तलाक देने में मुस्लिम पति के पूर्ण विवेकाधिकार के खिलाफ याचिका

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने नोटिस जारी किया और केंद्र को याचिका के संबंध में जवाब देने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 13, 2022, 11:36 AM IST
  • याचिकाकर्ता महिला ने याचिका में आरोप लगाया है
  • यह प्रथा ''मनमानी, शरीयत विरोधी, असंवैधानिक है
तलाक देने में मुस्लिम पति के पूर्ण विवेकाधिकार के खिलाफ याचिका

नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी को किसी भी समय बेवजह तलाक (तलाक-उल-सुन्नत) देने के ''पूर्ण विवेकाधिकार'' को चुनौती देने वाली याचिका पर बुधवार को केंद्र से जवाब मांगा. 

आठ सप्ताह का समय दिया
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने नोटिस जारी किया और केंद्र को याचिका के संबंध में जवाब देने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया. मुस्लिम महिला (विवाह संरक्षण अधिनियम) 2019 के तहत पति द्वारा पत्नी को किसी भी तरह से ''तीन बार तलाक'' बोल कर, तलाक दिया जाना गैर-कानूनी है. इसे 'तलाक-ए-बिद्दत' कहा जाता है. 

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याचिकाकर्ता महिला ने क्या कहा

याचिकाकर्ता महिला ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि यह प्रथा ''मनमानी, शरीयत विरोधी, असंवैधानिक, भेदभावपूर्ण और बर्बर'' है. साथ ही अदालत से अनुरोध किया कि किसी भी समय अपनी पत्नी को तलाक देने के लिए पति के पूर्ण विवेकाधिकार को मनमाना घोषित किया जाए.

आपको बता दें कि तीन साल पहले तीन तलाक विरोधी कानून आया था. 1 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक की प्रथा को खत्म करने के लिए संसद में ट्रिपल तलाक बिल पारित किया.

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