कहां हो रही चूक! BJP को हराना है तो योगी से क्या सीख सकते हैं अखिलेश?

क्या अखिलेश यादव से कोई राजनीतिक चूक हो रही है? क्या उनकी रणनीति में कोई चूक हो रही है? क्या अखिलेश यादव अपने प्रतिद्वंद्वी नेता योगी आदित्यनाथ से कुछ सीख सकते हैं?

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Feb 9, 2023, 03:14 PM IST
  • उत्तर प्रदेश में सपा से क्या हो रही है चूक?
  • सीएम योगी से क्या सीख सकते हैं अखिलेश?
कहां हो रही चूक! BJP को हराना है तो योगी से क्या सीख सकते हैं अखिलेश?

नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश में हाल ही में विधान परिषद के चुनाव नतीजे आए जिनमें समाजवादी पार्टी को बुरी तरह पराजित होना पड़ा है. हालत यह रही कि नेता प्रतिपक्ष की सीट बचाए रखने के लिए जरूरी एक सीट भी पार्टी नहीं जीत सकी. अगर समाजवादी पार्टी की राजनीति के हिसाब से देखें तो 2014 के बाद यह एक और निराशाजनक हार थी. सफलता के लिहाज से पार्टी ने 2012 में आखिरी बार राज्य में सरकार बनाई थी. यही वह साल भी था जब यूपी की कमान अखिलेश यादव के हाथों में आई. पार्टी में अखिलेश यादव का कद इसके बाद लगातार बढ़ता ही गया है. लेकिन चुनावी नतीजों में सपा का प्रदर्शन निराश करने वाला रहा है. 

क्या अखिलेश यादव से कोई राजनीतिक चूक हो रही है? क्या उनकी रणनीति में कोई चूक हो रही है? क्या अखिलेश यादव अपने प्रतिद्वंद्वी नेता योगी आदित्यनाथ से कुछ सीख सकते हैं? इन सब सवालों के जवाब जानने के लिए बीते वर्षों में सपा के प्रदर्शन और योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली के कई पक्षों पर चर्चा करनी होगी. 

अखिलेश का यूपी की राजनीति में उभार
उत्तर प्रदेश की राजनीति में अखिलेश यादव का उभार साल 2012 में शुरू हुआ था जब उन्होंने राज्य के सीएम की कुर्सी संभाली थी. हालांकि 2012 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव के पीछे खुद मुलायम सिंह यादव खडे़ थे. उस जीत में मुलायम के राजनीतिक कौशल का बड़ा हाथ था. अखिलेश के सीएम बनने के बाद भी कई बड़े नेताओं के सरकार में प्रभाव को लेकर सरकार पर तंज भी किया जाता था. सरकार में कई सीएम होने के बातें कही जाती थीं. यह स्वाभाविक भी था क्योंकि भले ही अखिलेश को राज्य की सबसे अहम कुर्सी दे दी गई हो लेकिन उनकी पार्टी कई दिग्गज मौजूद थे जिनमें मुलायम समेत, आजम खान और शिवपाल जैसे नेता थे शामिल थे.

2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले यादव परिवार में जमकर विवाद भी हुआ जो सार्वजनिक हुआ. इस विवाद को नुकसान भी पार्टी को चुनाव में चुकाना पड़ा. हालांकि इस विवाद के बाद अखिलेश पूरी तरीके से पार्टी में स्थापित हो गए. उसी के बाद से अखिलेश पार्टी सर्वेसर्वा बने हुए हैं. लेकिन पार्टी अब भी सरकार बनाने या फिर किसी बड़ी राजनीतिक सफलता से दूर है. 

तो अखिलेश को दिक्कत क्या आ रही है?
दरअसल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 71 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया था. सहयोगी अपना दल के साथ यह आंकड़ा 73 का था. उस वक्त राज्य में अखिलेश सरकार थी और सपा की बहुत ही बुरी पराजय हुई थी. सपा को महज पांच सीटों पर जीत हासिल हुई थी. यह आंकड़ा 2009 में 23 के मुकाबले बेहद कम था. 

इस बुरे प्रदर्शन के बाद साल 2022 के विधानसभा चुनाव में ही सपा को थोड़ी सफलता मिल पाई लेकिन वह भी सरकार बनाने के आंकड़े से बेहद कम थी. वहीं दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में बीजेपी ने लगभग 70 फीसदी सीटें हासिल कीं.

क्या हो रही है रणनीतिक चूक
बीते वर्षों में कई बार ऐसा हुआ जब अखिलेश यादव रणनीतिक चूक करते दिखे हैं. इनमें 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन भी शामिल है. गठबंधन में सपा ने कांग्रेस को 100 सीटें दी थीं लेकिन कांग्रेस के रिजल्ट बुरे आए. यूपी में जमीनी स्तर पर कमजोर हो चुकी कांग्रेस वह सफलता नहीं दिखा पाई जिसकी उम्मीद अखिलेश कर रहे थे. हालांकि खुद समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन भी दयनीय रहा था. एनडीए ने ऐतिहासिक रूप से 325 सीटें जीतकर सरकार बनाई.

2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश ने एक और बेमेल गठजोड़ किया जिसका ज्यादा फायदा सहयोगी दल यानी बसपा को मिला. 2019 लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा गठबंधन हुआ. यह भी कहा जाता है कि खुद मुलायम सिंह यादव इस गठजोड़ के पक्षधर नहीं थे और यह अखिलेश की इच्छा के आधार पर हुआ. जब चुनावी नतीजे आए तो उसमें भी सपा को कोई लाभ नहीं हुआ. यानी दूसरी बार भी गठबंधन के फॉर्मूले से पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ.

योगी जैसा पब्लिक कनेक्ट नहीं!
यूपी के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बेहतरीन पब्लिक कनेक्ट के लिए जाना जाता है. कोविड 19 महामारी के दौरान भी योगी आदित्यनाथ आम लोगों के बीच जाकर सभी प्रशासनिक जानकारियां लेते रहे और आम लोगों से संपर्क नहीं तोड़ा. वहीं दूसरी तरफ अखिलेश के बारे में कहा जाता है कि उनका पब्लिक कनेक्ट योगी आदित्यनाथ जैसा नहीं है.

अन्य समुदायों में पैठ कमजोर
बीते वर्षों में यादव और मुस्लिम जैसे परंपरागत वोटबैंक के अलावा अखिलेश यादव नए समुदाय को अपने साथ करने में उतने सफल नहीं दिखे हैं. यहां तक कि मायावती ने तो उन पर मुस्लिमों को दरकिनार करने का आरोप भी लगाया था. दरअसल अखिलेश जेल में आजमगढ़ के नेता रमाकांत यादव से मिलने गए थे. इस पर मायावती ने कहा था कि अखिलेश मुस्लिम नेताओं से मिलने जेल क्यों नहीं जाते?

योगी के प्रशासन से सीख
योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद सख्त प्रशासन पर सबसे ज्यादा जोर दिया है. जबकि अखिलेश खुद सरकार में रहते हुए पुलिस व्यवस्था और प्रशासन को लेकर आरोप झेल चुके हैं. यही कारण था कि योगी ने सरकार में आते ही सबसे पहले अपनी एक सख्त प्रशासक की भूमिका बनाई. इसका बीजेपी बार बार प्रचार भी करती रही है. 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इसे अपना मुद्दा भी बनाया था.

सीएम से पहले वाली लाइफस्टाइल ही जीते हैं योगी
सीएम बनने के बाद भी योगी वही लाइफस्टाइल जीते हैं जो सीएम बनने के पहले जीते थे. वह अक्सर अपने गोरखनाथ मंदिर में एक महंत के रूप में पूजा करते देखे जाते हैं. जबकि इससे इतर अखिलेश की सरकार रहते हुए सैफई में बड़े बड़े कार्यक्रम होते थे. सैफई में हेलिकॉप्टर उड़ते देखे जाते थे और कई महत्वपूर्ण राजनीतिक निर्णय भी वहां से होते थे. योगी आदित्यनाथ ने अपनी सरकार में ऐसी भूमिका गोरखपुर की नहीं बनने दी है. साथ ही वो गोरख मठ को अपनी सरकार की छवि से बिल्कुल अलग रखते हैं.

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