नई दिल्लीः नए अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने वालीं न्यायमूर्ति लक्ष्मण चंद्रा विक्टोरिया गौरी का अधिवक्ता से न्यायाधीश तक का सफर उनके कानूनी पेशे से 25 साल के शानदार जुड़ाव और सिविल, आपराधिक, कर एवं श्रम से जुड़े विषयों पर गहरी पकड़ से प्रेरित है. कानून की उत्कृष्ट समझ के बूते उन्होंने बेहतरीन अधिवक्ता के रूप में ख्याति अर्जित की. वह मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरई पीठ में असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल भी रहीं.
कई वीडियो सोशल मीडिया पर हुए वायरल
निर्भीक आवाज के साथ उनके सार्वजनिक भाषण, जिनमें से कुछ अब भी सोशल मीडिया में उपलब्ध हैं,दर्शाते हैं कि वह मुखर होने के साथ वह विषयों की जानकार भी हैं. पूर्व में वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) (केंद्र में सत्तारूढ़) से जुड़ी थीं. एक तमिल टेलीविजन शो में उन्होंने भाजपा नीत केंद्र सरकार के समर्थन में शानदार दलील दी और प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना समेत अन्य केंद्रीय योजनाओं का उल्लेख किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि तमिलनाडु के लोगों को अपनी ‘सोच’ बदलने की जरूरत है.
हालांकि, हाल ही में वह सुखिर्यों में तब आईं जब कानूनी पेशे से जुड़े एक धड़े ने न्यायाधीश के रूप में उनकी पदोन्नति का विरोध किया और अल्पसंख्यकों के खिलाफ उनके कथित ‘नफरत’ वाले भाषण को लेकर विरोध जताया.
गौरी पर लगा ये आरोप
मद्रास उच्च न्यायालय विधिज्ञ संघ के सदस्यों द्वारा हाल ही में राष्ट्रपति और उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम को सौंपे गए एक ज्ञापन में दावा किया गया था कि गौरी ने ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा’ विषय पर बोलते हुए अल्पसंख्यकों के प्रति आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. उन्होंने आरोप लगाया था कि गौरी के 'प्रतिगामी विचार' पूरी तरह से मूलभूत संवैधानिक मूल्यों के विपरीत हैं और उनकी गहरी धार्मिक कट्टरता को दर्शाते हैं.
1995 से वकालत चालू की
गौरी का जन्म कन्याकुमारी जिले में 21 मार्च, 1973 में हुआ. वह तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के पश्चिमी नेयूर गांव से हैं. उन्होंने राजकीय मदुरई लॉ कॉलेज में विधि की पढ़ाई की और वर्ष 1995 में वकालत करना शुरू किया. उच्चतम न्यायालय ने गौरी को अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने से रोकने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, लेकिन याचिकाकर्ताओं के करीबी सूत्रों ने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले ने मामले के अंत का संकेत दिया और कानूनी लड़ाई को आगे बढ़ाने की कोई गुंजाइश नहीं दिखती.
सूत्रों ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि याचिकाकर्ता कार्यकर्ता नहीं हैं और गौरी की नियुक्ति का विरोध करने के लिए मामले को शीर्ष अदालत में ले जाना न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संविधान के मूल्यों की रक्षा करना का एक कर्तव्य था. याचिकाकर्ता अधिवक्ता अन्ना मैथ्यू, सुधा रामलिंगम और डी. नागासैला ने अपनी याचिका में गौरी द्वारा मुस्लिमों और ईसाइयों के खिलाफ दिए गए कथित ‘नफरती’ भाषणों का जिक्र किया था.
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