बयानों-विवादों से हमेशा चर्चा में रहने वाले अनिल देशमुख का राजनीतिक सफर जानिए

देशमुख 2014 का चुनाव अपने भतीजे से हार गए. वह 2019 में फिर से सीट जीतकर वापस आए. अनिल देशमुख साल 2014-2019 के बीच बीजेपी-शिवसेना सरकार को छोड़कर 1995 के बाद से महाराष्ट्र की हर सरकार में मंत्री रहे हैं. उन्होंने स्कूली शिक्षा, पीडब्ल्यूडी, आबकारी विभाग और गृह मंत्रालय तक संभाले हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Mar 21, 2021, 11:06 AM IST
  • एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार की पसंद रहे हैं अनिल देशमुख
  • गृहमंत्री के तौर पर देशमुख को हमेशा कम अनुभवी माना गया
बयानों-विवादों से हमेशा चर्चा में रहने वाले अनिल देशमुख का राजनीतिक सफर जानिए

मुंबईः इस वक्त जब मीडिया के जरिए सारे देश की आंख मुंबई और महाराष्ट्र की राजनीति पर लगी है तो ऐसे में सारे घटनाक्रम किसी फिल्मी कहानी सरीखे लगते हैं. इसमें राजनीति की लालसा है, इसके जरिए अकूत संपत्ति बना लेने का लालच, हमेशा पावर में बने रहने की महत्वकांक्षा और इसके लिए खून, भ्रष्टाचार और साजिश सबकुछ एक के बाद एक कड़ियों में जारी है.

दुर्भाग्य से यह सभी कुछ महाराष्ट्र की राजनीति में हकीकत बन गया है. इस हकीकत वाली कहानी में एक खास किरदार बनते जा रहे हैं महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख. 

एंटीलिया के सामने विस्फोटक लदी गाड़ी मिलना, कारोबारी मनसुख हिरेन की मौत, सचिन वझे (पुलिस अफसर) की संलिप्तता, कमिश्ननर के आरोप और 100 करोड़ का खेल और अनिल देशमुख. सियासत की इस डार्क स्टोरी की पटकथा का ब्लू प्रिंट कुछ यही है. 

हर बार अपने लिए जगह बना ले गए हैं देशमुख
यह कोई पहली बार नहीं है कि अनिल देशमुख तक किसी जांच की आंच पहुंची है. आज से 20 साल पहले चलिए. 2001 में उनके खिलाफ खाद्य और उत्पाद मामले में ड्रग्स के आरोप थे, लेकिन वह राज्यमंत्री से कैबिनेट मंत्री बनाए गए थे. दरअसल, अनिल देशमुख का राजनीतिक करियर ऐसा रहा है कि वह हर बार की सरकार में अपने लिए एक मुफीद सीट खोज लेते हैं या यूं कहिए की पा जाते हैं.

फिर चाहे वह किसी भी दल से सत्ता में आए हों. यह बात अभी तक दिवंगत रामविलास पासवान के लिए कही जाती रही है. 

1995 से लगातार रहे हैं मंत्री
इसमें भी देवेंद्र फडणवीस वाली महाराष्ट्र में भाजपा सरकार को छोड़ दें तो 70 साल के अनिल देशमुख 1995 के बाद से लगातार मंत्री रहे हैं. पांच बार के विधायक के लिए यह अपवाद 2014 में बना. देशमुख को काटोल में बुरी तरह से हार मिली थी. नागपुर जिले में काटोल के पास वाडविहिरा गांव के रहने वाले देशमुख ने 1995 में एक निर्दलीय विधायक के रूप में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी.

उन्होंने शिवसेना-भाजपा सरकार को समर्थन दिया. इसके बाद उन्हें शिक्षा और संस्कृति राज्य मंत्री बना दिया गया. 

शरद पवार के रहे हैं खास
अनिल देशमुख मौके पर बड़ी नजर रखते हैं. उन्होंने समय रहते शिवसेना-भाजपा सरकार से अपना नाता तोड़ लिया और नई-नई बनी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) में अपने लिए जगह तलाश ली. उन्होंने काटोल से एनसीपी के टिकट पर चुनाव में जीत दर्ज की और 2001 में उत्पाद और खाद्य और ड्रग्स के आरोप के साथ राज्य मंत्री से कैबिनेट मंत्री के रूप में अपग्रेड कर दिए गए. 

महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम महत्वाकांक्षी बांद्रा-वर्ली सी लिंक का निर्माण कर रहा था, देशमुख सार्वजनिक निर्माण विभाग (सार्वजनिक उपक्रम) मंत्री थे. उनके लिए यह गौरव करने वाले पल हो सकते थे, लेकिन बीडब्ल्यूएसएल के उद्घाटन से पहले कैबिनेट की फेरबदल हुई और उन्हें हटा दिया गया. राज्य मंत्रिमंडल में उनकी दोबारा एंट्री 2009 में हुई. तब उन्होंने खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण का प्रभार संभाला.

वह एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार की पसंद रहे. कहा जाता है कि अनिल देशमुख शरद पवार से बिना पूछे कोई भी निर्णय नही लेते हैं. इसी के चलते गृह मंत्रालय पर शरद पवार का वर्चस्व बना रहा.

अनिल देशमुख विदर्भ से आते है. माना जाता है कि इस इलाके में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के विस्तार के मकसद से ही उन्हें गृह मंत्री बनवाया गया था. लेकिन जो पवार कभी देशमुख को बहुत पसंद करते थे, पिछले दिनों आई खबरों के मुताबिक वही इस वक्त उनसे सबसे अधिक नाराज हैं. 

जब अपने ही भतीजे से हारे चुनाव
देशमुख 2014 का चुनाव अपने भतीजे से हार गए. वह 2019 में फिर से सीट जीतकर वापस आए. अनिल देशमुख साल 2014-2019 के बीच बीजेपी-शिवसेना सरकार को छोड़कर 1995 के बाद से महाराष्ट्र की हर सरकार में मंत्री रहे हैं. उन्होंने स्कूली शिक्षा, पीडब्ल्यूडी, आबकारी विभाग और गृह मंत्रालय तक संभाले हैं. हालांकि अपने बयानों और कई फैसलों के कारण वह हमेशा चर्चा और विवादों में रहे. यहां तक लगातार ढीली बातचीत ने कई मौकों पर सरकार को शर्मिंदा किया, देशमुख को अपने कुछ बयानों पर स्पष्टीकरण भी देना पड़ा. 

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2020 में भी अनिल देशमुख आरोपों से घिरे थे
देशमुख इस वक्त परमबीर सिंह की चिट्ठी से सीधे निशाने पर आ गए हैं. लेकिन उनके साथ ऐसा पहली बार नहीं है. बहुत अधिक पीछे न जाएं तो पिछले साल अप्रैल  2020 में ही उनके खिलाफ महाराष्ट्र इलेक्ट्रिसिटी रेग्युलेट्री कमिशन के चेयरमैन आनंद कुलकर्णी ने भी सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखी थी.

उन्होंने दावा किया था कि उन्होंने देशमुख के पिछले कामों पर होमवर्क किया है और वो सही समय पर जुटाई गई जानकारियों को सार्वजनिक करेंगे.

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अपने बयानों से भी रहे विवादित
अनिल देशमुख अपने बयानों से भी चर्चा में रहे. जब गोवा के आर्किटेक्ट अन्वय नाइक की मौत के मामले में टीवी एंकर अर्णब गोस्वामी घिर रहे थे तब उन्होंने विधानसभा में कहा था कि पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपने कार्यकाल के दौरान इस मामले को दबा दिया था. देशमुख ने गृह मंत्री पद संभालने के बाद दस डीसीपी रैंक के अफसरों का तबादला किया था.

स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक ये तबादले करने से पहले उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से कोई मशविरा नहीं किया. उद्धव ठाकरे ने इसी वजह से ये तबादले रोक भी दिए थे. इस घटनाक्रम के बाद से ही अनिल देशमुख महाराष्ट्र के मीडिया की सुर्खियां बने रहे. 

देशमुख के इस्तीफे की मांग जारी
एक बात और लगातार कही जाती रही है कि गृह मंत्रालय जैसे संवेदनशील मंत्रालय संभालने के लिए अनुभवी मंत्री की जरूरत होती है. देशमुख को अभी तक कोई हाई प्रोफाइल मामला संभालने में सफलता नहीं मिली है. खुद NCP में भी इसी बात को लेकर खुसर-फुसर होती रही है. उधर, मनसुख हिरेन की मौत का मामला सामने आने के बाद शिवसेना भी लगातार गृहमंत्री का इस्तीफा मांग रही है. अंदर खाने शिवसेना-NCP दोनों ही मामले को बैलेंस करने में तो जुटे हुए हैं. लेकिन अनिल देशमुख के मामले में पलड़ा अभी हल्का ही दिख रहा है. 

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