तमिलनाडु में बदलाव की बयार, आजादी के बाद पहली बार इस मंदिर में दलितों की एंट्री

कड़ी पुलिस सुरक्षा के बीच तथा शीर्ष जिला और पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में दलितों  ने पूजा की माला, फूल और अन्य प्रसाद के साथ मंदिर परिसर में प्रवेश किया.

Edited by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 30, 2023, 10:19 PM IST
  • 70 साल बाद दलितों को मिले एंट्र.
  • प्रशासन के प्रयासों का है ये नतीजा.
तमिलनाडु में बदलाव की बयार, आजादी के बाद पहली बार इस मंदिर में दलितों की एंट्री

तिरुवन्नमलई. तमिलनाडु के तिरुवन्नमलई जिले के एक गांव में करीब 70 साल में पहली बार दलितों ने सोमवार को अपने गांव के मंदिर में पूजा-अर्चना की. इससे पहले जिला प्रशासन ने 'प्रभावशाली जातियों' के साथ 'शांति वार्ता' कराई थी. कड़ी पुलिस सुरक्षा के बीच तथा शीर्ष जिला और पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में, अनुसूचित जाति से संबंधित ग्रामीणों ने पूजा की माला, फूल और अन्य प्रसाद के साथ मंदिर परिसर में प्रवेश किया.

उन्होंने मंत्रोच्चारण के साथ देवता की जय-जयकार की और पूजा की. यह उत्तरी तिरुवन्नमलई जिले में थंनद्रमपत्तू तालुक का थेनमुदियानूर गांव है और पूजा का स्थान मुथुमरियाम्मन मंदिर है. अधिकारियों ने विशेष रूप से यह उल्लेख नहीं किया कि यह पहली बार है कि दलित गांव के मंदिर में जा रहे हैं लेकिन अनुसूचित जाति के लोगों ने कहा कि वे पहली बार मंदिर में प्रवेश कर रहे हैं.

'80 साल तक दलित गांव के मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाए'
स्थानीय लोगों का मानना है कि मंदिर 80 साल पुराना है. सरकार ने कहा कि यह 70 साल पुराना है. दलित निवासी सी मुरुगन ने संवाददाताओं से कहा, 'करीब 80 साल तक दलित गांव के मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाए. पुलिस अधिकारियों सहित जिले के अधिकारियों ने मिलकर हमें पूजा करने की नई आजादी दी है.'

क्या बोले जिले के डीएम
जिला कलेक्टर बी मुरुगेश ने कहा कि मंदिर 70 साल पुराना है और हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग से संबंधित है. उन्होंने कहा, 'भारतीय संविधान के तहत सभी समान हैं. किसी भी मामले में भेदभाव नहीं होना चाहिए.' 

शांति वार्ता में कौन-कौन थे शामिल
मुरुगेश ने कहा कि दलितों के प्रवेश का विरोध करने वालों को यह बता दिया गया था और शांति वार्ता जिला अधिकारियों द्वारा शुरू की गई थी जिसमें पुलिस और राजस्व अधिकारी शामिल थे. उनके मुताबिक, आखिरकार, इस मुद्दे को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया और दलितों ने मंदिर में पूजा की.

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