नागपुर: देश के प्रधान न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने नागपुर में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में हिस्सा लिया. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि वकीलों को अपनी ‘पैसे कमाने वाले पेशेवरों’ की छवि बदलकर मध्यस्थ की भूमिका निभानी चाहिए. लोगों को उनसे उम्मीदें होती हैं कि वो उनको समय पर न्याय दिला सकते है. साथ ही जस्टिस बोबडे ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक अपनाने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि अगर AI तकनीक होती तो अयोध्या मामले में कई दस्तावेज कम समय में पढ़े जा सकते थे.
एआई न्यायपालिका का काम आसान करेगा
सीजेआई ने साफ किया कि मेरीआर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को कोर्ट के फैसलों की प्रक्रिया में शामिल करने की कोई योजना नहीं है. उन्होंने कहा कि एआई सिर्फ उलझाऊ कामकाज को आसान करेगा. जिस सिस्टम की हम बात कर रहे हैं, वह एक सेकंड में 10 लाख शब्द पढ़ सकता है. यानी हम उससे कुछ भी पढ़वा सकते हैं या सवाल पूछ सकते हैं.
महंगी कानूनी प्रक्रिया न्याय दिलाने में बाधा
प्रधान न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने कहा कि देश में महंगी कानूनी प्रक्रिया लोगों के लिए न्याय पाने में बाधक है. देर से मिले न्याय को सच्चा न्याय नहीं माना जा सकता. उन्होंने कहा कि वकीलों को आगे आकर अपनी भूमिका एक मध्यस्थ के तौर पर रखनी चाहिये. उन्हें अपने आपको सिर्फ बहस के लिए पैसे कमाने वाले पेशेवर के तौर पर नहीं देखना चाहिए.
अदालतों को कई चीजों में सुधार करना बाकी
चीफ जस्टिस ने कहा कि भारत में अदालतों को कई चीजों में सुधार करना है. हमें कोई परेशानी नहीं है कि कोई कितना पैसा बना रहा है लेकिन समझना होगा कि जब यह कोर्ट में होता है, तो इससे न्याय प्रणाली में बाधा आती है. यह एक बड़ी चूक है. उन्होंने कहा कि वकीलों को अपनी परंपरागत सोच बदलनी होगी और समन्वय बनाने पर जोर देना होगा.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्या है ?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) कंप्यूटर विज्ञान की वह शाखा है जो कंप्यूटर के इंसानों की तरह व्यवहार करने की धारणा पर आधारित है. इसके जनक जॉन मैकार्थी हैं. यह मशीनों की सोचने, समझने, सीखने, समस्या हल करने और निर्णय लेने जैसी संज्ञानात्मक कार्यों को करने की क्षमता को सूचित करता है. इसके ज़रिये कंप्यूटर सिस्टम या रोबोटिक सिस्टम तैयार किया जाता है, जिसे उन्हीं तर्कों के आधार पर संचालित करने का प्रयास किया जाता है जिसके आधार पर मानव मस्तिष्क कार्य करता है.
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