नई दिल्ली: दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद सफूरा जरगर इन दिनों चर्चा में है. कश्मीर की रहने वाली इस कथित छात्रा के पक्ष में कैंपेन चलाया जा रहा है. उसे गर्भवती बताते हुए रिहा करने की मांग की जा रही है. लेकिन सफूरा पर लगे भयानक गुनाह के आरोपों को मासूमियत की आड़ में छिपाया जा रहा है. दिल्ली पुलिस की अब तक की जांच से पता चलता है कि सफूरा दिल्ली में दंगा फैलाने वाले देश विरोधी नेटवर्क की बड़ी अहम कड़ी है. शायद बड़े गुनहगारों को बचाने के लिए सफूरा की रिहाई के लिए दिन-रात एक किया जा रहा है.
पहले जानिए सफूरा जरगर का गुनाह क्या है
फरवरी के आखिरी सप्ताह में दिल्ली में भयावह दंगों की शुरुआत हुई. सरकार के विरोध से शुरू हुआ प्रदर्शन सफूरा जरगर जैसे लोगों की वजह से भयानक दंगों में बदल गया. जिसमें लगभग 50 लोगों की मौत हो गई. इन दंगों में कई परिवार नष्ट हो गए. कई युवाओं के सपने जल कर राख हो गए.
इन दंगों के पीछे बहुत बड़ी साजिश थी. जिसकी एक अहम कड़ी सफूरा जरगर से जाकर जुड़ती है. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की जांच में पता चला है कि संसद के दोनों सदनों से पारित नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ सफूरा जरगर लगातार भड़काऊ भाषण देकर लोगों को उकसाती थी.
पुलिस को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे के दौरान सफूरा जरगर के चांदबाग में दंगाइयों के साथ होने और दंगे की साजिश रचने की भी ठोस जानकारी मिली है.
Police have arrested the media coordinator of the Jamia Coordination Committee Safoora Zargar. Zargar is accused of organizing anti CAA protest in Jaffrabad in Delhi's North-East district: Delhi Police Joint CP Alok Kumar
— ANI (@ANI) April 11, 2020
दिल्ली पुलिस ने 11 अप्रैल को बताया कि 22 फरवरी की रात नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में महिलाएं जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे बैठ गई थीं.
दिल्ली पुलिस के हवाले से जानकारी मिली है कि उसी दौरान सफूरा भारी हिंसक भीड़ को लेकर वहां पहुंची और दिल्ली को दंगों की आग में झोंकने की साजिश रची. इसके बाद जिले में कई दिनों तक हिंसा होती रही. जिसमें 50 से अधिक लोगों की जान चली गई.
सफूरा के खिलाफ आरोप इतने संगीन हैं कि दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सफूरा की जमानत की अपील खारिज कर दी है.
सफूरा के असली गुनाह पर पर्दा डालने की कोशिश
सफूरा के रिहाई के लिए पिछले कुछ दिनों से जबरदस्त कैंपेन चलाया जा रहा है. उसकी प्रेगन्सी और महिला होने को आधार बनाकर उसकी रिहाई की अपील की जा रही है.
लेकिन क्या महिला होने से सफूरा को हत्या की साजिश रचने का अधिकार मिल जाता है? सफूरा जरगर की साजिश की वजह से दंगों में जिन लोगों ने अपनी जानें गंवाई हैं क्या उनका किसी तरह का मानवाधिकार नहीं था? क्या उन लोगों की जान इतनी सस्ती है?
वामपंथी विचारधारा वाले हर समाचार संस्थान ने सफूरा जरगर के बारे में खबर की है. लेकिन दंगों में साजिशकर्ता की उसकी भूमिका को छिपाते हुए उसे विक्टिम और मासूम साबित करने की कोशिश की है.
क्या सच को छिपाना गुनाह नहीं है?
सफूरा जरगर का पति कौन है और कहां छिपा बैठा है?
सफूरा जरगर पिछले दिनों बेहद गलत कारणों से चर्चा में रही. उसके चरित्र पर लांछन लगाए गए. जो कि नैतिक रुप से कतई सही नहीं कहा जा सकता.
लेकिन सफूरा अहमद के गर्भवती होने, उसके जेल में बंद होने के बावजूद उसका पति बिल्कुल सामने नहीं आ रहा है. सफूरा का पूरा परिवार सामने आ गया है. उसकी रिहाई के लिए हर तिकड़म लगा रहा है. सफूरा की बहन समीया अपनी पहचान छिपाए बिना खुलकर उसकी रिहाई के लिए ट्विटर पर कैंपेन चला रही है.
लेकिन सफूरा का पति गायब है. उसे चिंता ही नहीं है कि उसकी गर्भवती पत्नी किस हाल में है. वह सामने आने तक के लिए तैयार नहीं है.
न्यूज मीडिया में तरह तरह की रिपोर्ट आ रही है. कुछ समाचार संस्थान दावा कर रहे हैं कि उन्होंने सफूरा के पति से बात भी की है. लेकिन वह सामने आने के लिए तैयार नहीं है.
कुछ समाचार संस्थान सफूरा के पति से बात करने का दावा कर रहे हैं. लेकिन ना तो उसका नाम बता रहे हैं ना ही कोई पहचान जाहिर करने के लिए तैयार हैं.
आखिर कौन है सफूरा जरगर का कथित पति? उसे अपनी पहचान छिपाने की जरुरत क्यों पड़ रही है? क्या इसके पीछे भी कोई साजिश है?
वो कोई आतंकी है या फिर अपराधी जो सबके सामने आने से घबरा रहा है. वो भी ऐसे संकट की घड़ी में जब उसकी गर्भवती पत्नी मुश्किल में फंसी हुई है.
सफूरा के पति के बारे में जानने की इच्छा हर कोई रखता है. लेकिन सेलेक्टिव मीडिया सफूरा के पति की पहचान छिपाने में जी जान से जुटा हुआ है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रोपगैंडा चलाने की कोशिश
50 बेगुनाहों की मौत की जिम्मेदार सफूरा जरगर पर लगे आरोपों को छिपाते हुए इस मामले में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन से लेकर अल जजीरा तक को शामिल करने की कोशिश की गई है. आखिर इतने हाई लेबल की रणनीति बना कौन रहा है.
जबकि सफूरा का कथित पति दावा कर रहा है कि उसे भारतीय कानून व्यवस्था पर पूरा भरोसा है. अगर अपने देश न्याय व्यवस्था पर इतना ही भरोसा है तो सफूरा के घरवाले घर का मुद्दा बाहर क्यों उछालने की कोशिश में जुटे हैं.
सफूरा मामले को मध्य पूर्व देश के मीडिया संस्थान अल जजीरा ने मुद्दा बना लिया है. जिसने सफूरा को विक्टिम के तौर पर दर्शाते हुए उसके पक्ष में माहौल बनाने की भरपूर कोशिश की है.
लेकिन ये बात बेहद सफाई से छिपा ली जा रही है कि सफूरा पर दंगा भड़काने की साजिश का आरोप है. जिसकी वजह से 50 मासूम लोगों की मौत हो गई. सवाल ये है कि इंटरनेट पर सफूरा के पक्ष में चलने वाले कैंपेन का ऑर्गेनाइजर कौन है.
जब पुलिस के डंडे पड़ते हैं तो भारत माता की याद आती है
पिछले कुछ दिनों से देश विरोधी प्रदर्शनकारियों ने भारत माता की आड़ लेनी शुरु कर दी है. सफूरा जरगर के मामले में यही देखा जा रहा है.
लेकिन ये कैसी भारत की बेटी है जो अपनी मातृभूमि को ही तोड़ना चाहती है. भारत माता का नाम लेना और उसकी आड़ में छिपना महज एक धोखा है और कुछ नहीं.
एक स्वनामधन्य मीडिया संस्थान ने लिखा है कि सफूरा जरगर देश विरोधी प्रदर्शनों में शामिल नहीं थी. उसे निशाना बनाया जा रहा है. एक आर्टिकल लिखकर ये दावा किया है कि सफूरा जरगर जामिया छात्रों के मीडिया कोऑर्डिनेटर होने की वजह से सिर्फ प्रदर्शनों को देखने गई थीं. लाल रंग से अंडरलाइन की गई लाइनों को जरा ध्यान से पढ़ें.
अब जरा नीचे की ये फोटो देखिए. जिसमें सफूरा गले फाड़कर देश विरोधी नारे लगाती हुई और दिल्ली पुलिस से धक्का मुक्की करते हुए दिखाई दे रही है.
अगर ये तेवर प्रदर्शन देखने वालों के हैं तो फिर भड़काने वाले और देश विरोधी दंगे करने वाले कैसे होते हैं. ये आप खुद ही तय कर लीजिए.
हिंदू-मुस्लिम का विभाजनकारी विक्टिम कार्ड खेलने की कोशिश
सफूरा जरगर के मामले में एक बार फिर वामपंथी मीडिया और इस्लामी कट्टरपंथी एक साथ दिखाई दे रहे हैं. वैसे तो भारतीय वामपंथी लगातार गंगा जमुनी तहजीब की दुहाई देते हैं. लेकिन जहां गुनाह सामने आने लगते हैं देशविरोधी कट्टरपंथी तुरंत धर्मनिरपेक्षता का बाना उतार कर मजहबी आड़ लेने की कोशिश करने लगते हैं.
सफूरा जरगर का पूरा मामला एंटी इस्लामिक बना कर पेश किया जा रहा है. सफूरा के देश विरोधी कृत्यों को छिपाकर विक्टिम कार्ड खेलने की कोशिश की जा रही है. ऐसा दर्शाया जा रहा है कि उसे मुसलमान होने की वजह से निशाना बनाया जा रहा है.
यही नहीं सफूरा की प्रेगनेन्सी को हथियार बनाकर उसके देश विरोधी कुकृत्य छिपाने की कोशिश की जा रही है.
सफूरा के बारे में कोई सहानुभूति पालने से पहले उसके गुनाह को देखिए
एक मासूम महिला के तौर पर सफूरा जरगर के प्रति सहानुभूति पैदा करने की भरपूर कोशिश की जा रही है. लेकिन मन में कोई गलतफहमी पालने से पहले उन 50 मासूम जानों के बारे में सोचिए, जिन्होंने सफूरा जरगर और उस जैसे देश विरोधियों की साजिश में फंसकर अपनी जान गंवा दी. इसमें से 44 लोग बिल्कुल युवा थे. जिन्हें अपनी पूरी जिंदगी जी भी नहीं थी. आप यहां तक कि दो नाबालिग जानें भी गईं.
दिल्ली के भयावह दंगों के दौरान गुरु तेग बहादुर अस्पताल लाए जाने वाले 298 गंभीर रुप से घायलों में से 202 लोग 39 साल से कम उम्र के थे. इसमें से 28 नाबालिग थे. इन लोगों के शरीर पर दिल्ली दंगों के निशान ताउम्र रहेंगे.
ऐसे में सफूरा जरगर जैसी साजिशकर्ता को बना सजा दिए कैसे छोड़ा जा सकता है. साथ ही ये भी सोचिए कि अगर इन देशविरोधियों का भारत माता के टुकड़े करने का मंसूबा कामयाब हो गया तो हजारो लाखों माताओं बहनों के जीवन में कितना घना अंधेरा छा जाएगा.
अगर इन देश विरोधियों के प्रति आपके दिल में जरा भी सहानुभूति उमड़ती है तो भारत विभाजन 1947 और 1989-90 में कश्मीरी हिंदुओं पर होने वाले जुल्मों को याद कर लीजिए.
सफूरा जरगर के मामले में जांच एजेन्सियों और सरकार को कतई दबाव में नहीं आना चाहिए. प्रथम दृष्ट्या उसपर जो आरोप लगे हैं वे बेहद संगीन हैं. उसे किसी तरह संदेह का लाभ देकर छोड़ना उचित नहीं होगा. बल्कि सफूरा जैसे मोहरों से पूछताछ करके देश विरोधियों के हर एक नेटवर्क को ध्वस्त किया जाना चाहिए.
ये देश की जनता की अपनी राष्ट्रवादी सरकार से अपेक्षा है...