देहरादून: कोरोना की दूसरी लहर ने भारत में ऐसा कहर बरपाया कि हजारों लोगों को इसके कारण अपनी जान गंवानी पड़ी. लेकिन कोरोना संकट के बीच उत्तराखंड के नौवें मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने वाले तीरथ सिंह रावत को कोविड के कारण ही कुर्सी गंवानी पड़ी.
जी हां, यह पढ़कर आपको आश्चर्य हो रहा होगा लेकिन कोरोना की वजह से उपजे संवैधानिक संकट की वजह से ही चुनावी साल में तीरथ सिंह रावत को महज 115 दिन बाद सीएम की कुर्सी से बेदखल होना पड़ा है. शुक्रवार को दिल्ली में पार्टी आलाकमान से मुलाकात करने के बाद देहरादून लौटे तीरथ सिंह रावत ने सबसे पहले अपने कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाई और इस्तीफे के सवाल पर चुप्पी साध ली. लेकिन थोड़ी देर बाद राजभवन पहुंचे और राज्यपाल बेबी रानी मौर्या को अपना इस्तीफा सौंप दिया.
इस्तीफा देने के बाद तीरथ सिंह रावत ने संवाददाताओं से बात करते हुए बताया कि उनके इस्तीफा देने की मुख्य वजह संवैधानिक संकट रहा जिसमें निर्वाचन आयोग के लिए चुनाव कराना मुश्किल था. ऐसे में उन्होंने कहा, 'संवैधानिक संकट की परिस्थितियों को देखते हुए मैंने अपना इस्तीफा देना उचित समझा.'
कोरोना संक्रमित होने की वजह से बढ़ गई मुश्किलें
दरअसल मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद हरिद्वार कुंभ का आयोजन रावत के सामने सबसे बड़ी चुनौती था, लेकिन किसी तरह कोरोना की दूसरी लहर के बीच आयोजन संपन्न हुआ. इसी दौरान तीरथ सिंह रावत भी कोरोना से संक्रमित हो गए. जिसके कारण अप्रैल में हुए सल्ट उपचुनाव में वो अपनी दावेदारी नहीं पेश कर सके.
ऐसे में तीरथ सिंह की विधानसभा पहुंचने की राह कठिन हो गई. जिस कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. दरअसल उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में एक साल से कम का समय बचा है. ऐसे में सामान्य तौर पर उपचुनाव नहीं कराए जाते हैं. मौजूदा परिस्थिति में पौड़ी सीट से सांसद तीरथ सिंह का विधायक निर्वाचित हो पाना असंभव नजर आ रहा है. इसलिए आलाकमान को ये कड़ा फैसला लेना पड़ा.
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चुनाव को देखते हुए पार्टी को उठाना पड़ा कदम
अगर रावत 6 महीने तक पद पर रहते तो विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा को किसी नए व्यक्ति को सीएम बनाना पड़ेगा. उस स्थिति में पार्टी के अंदर असंतोष की स्थिति पैदा होती जिसका खामियाजा पार्टी को चुनाव में उठाना पड़ता और भाजपा फिलहाल ऐसी स्थिति में नहीं है.
क्या हो सकता है उपचुनाव?
पीपुल्स रिप्रेजेंटेशन एक्ट 1951 के मुताबिक, अगर विधानसभा का कार्यकाल एक साल से भी कम बचा है या फिर इलेक्शन कमीशन केंद्र से ये कह दे कि इतने समय में चुनाव कराना मुश्किल है, तो ऐसे में उप-चुनाव नहीं भी कराए जा सकते हैं. इस एक्ट के तहत चुनाव आयोग के पास ही ये अधिकार है कि चुनाव की जरूरत है या नहीं, वह तय करे. 1999 में ओडिशा के मुख्यमंत्री गिरधर गमांग थे तब भी विधानसभा का कार्यकाल साल से कम बचा था, पर चुनाव आयोग ने तब उप-चुनाव कराए थे.
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