नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश के सबसे कुख्यात माफियाओं में से एक अतीक अहमद अब साबरमती जेल में सजा काट रहा है. उसे उमेश पाल के अपहरण केस में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है. अब अतीक की आगे की जिंदगी जेल में ही बीतेगी. पहले इलाहाबाद और अब के प्रयागराज जिले में अतीक अहमद की एक वक्त तूती बोलती थी. उसके रसूख का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह इलाहाबाद की शहर पश्चिमी सीट से 5 बार विधायक रहा.
5 बार में से 3 बार अतीक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता. एक बार सपा तो दूसरी बार अपना दल के टिकट पर विधानसभा पहुंचा. एक बार वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर फूलपुर से सांसद भी बना. फूलपुर वही सीट है जहां से कभी भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लोकसभा चुनाव जीता था. और उनके सामने थे दिग्गज समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया.
राजू पाल हत्याकांड से शुरू हुई उलटी गिनती
अतीक के प्रभाव को इस हिसाब से समझा जा सकता है कि एक कार्यक्रम में मंच पर बैठे तमाम नेताओं का परिचय कराते हुए उसने कहा था कि हम अगर चाहते तो 10 मंत्रियों को इस मुशायरे में बुला सकते थे. लेकिन बाहुबली अतीक से सबसे बड़ी गलती हुई साल 2005 में, जब इलाहाबाद में सरेआम नवनिर्वाचित विधायक राजू पाल की हत्या हुई. ऐसा नहीं है कि राजू पाल का अपराध से कोई लेना-देना नहीं था. राजू पाल भी उस वक्त इलाहाबाद में हिस्ट्रीशीटर ही था लेकिन उसने अतीक के भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ को लोकतांत्रिक लड़ाई यानी चुनाव में हराया था. कहा जाता है कि अतीक अहमद ने इस हार को अपना 'अपमान' माना. इसका इंतकाम राजू पाल की दिनदहाड़े हत्या कर लिया गया.
वर्चस्व की जंग में सबसे बड़ी चूक
राजू पाल की हत्या के बाद उसके समर्थकों ने इलाहाबाद की सड़कों पर जमकर बवाल काटा था. लेकिन वक्त के साथ यह गुस्सा ठंडा पड़ता गया. इसके बाद खाली हुई इलाहाबाद की शहर पश्चिमी सीट पर फिर उपचुनाव हुए और उसमें अशरफ को जीत मिली. राजू पाल की विधवा पूजा पाल को हार का सामना करना पड़ा था. यानी अतीक अहमद ने अपनी वर्चस्व को पूरी तरीके से स्थापित करने में सफलता हासिल कर ली थी. लेकिन यही वो वक्त था जब इलाहाबाद शहर में लोगों के बीच अतीक को लेकर खौफ भी कुछ ज्यादा ही पनपा. यहीं पर अतीक अहमद से सबसे बड़ी चूक हुई थी. उसे लगा था कि वह अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की हत्या कर अपना वर्चस्व कायम कर लेगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. यही वो समय था जब अतीक की आपराधिक कहानी के अंत की शुरुआत हो चुकी थी.
उमेश पाल के मामले ने फंसाया
हाल में अतीक को जिस उमेश पाल के अपहरण के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी वो भी राजू पाल के ही साथी थे. राजू पाल की हत्या के बाद अतीक अपने गुनाह पर पर्दा डालने के लिए उमेश पाल को धमकाता रहता था. इसी क्रम में उनका अपहरण और टॉर्चर हुआ था. मामला 2006 का था लेकिन इसमें FIR 2007 में दर्ज हुई थी. दरअसल उस वक्त अतीक अहमद के सिर पर समाजवादी पार्टी द्वारा संरक्षण के आरोप भी लगते रहे हैं.
बसपा सरकार में तेज हुई थी कार्रवाई
राजू पाल की हत्या के बाद 2007 में आई बसपा सरकार अतीक अहमद पर कार्रवाई तेज हुई थी. फिर 2012 में आई सपा सरकार में उसका प्रभाव बढ़ने लगा. 2016 में एक कार्यक्रम के दौरान अतीक ने मंच से कहा था मंच से कहा था कि हम अगर चाहते तो 10 मंत्रियों को इस मुशायरे में बुला सकते थे. लेकिन 2017 में सपा में हुए पारिवारिक विवाद में अतीक किनारे लगा दिया गया. और यही वो साल था जब था यूपी में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने.
योगी सरकार में टूटा साम्राज्य
योगी सरकार आने के बाद अतीक अहमद के अवैध साम्राज्य को बुरी तरह तोड़ा गया है. उसकी अवैध संपत्तियों की कुर्की की जा रही है. प्रयाग और उसके आस-पास के इलाकों में अतीक का जो खौफ था उसे खत्म कर दिया गया. यह भी माना जा रहा है कि अतीक ने उमेश पाल की हत्या की अपना 'आपराधिक वजूद' बजाए रखने के लिए करवाई. खैर, इस हत्याकांड के बाद यूपी पुलिस अतीक के परिवार को दिन-रात तलाश रही है. यह भी माना जा रहा है कि उमेश पाल हत्याकांड के साथ अतीक के 'आपराधिक और अवैध साम्राज्य' के अंत का समय आ चुका है.
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