हाथरस पीड़िता के परिजन को नौकरी मिलेगी या नहीं? जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट ने हाथरस पीड़िता के परिजन को नौकरी देने के निर्देश के खिलाफ सरकार की याचिका खारिज कर दी है. आपको इस रिपोर्ट में बताते हैं कि ये पूरा माजरा क्या है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Mar 27, 2023, 05:34 PM IST
  • सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की याचिका कर दी खारिज
  • हाथरस पीड़िता के परिजन को नौकरी का मामला
हाथरस पीड़िता के परिजन को नौकरी मिलेगी या नहीं? जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाथरस मामले में पीड़िता के परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने और परिवार को दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करने पर विचार करने के उच्च न्यायालय के निर्देश के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका को सोमवार को खारिज कर दिया.

उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका खारिज
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला ने उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी) गरिमा प्रसाद से कहा, राज्य को ऐसे मामलों में नहीं आना चाहिए. प्रसाद ने कहा कि राज्य सरकार परिवार को स्थानांतरित करने के लिए तैयार है, लेकिन वे नोएडा या दिल्ली में नौकरी चाहते हैं.

उन्होंने कहा कि क्या पीड़िता के बड़े विवाहित भाई को आश्रित माना जा सकता है, यह कानून का प्रश्न है जिस पर विचार किया जाना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश ने राज्य सरकार की याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा, ये परिवार को प्रदान की जाने वाली सुविधाएं हैं. हमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. राज्य को इन मामलों में नहीं आना चाहिए.

बलात्कार और हत्या का लगा था आरोप
आदेश सुनाए जाने के बाद एएजी ने शीर्ष अदालत से कानून के सवाल को खुला रखने का आग्रह किया, पीठ ने कहा कि आदेश में निर्दिष्ट किया गया है कि यह मामले के विशेष तथ्यों और परिस्थितियों में पारित किया गया है.
पिछले साल जुलाई में, उच्च न्यायालय ने हाथरस मामले से जुड़े एक मामले में निर्देश पारित किया था, जहां सितंबर 2020 में हाथरस में 19 वर्षीय एक दलित महिला के साथ बलात्कार और हत्या का आरोप लगाया गया था.

उच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य के अधिकारियों को उस वादे का पालन करना चाहिए, जो सितंबर 2020 में परिवार से किया गया था, एक सदस्य को रोजगार देने के लिए और अधिकारियों को हाथरस के बाहर लेकिन उत्तर प्रदेश के भीतर परिवार के स्थानांतरण पर विचार करने का भी निर्देश दिया.

उच्च न्यायालय का आदेश 2020 में पीड़िता के अंतिम संस्कार के अधिकार के रूप में स्वत: संज्ञान लेकर दर्ज एक जनहित याचिका पर आया था, जिसमें कथित रूप से परिवार की सहमति के अभाव में आधी रात के बाद जल्दबाजी में पीड़िता का अंतिम संस्कार किया गया था.

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