नई दिल्लीः वो हैदराबाद के भड़काऊ भाईजान है. उनकी जुबां खुलती है तो दिल में दबी नफरत जहर बनकर होंठों से बरसने लगती है. बेहद सोची समझी प्लानिंग के साथ वो नफरत की सियासत को हवा देते हैं ताकि हिन्दुस्तान की मुस्लिम आबादी को दहशत में लाकर वोटों की फसल काट सकें.
इन्होंने पहले हैदराबाद को अपनी नफरत की सियासत का गढ़ बनाया. फिर महाराष्ट्र गए. बिहार गए और अब पश्चिम बंगाल में उसे आजमाने की तैयारी में जुटे हैं, जहां अगले साल चुनाव है.
जी हां, बिल्कुल सही समझे - ऑल इंडिया इत्तेहादुल मुसलमीन वाले औवसी भाईजान. असदुद्दीन ओवैसी और उनके छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी
वो झूठ का कलमा पढ़ते हैं, वो झूठी दहशत गढ़ते हैं
नफरत की सियासत की इंतेहा क्या है, दिलोदिमाग में बेहद बारीकी से जहर कैसे बोया जाता है, ये समझना हो तो इन दोनों भाइयों की जुबानी जुगलबंदी जरूर सुनिए. खुद को मुसलमानों का पैरोकार बताने वाले ये दोनों चेहरे मुस्लिम समाज को देश से जोड़ना चाहते हैं या उनका मकसद देश के खिलाफ उन्हें भड़काना है, ये उनकी जहर बुझी जुबान खुद ब खुद बता देगी.
ओवैसी ब्रदर्स के बयान बता देते हैं कि मुसलमानों में फर्जी दहशत को हवा देकर अपनी सियासत चमकाना इन्हें खूब आता है. इस मामले में इनके छोटे भाई तो और भी माशाअल्ला हैं.
बड़े ओवैसी ने चुनावी फसल काटने के लिये ये दावा किया कि मोदी सरकार ने मुसलमान शब्द की परिभाषा ही बदल दी है. तो छोटे ओवैसी ने चुनावी रैली में ये कहकर डराया कि -'खुदारा समझो, मेरे मुसलमानों. समझो देश कहां जा रहा है.मुसलमानों के बर्बादी के कानून संसद में बनते हैं.
मुस्लिम आबादी को भड़काकर अपनी राजनीति की दुकान चलाना - यही है ओवैसी ब्रदर्स का कलमा. इसे पढ़-पढ़कर एक भाई सांसद बनता रहा तो दूसरा विधायकी के मौज लेता रहा. दोनों भाई मुस्लिम वोटबैंक को अपने पाले में लाने के लिये ये फर्जी दावा हर चुनाव में हवा में उछालते हैं कि 'अगर कोई मोदी को जवाब दे रहा है, तो वो बस मजलिस है. उसके अलावा दूर-दूर तक और कोई नजर नहीं आता है.'
ओवैसी बंधु सियासी मंच से मुस्लिम आबादी को एक अल्लाह, एक रसूल, एक कलमा और एक कुरान का मजहबी हवाला बस इसलिये देते हैं, ताकि कट्टरपंथी सोच को हवा देकर मुस्लिम वोटबैंक को चुनावों में भुना सकें.
बड़े ओवैसी को चुनावी मौसम आते ही हिन्दुस्तान की चिंता सताने लगती है. और वो अपील करने लगते हैं कि 'गांधी के हिन्दुस्तान को बचा लो. अंबेडकर के हिन्दुस्तान को बचा लो. गोडसे ने गांधी को गोली मारी थी. मौजूदा गोडसे गांधी के हिन्दुस्तान को गोली मार रहे हैं.'
तो वहीं छोटा ओवैसी हैदराबादी मंच से एलान करता है कि 'बस 15 मिनट के लिये पुलिस को हटा दो, मैं दिखाता हूं मुसलमान क्या कर सकता है.'
अकबरुद्दीन ओवैसी ने अपने इस बयान पर हैदराबाद में चुनावी जीत की फसल काट चुके हैं. इसीलिये जब भी किसी सूबे में चुनावी दंगल की तारीख करीब आती है, वो मुसलमान आबादी के बीच इसी तरह के नफरती बयानों को धार देने लगते हैं. हिंदू-मुस्लिम की सियासत की सोच के साथ अगर वो हिन्दुस्तान के संविधान का हवाला देते हैं, तो उसके पीछे उनका इरादा भी खुलकर समझ में आता है.
भगवान राम को इस्लाम में भी नबी माना है. नबी यानी अल्लाह ने जिन्हें इंसानियत की सेवा के लिये दुनिया में भेजा है. उन्हीं राम के जन्म को लेकर छोटे ओवैसी ने गंदी नीयत से जिस गंदी जुबान का इस्तेमाल किया, उसे सुनकर एक सच्चा मुसलमान शर्म से जमीन में गड़ जाएगा.
ओवैसी को सच्चे मुसलमान का जवाब सुनिए
बड़े ओवैसी बैरिस्टर हैं, तो कानूनी दांवपेंच में सबको और सबकुछ को लपेटना बखूबी जानते हैं. हिन्दुस्तान में एक कानून लागू करने की बात उठती है तो जवाब में उसे वो शरीयत की विरासत खत्म करने की साजिश बताते है.
हालांकि अपनी सियासत चमकाने के लिये खुदा की झूठी कसमें खाने से भी उन्हें परहेज नहीं है. ये राज तब खुला जब हैदराबाद में एक मंच से बड़े ओवैसी ये दावा करते दिखे कि मुस्लिम बिरादरी के लिये उन्होंने एक ही दिन में 15 बार अपना रक्तदान करना किया.
असदुद्दीन ओवैसी के इस दावे पर मुगल वक्फ प्रॉपर्टी के केयरटेकर और हैदराबाद के सम्मानित चेहरे प्रिंस याकूब तुसी ने ही सवाल उठा दिया. तुसी ने सबसे पहले ओवैसी को अल्लाह की झूठी कसम खाने के लिये टोका और फिर याद दिलाया कि एक दिन में एक बार से ज्यादा रक्तदान मना है, ये आम मुसलमान भी बखूबी जानता है, लिहाजा ओवैसी उन्हें भेड़-बकरी की तरह हांकने की कोशिश न करें.
सवाल ये है कि सत्ता की चाबी पाने के लिये कब तक नफरत की खेती करोगे, भड़काऊ भाईजान? आपकी ये चालबाजी वो सभी लोग समझने लगे हैं, जिन्हें आप वोटबैंक की राजनीति का प्यादा बनाना चाहते हैं. हिन्दुस्तान का रास्ता सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास का रास्ता है.यहां नफरत की बुनियाद नहीं बनने देगा राष्ट्रवाद.
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