नई दिल्लीः मुगल बादशाहों को महान बताने के प्रयास में वामपंथी इतिहासकारों ने देश का इतिहास बिगाड़ दिया. इसके लिए वे ऑफेंस इज द बेस्ट डिफेंस (आक्रमण बचाव का सबसे मुफीद तरीका) का फॉर्मूला अपनाते हैं. यह तरीका फॉर्मूला वामपंथियों के इतिहासलेखन का प्राण तत्व रहा है. पहले वे इतिहास की तस्वीरों का विचारधाराई फोटोशॉप करते हैं. फिर फोटोशॉप तस्वीरों को अपनी खांटी विचारधारा के फ्रेम में फिट कर देते हैं. उनकी छेड़छाड़ पर कोई सवाल न उठाए, इसके लिए लगे हाथ वे विरोधियों को कठघरे में खड़ा कर देते हैं.
'अलग-अलग तरीकों से लोगों तक पहुंचता है इतिहास'
इसका उदाहरण प्रो. हरबंस मुखिया के व्याख्यान से मिलता है. उन्होंने डॉ. असगर अली इंजीनियर व्याख्यानमाला की 14वीं कड़ी में व्याख्यान दिया था. उनका ये व्याख्यान जन मीडिया के फरवरी 2020 के अंक-95 में प्रकाशित भी हुआ.
उन्होंने कहा, 'इतिहास से हमारा परिचय केवल स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाई जाने वाली पुस्तकों के माध्यम से नहीं होता बल्कि यह कई अलग-अलग तरीकों से समाज तक पहुंचता है. कई बार, इतिहास के किसी विशेष संस्करण का प्रचार-प्रसार संगठित और सुनियोजित तरीके से किया जाता है, जैसा कि आरएसएस जैसे संगठन करते आ रहे हैं.'
छेड़छाड़ के प्रति आगाह कर सेट किया एजेंडा
मुखिया अपने इसी आख्यान में इतिहासलेखन में हो रही विचारधाराई छेड़छाड़ के प्रति लोगों को आगाह भी करते हैं. वह कहते हैं, 'इस समय जो एक प्रवृत्ति दिख रही है, वो है इतिहास को तोड़-मरोड़कर, उसका मिथ्या संस्करण लोगों के सामने प्रस्तुत करना. ये विशेषकर भाजपा की ओर से मुगल बादशाहों के इतिहास को लेकर किया जा रहा है. कुछ समय पहले, भाजपा के एक राष्ट्रीय प्रवक्ता ने अकबर की तुलना हिटलर से की थी. जाहिर है कि वे न तो अकबर के बारे में कुछ जानते हैं और ना ही हिटलर के बारे में. इसी तरह ये झूठ भी फैलाया जा रहा है कि मुगलों ने तलवार के दम पर लाखों हिन्दुओं को मुसलमान बनाया. ये न तो तत्कालीन दस्तावेजों से प्रमाणित होता है और ना ही बाद के जनगणना आकंड़ों से.'
अब आप समझ गए होंगे कि हरबंस मुखिया ने अपने आख्यान के शुरू में ही क्यों आरएसएस जैसे संगठनों को निशाने पर ले लिया था, ताकि मुगल शासकों को लेकर जो मिथ्या प्रचार उन्हें करना है, उसपर कोई सवाल उठाने की हिमाकत करे तो वे सहजता से कह सकें, 'मैंने तो पहले ही बता दिया था.'
'अकबर ने रानी दुर्गावती पर किया था आक्रमण'
यहां यह जानना जरूरी हो जाता है कि हरबंस मुखिया ने अकबर के बारे में जो कहा या लिखा है, वो तथ्यों की कसौटी पर कितना खरा उतरता है. इतिहासकार आरसी मजूमदार की एक किताब है 'द मुगल एम्पायर'.
द मुगल एम्पायर के वाल्यूम सात में मजूमदार लिखते हैं, 'सन् 1564 में अकबर ने अपनी हवस की शांति के लिए रानी दुर्गावती पर आक्रमण किया, लेकिन एक वीरतापूर्ण संघर्ष के बाद अपनी हार निश्चित देखकर रानी ने अपनी ही छाती में छुरा घोंपकर आत्महत्या कर ली. लेकिन, उसकी बहन और पुत्रवधू को को बंदी बना लिया गया और अकबर ने उन्हें अपने हरम में ले लिया. उस समय अकबर की उम्र 22 वर्ष और रानी दुर्गावती की 40 वर्ष थी.
जानिए फतहनामा-ए-चित्तौड़ में क्या लिखा है
युद्ध में हारी हुई रानी को आत्महत्या करनी पड़े और उनके रिश्तेदारों को बादशाह अपने हरम का हिस्सा बनाए तो ऐसे राजा को किस नजरिए से महान मानेंगे आप? इस सवाल का जवाब मुमकिन है हरबंस मुखिया जैसे वामपंथी इतिहासकार ये कह कर दें कि आरसी मजूमदार तो संघी मानसिकता वाले इतिहासकार हैं. ऐसे में जरूरी हो जाता है कि अकबर के उस फतहनामा को देखा जाए जो उसने चित्तौड़ की विजय के बाद जारी किए थे. चित्तौड़ विजय के बाद मार्च 1586 में अकबर की ओर से जारी किया गया फतहनामा-ए-चित्तौड़ कुछ इस प्रकार हैः
'अल्लाह की ख्याति बढ़े, इसके लिए हमारे मुजाहिदीनों ने नापाक काफिरों की अपनी बिजली की तरह चमकती कड़कड़ाती तलवारों से हत्या कर दी. हमने अपना बहुमूल्य समय और अपनी शक्ति को घिज़ा (जिहाद) में ही लगा दिया है और अल्लाह के सहयोग से काफिरों के अधीन बस्तियों, किलों, शहरों को विजय कर अपने अधीन कर लिया है. रहमत वाला अल्लाह उन्हें त्याग दे और उन सभी का विनाश कर दे. हमने पूजा स्थलों, उनकी मूर्तियों और काफिरों के अन्य स्थानों का विध्वंस कर दिया है.'
अकबर की घृणित सांप्रदायिक सोच की इससे पुख्ता दूसरी कोई मिसाल नहीं हो सकती, लेकिन हरबंस मुखिया जैसे वामपंथी इतिहासकार उसे ऐसे पेश करते हैं गोया उससे महान शासक हिन्दुस्तान की धरती पर पैदा ही ना हुआ हो.
अकबर के दरबारी इतिहासकार के तथ्यों को कर दिया जमींदोज
इस तरह के इतिहासकारों ने अकबर के दरबारी इतिहासकार के लिखे तथ्यों को भी जमींदोज कर दिया, क्योंकि उससे अकबर को महान बताने की उनकी मुहिम में पलीता लग जाता. अकबर के एक दरबारी इमाम अब्दुल कादिर बदाउनी ने मुन्तखाव-उत-तवारीख से इतिहास अभिलेख लिखा है. इसका अंग्रेजी अनुवाद वी. स्मिथ नाम के अंग्रेज इतिहासकार ने अकबर दी ग्रेट मुगल नाम से किया है.
इसके पेज नंबर 108 पर लिखा है, '1576 में जब शाही फौजें राणाप्रताप के खिलाफ युद्ध के लिए अग्रसर हो रही थीं तो मैंने (अब्दुल कादिर बदाउनी) युद्ध अभियान में शामिल होकर हिन्दुओं के रक्त से अपनी दाढ़ी को भिगोंकर शहंशाह से भेंट की अनुमति के लिए प्रार्थना की. मेरे व्यक्तित्व और जिहाद के प्रति मेरी निष्ठा भावना से अकबर इतना प्रसन्न हुए कि उन्होंने मुझे मुठ्ठी भर सोने की मुहरें दे डालीं.'
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