से जुड़े मामले में दायर जकिया जाफरी की याचिका को खारिज करते हुए तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी को एसआईटी द्वारा दी गई क्लीन चिट को बरकरार रखा. 24 जून 2022 को दिए अपने फैसले में उनकी बेंच ने को-पेटिशनर तीस्ता सीतलवाड़ की भूमिका की जांच की बात कही थी.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद गुजरात क्राइम ब्रांच ने तीस्ता सीतलवाड़, पूर्व IPS संजीव भट्ट और DGP आरबी श्रीकुमार के खिलाफ फर्जी दस्तावेज बनाकर साजिश रचने का मामला दर्ज किया. बाद में क्राइम ब्रांच ने तीस्ता सीतलवाड़ और आरबी श्रीकुमार को गिरफ्तार भी किया.

6. निजी स्कूलों को दी फीस लेने की अनुमति
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के 36,000 से अधिक निजी व गैर अनुदान प्राप्त स्कूलों को कोविड काल की अवधि के लिए फीस वसूलने की छूट दी. जस्टिस ए एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने ही स्कूल संचालकों के पक्ष में फैसला देते हुए कहा था कि फीस न भरने वाले अभिभावकों पर एक्शन लेने के लिए स्कूल स्वतंत्र हैं.

7. नवजोत सिंह सिद्धू को भेजा जेल
सुप्रीम कोर्ट ने 19 मई 2022 को कांग्रेस नेता और भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व सदस्य नवजोत सिंह सिद्धू को एक साल की सजा सुनाई थी. ये फैसला सुनाने वाली बेंच की अध्यक्षता जस्टिस खानविलकर कर रहे थे. सिद्धू को 1988 के रोडरेज मामले में सजा सुनाई गई.

8. मौत की सजा को रखा बरकरार
14 जून 2022 को जस्टिस खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने मानसिक और शारीरिक रूप से दिव्यांग बच्ची से दुष्कर्म और हत्या के मामले में दोषी मनोज प्रताप सिंह को दी गई मौत की सजा को बरकरार रखा. वारदात 2013 में राजस्थान में हुई थी, जब मनोज प्रताप सिंह की उम्र करीब 28 साल थी. बेंच ने इसे जघन्यतम अपराध बताया.

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