नई दिल्लीः राजस्थान हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस अकील कुरैशी रविवार यानी आज अपने पद से सेवानिवृत्त हो रहे हैं. उनकी सेवानिवृत्ति पर शुक्रवार को राजस्थान हाई कोर्ट में आयोजित रेफरेंस में दिये गये उनके बयान की चारों चरफ चर्चा है. जस्टिस कुरैशी 12 अक्टूबर 2021 को त्रिपुरा हाई कोर्ट से तबादले के बाद राजस्थान के चीफ जस्टिस बने थे. 4 माह 25 दिन के इस कार्यकाल में कोर्ट के अंदर निसंदेह उनके कई फैसलों ने सभी का ध्यान खींचा. लेकिन उससे ज्यादा पिछले एक सप्ताह में दिये उनके बयानों की भी हर तरफ चर्चा रही.
कई बार इंसान अपने दर्द को भले ही नहीं छुपा पाए, लेकिन अपनी खुशी को जरूर छुपा लेता है. देशभर के हाई कोर्ट जजों में वरिष्ठता सूची में अग्रणी रहने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट में चयन नहीं होने का दर्द जस्टिस अकील कुरैशी अपने विदाई समारोह में छुपा नहीं पाए. लेकिन, राजस्थान के चीफ जस्टिस के तौर पर उनके 4 माह 25 दिन के कार्यकाल में दो घटनाएं ऐसी हुईं जिनके लिए जस्टिस कुरैशी की तारीफें खूब हुईं. वहीं, कई मामलों पर उन पर सवाल भी खड़े हुए. लेकिन उनके चीफ जस्टिस बनने के बाद एक ऐसी घटना भी हुई जिससे वे इतना आहत हुए कि उन्होंने खुली अदालत में कहा कि वे राजस्थान से सेवानिवृत्त होकर जायेंगे, लेकिन उनके दिल में हमेशा एक "खलिश" रहेगी. वो क्या "खलिश" थी और कैसे वो "खलिश" समाप्त हुई पढ़िए इस विस्तृत रिपोर्ट में.
जजों के नाम की सिफारिश
जस्टिस कुरैशी के राजस्थान के चीफ जस्टिस बनने के बाद यूं तो कई मामलों पर फैसला लिया गया, लेकिन लंबे समय से प्रतीक्षारत कई ऐसे मामले का निपटारा किया गया, जिनके लिए राजस्थान को लंबे समय से इंतजार था. इसमें सबसे महत्वपूर्ण राजस्थान हाई कोर्ट के लिए नए जजों की नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश करना था. 10 फरवरी को राजस्थान हाई कोर्ट कॉलेजियम की लंबी बैठकों के बाद डीजे कैडर के 8 नाम भेजने में सफल रहा. भेजे गये नाम में डीजे आर पी सोनी, डीजे अशोक कुमार जैन, डीजे एस पी काकड़ा, डीजे योगेन्द्र पुरोहित, डीजे भुवन गोयल, डीजे प्रवीर भटनागर, डीजे मदनलाल भाटी और डीजे आशुतोष मिश्रा के नाम भेजे जाने की चर्चा रही है.
16 फरवरी को ये सभी नाम राजस्थान हाईकोर्ट से लॉ मिनिस्ट्री तक पहुंचाये गये. फिलहाल ये नाम पाइपलाइन में हैं और आगामी कुछ सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के समक्ष रखे जा सकते हैं. इस फैसले के लिए राजस्थान की लोअर ज्यूडिशरी के साथ साथ अधिवक्ताओं में काफी प्रसन्नता नजर आयी. डीजे कैडर के न्यायिक अधिकारियों को यकीन नही था कि पहले से दो नाम केन्द्र में पेडिंग रहने के बावजूद उनके नाम भेजे जाएंगे या नहीं. दूसरी ओर एडवोकेट के नामों को लेकर सिर्फ चर्चा बनी रही.
सूत्रों के अनुसार बैठक में जिन नामों पर चर्चा कि जानी थी उन नामों को लेकर कॉलेजियम के साथ ही शिकायतें भी शुरू हो गयी. निजी सचिव के एक रिश्तेदार अधिवक्ता का नाम होने और साथी कॉमरेड के अधिवक्ता पुत्र को लेकर कई अटकलें लगायी जाती रही. लेकिन ज्यूडिशरी में अटकलों पर आधारित खबरों को तवज्जो नहीं मिलती.
न्यायिक अधिकारियों की पदोन्नति, लेकिन फरवरी में तबादले
किसी भी संस्थान में कर्मचारियों और अधिकारियों की पदोन्नति यूं तो एक निरंतर प्रक्रिया है. लेकिन अगर ये प्रक्रिया समय पर नहीं अपनायी जाए तो कई बार पदोन्नति मिलने के बाद भी खुशी नहीं मिलती. लेकिन, राजस्थान के इतिहास में ऐसे बहुत कम ही फैसले नजर आते हैं जब समय पर न्यायिक अधिकारियों और कर्मचारियों को बिना मांगे ही कोर्ट खुद चलकर उनको पदोन्नति दे दे. राजस्थान सीजे अकील कुरैशी ने पिछले दो साल से पेंडिंग पदोन्नतियों का एक तरह से निपटारा ही कर दिया. 100 से अधिक न्यायिक अधिकारियों को पदोन्नति दी गई.
एसीजेएम-सीजेएम से 50 एडीजे बनाए गए, 41 मुंसिफ अधिकारियों को एसीजेएम पद पर पदोन्नत किया गया. तो वही 15-16 न्यायिक अधिकारियों को एडीजे से डीजे पद पर पदोन्नत किया गया. बड़ी संख्या में न्यायिक अधिकारियों की पदोन्नति को लेकर एक सकारात्मक कदम है. लेकिन फरवरी में किए गए इन अधिकारियों के तबादलों से जरूर सभी का ध्यान खींचा है. व्यावहारिक तौर पर हाई कोर्ट न्यायिक अधिकारियों के बच्चों की पढ़ाई को ध्यान में रखते हुए मार्च-अप्रैल के बाद तबादले करता है. इसके साथ तबादला आदेशों में रखी गईं शर्ते भी पहली बार देखने को मिली.
कर्मचारियों की पदोन्नति
राजस्थान सीजे के कार्यकाल के अंतिम सप्ताह में करीब 29 से अधिक न्यायिक कर्मचारियों को पदोन्नति दी गयी. न्यायिक कर्मचारियों ने इसे लेकर आभार भी जताया. राजस्थान हाई कोर्ट सहित प्रदेश की अधीनस्थ अदालतों में संविदा पर कार्यरत 66 ई कोर्ट कर्मचारियों को नियुक्ति भी दी गयी. इसके साथ ही 30 अधिकारियों और कर्मचारियों को पदोन्नति का तोहफा भी दिया गया. जिसमें 8 को सहायक रजिस्ट्रार, 3 प्रशासनिक अधिकारी न्यायिक, 2 डिप्टी रजिस्ट्रार, 1 संयुक्त रजिस्ट्रार, 5 वरिष्ठ न्यायिक सहायक, 5 कनिष्ठ न्यायिक सहायक और 5 उषर व दस्ताबरदार के पदो पर पदोन्नति दी गई. इन पदोन्नतियों को लेकर न्यायिक अधिकारियों और कर्मचारियों में प्रसन्नता है.
लेकिन इस सूची के 8 अधिकारियों की पदोन्नति को लेकर सवाल जरूर खड़े हुए हैं. जिन्हें एडहॉक आधार पर कोर्ट मास्टर से सहायक रजिस्ट्रार के पद पर पदोन्नति दी गई. इस सूची में मुख्य न्यायाधीश के जोधपुर मुख्यपीठ और जयपुर बेंच के कोर्ट मास्टर को भी पदोन्नति दी गई है, जिसे लेकर भी कर्मचारियों का एक वर्ग खासा नाराज है और इस मामले को कोर्ट के तहत चुनौती देने की तैयारी कर रहा है. एडहॉक के तहत पदोन्नति को लेकर राजस्थान हाई कोर्ट सदैव ही विवादों में रहा है. राजस्थान हाई कोर्ट के 2002 के रूल्स विवादित ही रहे है. जिसे लेकर हाई कोर्ट में ही करीब 60 से ज्यादा रिट याचिकाएं लंबित हैं. कर्मचारी पिछले दो साल से वरिष्ठता सूची का इंतजार कर रहे हैं.
हाई कोर्ट कर्मचारी संघ के अध्यक्ष ऋतुराज शर्मा कहते हैं कि राजस्थान सीजे के तौर पर उनका कार्यकाल बेहतर रहा है. उन्होंने हर छोटे से छोटे कर्मचारी को भी मिलकर अपनी बात कहने का समय दिया है. कर्मचारियों के साथ उनके आत्मीय व्यवहार के चलते एक अलग रिश्ता बना.
26 सीनियर एडवोकेट की नियुक्ति और विवाद भी
चीफ जस्टिस अकील कुरैशी के आने के साथ राजस्थान हाई कोर्ट में सीनियर एडवोकेट मनोनीत करने की प्रक्रिया में तेजी आयी. 21 जनवरी को हुई फुल कोर्ट की बैठक के निर्णय से 25 जनवरी 2021 को 26 सीनियर एडवोकेट की सूची जारी कि गई. इनमें जोधपुर के लिए 11 और जयपुर हाई कोर्ट के लिए 15 अधिवक्ताओं को सीनियर एडवोकेट की मान्यता प्रदान की गई. इन नामों में जोधपुर स्थित मुख्य पीठ में संजीव जौहरी, मनोज भंडारी, धीरेन्द्र सिंह चांपावत, मनीष सिसोदिया, कुलदीप माथुर, डॉ. अशोक सोनी, सचिन आचार्य, राजेश पंवार, वीनित जैन, डॉ. विकास बालिया और संदीप शाह का नाम शामिल रहा. वहीं जयपुर बैंच के लिए अरविंद कुमार गुप्ता, अजीत कुमार भंडारी, अनंत कासलीवाल, सत्येन्द्र कुमार गुप्ता, महेन्द्र कुमार शाह, अजय कुमार वाजपेयी, भरत व्यास, सैयद शाहीद हसन, रघुवेन्द्र बिहारी माथुर, माधव मित्र शर्मा, अनिल मेहता, गायत्री राठौड़, विवेक राज सिंह बाजवा, राजीव सुराणा व संजय झंवर नाम को सीनियर एडवोकेट बनाया गया.
विवाद लेकिन सख्त बने रहे सीजे
राजस्थान सीजे के इस फैसले का जमकर विवाद भी हुआ. हाईकोर्ट के ही कई अधिवक्ताओं ने सीनियर एडवोकेट में कई कम अनुभवी और कम उम्र के अधिवक्ताओं को सीनियर एडवोकेट नामित करने और उन्हे नजरअंदाज करने का आरोप लगाया. यहां तक कि इसके विरोध में जयपुर हाई कोर्ट के कुछ अधिवक्ताओं ने धरना देना शुरू कर दिया, जो निरंतर जारी है. इस मामले में विरोध कर रहे अधिवक्ताओं ने एक विशेष समुदाय से आने वाले लोगों को ज्यादा तरजीह देने का भी आरोप लगाया और इसके लिए राज्य के महाधिवक्ता के खिलाफ भी कई बयान जारी किए. लेकिन, इस मामले में राजस्थान सीजे का रुख बेहद सख्त रहा, उन्होंने अपने फैसले पर फिर से पुनर्विचार करने से ही इनकार कर दिया.
इस मामले में जयपुर हाई कोर्ट बार भी खुलकर सीजे के पक्ष में खड़ी नजर आई. विरोध का नेतृत्व कर रहे एक अधिवक्ता के चैंबर के विवाद में पुलिस तक को बुलाया गया. सीजे के अंतिम कार्यदिवस पर भी विरोध कर रहे अधिवक्ताओं ने जोधपुर मुख्यपीठ का रुख किया जहां पर सीजे के विदाई समारोह में नाराजगी जताना प्रस्तावित था. लेकिन इसके बावजूद इस मामले में जस्टिस अकील कुरैशी फुल कोर्ट के फैसले से पीछे नहीं हटे.
हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भुवनेश शर्मा के अनुसार राजस्थान में चीफ जस्टिस अकील कुरैशी का कार्यकाल कम समय का होने के बावजूद मिला जुला रहा. उन्होंने प्रशासनिक कार्यों में कम से कम दखल दिया है. बार और बैंच के बीच सामजंस्य बनाने के लिए रोस्टर का डिस्ट्रीब्यूशन बेहतर तरीके से किया. जिससे बार और बैंच के बीच कभी गतिरोध पैदा नहीं हुआ. यही सत्यता है
रीट पेपर लीक को लेकर दिया बयान नहीं आया रास
राजस्थान में रीट पेपर लीक का मामला कई महीनों से गर्माया हुआ है. और इसी बीच 2 मार्च को जोधपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में दौरान चीफ जस्टिस अकील कुरैशी ने एक ऐसा बयान दिया जो राजस्थान के युवाओं को पसंद नहीं आया. उन्होंने कहा कि हमारे देश में जब तक बेरोजगारी का मसला हल नहीं होगा, तब तक REET जैसे पेपर लीक होते रहेंगे. चाहे सजा में मृत्युदंड का ही प्रावधान क्यों न कर दिया जाए. आज के इस प्रतिस्पर्धा के दौर में सरकार को रोजगार और आजीविका के नए विकल्प ढूंढने होंगे.
चीफ जस्टिस का ये बयान कुछ ही देर में मीडिया के साथ साथ सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. बयान के कुछ देर बाद ही सोशल मीडिया पर उनके बयान के साथ REET से जुड़े सैकड़ों मैसेज और ट्वीट किए जाने लगे. उनके इस बयान को रीट याचिका के निर्णय से जोड़कर देखा जाने लगा. गौरतलब है कि इस मामले की सीबीआई जांच को लेकर राजस्थान हाई कोर्ट में भी कई याचिकाएं दायर है. एबीवीपी की ओर से दायर एक जनहित याचिका सुनवाई करने वाली बेंच ने मामले की जांच सीबीआई से कराने से इनकार कर दिया था. इस बेंच की अध्यक्षता खुद चीफ जस्टिस के तौर पर जस्टिस अकील कुरैशी कर रहे थे.
अधिवक्ता चैंबर्स विवाद से बढ़ीं तल्खियां
5 माह के इस कार्यकाल में जस्टिस अकील कुरैशी के सामने एक मौका ऐसा भी आया जब बार और बेंच के रिश्तों के बीच तल्खियां बढ़ गईं. 4 दिसंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अजय रस्तोगी ने जयपुर जिला कोर्ट की नई बिल्डिंग और अधिवक्ता चैबर्स का उद्घाटन किया. दो दिन बाद ही 6 दिसंबर को जिला कोर्ट में बने इन 56 चैंबर्स पर अधिवक्ताओं ने बिना प्रक्रिया का पालन किए कब्जा कर लिया. किसी भी हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के लिए ये स्थिति प्रशासनिक तौर पर बेहतर नहीं कही जा सकती.
उद्घाटन से पहले ही तत्कालीन बार अध्यक्ष और महासचिव ने जयपुर जिला जज से तुरंत ही चैंबर्स आवंटन का निवेदन किया था. लेकिन जिला जज के सामने अपनी मुश्किलें थीं और वे इस मामले को थोड़ा समय देना चाहते थे. दूसरी तरफ तत्कालीन बार का कार्यकाल कुछ दिनों बाद ही समाप्त हो रहा था. ऐसे में तत्कालीन बार अध्यक्ष अनिल चौधरी और महासचिव सतीश शर्मा पर कब्जा को जिम्मेदार माना गया, लेकिन किसी भी दस्तावेज में उनका नाम नहीं था.
जब एक ही रात में चैंबर्स पर हो गया कब्जा
5-6 दिसंबर की रात से सुबह तक 400 अधिवक्ताओं ने 56 चैंबर कब्जा कर लिया था. प्रत्येक चैंबर में 6 से 8 अधिवक्ताओं ने कब्जा जमाने के साथ ही टेबल कुर्सियां तक रख दी. यही नहीं एक ही रात में सभी चैंबर के बाहर नाम तक लिख दिए गए. इस मामले में जयपुर के जिला जज पर भी सवाल खड़े हो गये. कुछ अधिवक्ताओं ने इस मामले को लेकर हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर कर दी. जिला जज ने भी कोर्ट में जानकारी दी कि अब तक कोर्ट प्रशासन को इन चैंबर्स का पीडब्ल्यूडी से कब्जा तक प्राप्त नहीं हुआ है. ऐसे में फिर से बिना पीडल्यूडी से कब्जा लिए चैंबर्स का उद्घाटन कराने पर भी सवाल खड़े हुए. मामले की सुनवाई एकलपीठ से मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में बनी विशेष खण्डपीठ के सामने रखी गयी. इस मामले से जुड़ी सभी याचिकाओं को एक साथ सूचीबद्ध करते हुए कोर्ट ने 25 फरवरी को सुनवाई की. ओपन कोर्ट में सीजे अकील कुरैशी ने मामले में नाराजगी जताते हुए बेहद मार्मिक टिप्पणी की. चीफ जस्टिस अकील कुरैशी ने यहां तक कह दिया कि वे कुछ दिनों बाद राजस्थान से जा रहे हैं, लेकिन उनके दिल में एक खलिस हमेशा बनी रहेगी. कि अधिवक्ताओं ने अवैध रूप से इन चैंबर्स पर कब्जा किया. इस मामले में सीजे ने पूर्व अध्यक्ष और महासचिव को अपना स्टैण्ड क्लीयर करने का आदेश भी जारी किया.
एक खलिस लेकर जाऊंगा
राजस्थान सीजे ने अदालत में इस मामले में सुनवाई करते हुए एक मौखिक टिप्पणी की थी. राजस्थान सीजे ने कहा था कि वे राजस्थान से जा रहे हैं लेकिन उनके दिल में एक खलिस हमेशा बनी रहेगी. बार और बैंच के बीच बढ़ती तल्खियों को देखते हुए पूर्व अध्यक्ष अनिल चौधरी और महासविचव सतीश शर्मा आगे आए. इन दोनों ने कोर्ट के अंदर राजस्थान सीजे की इस खलिस को एक मिठास में बदलने का बीड़ा उठाया. दोनों ही पूर्व पदाधिकारियों ने आनन फानन में दो दिन के भीतर सभी अधिवक्ताओं से समझाइश कर चैंबर्स को खाली कराने में सफल हुए. अधिवक्ता राजस्थान सीजे की इस टिप्पणी से काफी प्रभावित नजर आए थे. ऐसे में उन्होंने भी चैंबर्स को खाली करने में स्वेच्छा से साथ देना मंजूर किया. ऐसे में दोनों पदाधिकारियों के साथ सीनियर एडवोकेट एस के गुप्ता, आर बी माथुर, चिमनाराम पुनिया, पूर्व अध्यक्ष राममनोहर शर्मा, सुरेन्द्रसिंह नरूका, शिवचंदू साहू, रोहिताश भास्कर, कांताप्रसाद शर्मा और ए के जैन सहित दर्जनों अधिवक्ताओं ने इस भूमिका में साथ दिया. डॉ. अभिनव शर्मा ने इस मामले में अधिवक्ताओं द्वारा किये गये प्रयास को राजस्थान सीजे तक पहुंचाया और इस पर शीघ्र सुनवाई का निवेदन किया.
और फिर हुई हैप्पी एंडिंग
चीफ जस्टिस अकील कुरैशी के सेवानिवृत्त होने की तारीख 6 मार्च तय थी. वहीं इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख कोर्ट में 7 मार्च रखी गयी थी. लेकिन बार के पूर्व अध्यक्ष-महासचिव सहित दूसरे अधिवक्ताओं की ओर से की गई कवायद से सीजे कुरैशी काफी प्रभावित हुए. सुनवाई से एक दिन पूर्व 4 मार्च को बार अध्यक्ष और महासचिव ने अधिवक्ताओं के साथ मिलकर सभी चैंबर्स की चाबियां जिला जज को सौंप दी. कोर्ट में जब ये जानकारी दी गयी तो चीफ जस्टिस ने इसका स्वागत किया. ऐसे में उन्होने इस मामले की सुनवाई अपने अंतिम कार्यदिवस 5 मार्च को प्रथम केस के रूप में करना तय किया. शनिवार को इस मामले पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि वे एक खलिस लेकर राजस्थान से जा रहे थे लेकिन आज वो भी समाप्त हो गयी है और मैं बहुत खुश हूं. उनके साथी जज जस्टिस पंकज भण्डारी ने कहा सुबह का भूला शाम को घर आ जाये, तो उसे भुला नहीं कहते. चीफ जस्टिस ने अपने फैसले में भी बार के पूर्व पदाधिकारियों की तारीफ करते हुए कहा कि पूर्व में कुछ भी हुआ हो, लेकिन अंत में सबकुछ अच्छा ही होता है.
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