भोपाल: राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा आज सोमवार को हिंगोली जिले में है. यह यात्रा लगातार आगे बढ़ रही है लेकिन इस बीच सवाल उठ रहे हैं कि इस यात्रा से राहुल गांधी को कितना फायदा होगा. कम से कम कांग्रेस से सहानुभूति रखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का तो मानना है कि राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ उन्हें एक गंभीर राजनीतिक नेता के रूप में स्थापित करेगी. और उन्हें अपनी मजबूत प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मुकाबला करने में बड़ी मदद करेगी. पर साथ ही उनकी एक सलाह भी है.
किसी एक मुद्दे पर ध्यान करना होगा केंद्रित
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि देश के विभिन्न राज्यों से गुजर रही इस यात्रा का स्थायी प्रभाव छोड़ने के लिए इसे किसी एक विशेष मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए था.
20 नवंबर को आधी दूरी होगी पूरी
इस यात्रा का लक्ष्य कांग्रेस पार्टी के संगठन को पुनर्जीवित करना है. तमिलनाडु के कन्याकुमारी से सात सितंबर को शुरू हुई कांग्रेस की लगभग 150 दिनों की 3,570 किलोमीटर लंबी पैदल यात्रा सात नवंबर को महाराष्ट्र में प्रवेश कर गई. गांधी के नेतृत्व वाली यह यात्रा 20 नवंबर को मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में महाराष्ट्र से प्रवेश करने के बाद लगभग आधी दूरी तय कर लेगी. यात्रा जम्मू कश्मीर के श्रीनगर में समाप्त होगी.
क्या बोले कमलनाथ
मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का मार्ग किसी स्थान पर पार्टी की राजनीतिक कमजोरी या मजबूती को ध्यान में रखकर तय नहीं किया गया है. कमलनाथ ने कहा, ‘भारत जोड़ो यात्रा केवल राजनीतिक यात्रा नहीं है. यह अनेकता में एकता की भारतीय संस्कृति और संविधान को बचाने की यात्रा है. राहुल गांधी ने यह यात्रा निकालने की इसलिए सोची क्योंकि हमारी संस्कृति और संवैधानिक संस्थाएं खतरे में हैं.’’
इस यात्रा का देश की राजनीति पर असर पड़ेगा : राजनीतिक विश्लेषक
पूर्व केंद्रीय मंत्री असलम शेर खान ने कहा, ‘‘यात्रा का भारतीय राजनीति पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा. इस यात्रा से राहुल गांधी देश के एक प्रमुख नेता के रूप में भी उभरेंगे. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना में राहुल गांधी को गैर-गंभीर राजनीतिक नेता के रूप में चित्रित करने के आरएसएस/भाजपा के सुनियोजित अभियान को प्रभावी ढंग से नुकसान पहुंचाएगी. ’’ पूर्व ओलंपियन ने कहा, ‘‘पार्टी अध्यक्ष का चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से कराकर राहुल गांधी ने साबित कर दिया है कि वह भारतीय राजनीति में लंबी पारी खेलने वाले गंभीर राजनीतिक नेता हैं.’’
अपेक्षित जनसमर्थन नहीं मिल रहा है ?
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर ने तर्क दिया कि इस राष्ट्रव्यापी पैदल यात्रा को अपेक्षित जनसमर्थन नहीं मिल रहा है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘भारत जोड़ो यात्रा किसी खास मुद्दे पर केंद्रित नहीं है और इसलिए इसे उस तरह का जनसमर्थन नहीं मिल रहा है जैसा कि अतीत में इस तरह की यात्राओं को मिला करता था.’’
पूर्व के उदाहरण
शंकर ने कहा, ‘‘महात्मा गांधीजी ने नमक विरोधी कानून भंग करने के लिए ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ ध्यान केंद्रित करते हुए दांडी यात्रा निकाली या नमक सत्याग्रह किया और इसलिए इसे स्वेच्छा से भारी जनसमर्थन मिला था. इसी तरह 1990 में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा पूरी तरह से अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में बड़े पैमाने पर लामबंदी पर केंद्रित थी. शंकर ने कहा, ‘‘कांग्रेस की यात्रा सांप्रदायिकता और नफरत से लड़ने जैसे विशिष्ट मुद्दों पर केंद्रित होनी चाहिए थी. इससे पार्टी को काफी फायदा मिलता.’’ वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई का मानना है कि कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में दम नहीं है और उन्होंने इसे गुजरात और हिमाचल प्रदेश में नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से जोड़ने की कोशिश की.
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