नई दिल्लीः अपनी शायरी में हिन्दुस्तान की गंगा-जमनी तहजीब का हवाला देने वाले नामचीन शायर की सोच की बुनियाद क्या वाकई तालिबानी है? ...या फिर यूपी की चुनावी हवा को भांपकर वोटों को बहकाने का ठेका उन्होंने शातिराना अंदाज में लिया है? ये सवाल इसलिये उठ रहा है. क्योंकि मुनव्वर राणा ने फिर अपने बयान से पलटी मार ली है. दो दिन पहले तक उनकी जुबां तालिबान की तारीफ में कसीदे पढ़ रही थी. लेकिन दो दिन बाद ही उनकी आंखों का जाला अचानक साफ होता दिख रहा है. मुनव्वर राणा का नया बयान सुन लीजिए.अब वो कह रहे हैं कि 'तालिबान जंगली कौम है और हिन्दुस्तान मुल्क है'.
राना पर दर्ज हुआ है मुकदमा
तालिबानी शायर की जुबां पर ये सफाई इसीलिये आई, क्योंकि वाल्मीकि समाज ने उनके खिलाफ धार्मिक भावनाओं को आहत करने का मुकदमा दर्ज करवा दिया. लेकिन मुनव्वर राणा के हलक से ये बयान कितनी मुश्किल से निकला. इसकी गवाही इस तालिबानी शायर ने अगले ही पल दे दिया. पैगंबर पर सवाल उठाने वालों का सिर काटने के लिये तलवार उठाने की धमकी देने वाला ये शायर तालिबान के कत्लेआम को सही ठहराने के लिये रामायण की रचना करने वाले महर्षि वाल्मीकि को कठघरे में खड़ा कर बैठा.
चूंकि जबान से तीर निकल चुका है और वाल्मीकि समाज ने केस भी दर्ज करवा दिया, लिहाजा मुनव्वर राणा की जुबां यू-टर्न लेकर योगी और मोदी की तारीफ में जुट गई. इस बार उन्होंने कहा कि मैं मोदी जी को पसंद करता हूं. मेरी कमजोरी है कि मैं तो मोदी जी से इश्क करता हूं.
क्या मुनव्वर का है सियासी कनेक्शन
मुनव्वर राणा के इस बयान ने यूपी चुनाव की बिसात बिछाने में जुटी सियासी पार्टियों को चौंका दिया. सवाल पूछे जाने लगे किओवैसी की तरह क्या मुनव्वर राणा भी सियासत की लैला बनने का जुगाड़ जमा रहे हैं? मुलायम सिंह यादव से पुरानी नजदीकियां क्या उन्हें 2022 के यूपी चुनाव में ध्रुवीकरण की बिसात बिछाने को मजबूर कर रही हैं? या फिर बेटी सुमैया राणा की समाजवादी पार्टी में एंट्री को और धारदार बनाने के चक्कर में उनकी जुबां तालिबानी बंदूकों की तरह गरज रही हैं?
यूपी छोड़ने का ऐलान किया
अखिलेश ने पिछले दिनों जिस तरह यूपी में 400 सीटें जीतने का खम ठोका, शायद उसका अंदाजा मुनव्वर राणा को बहुत पहले हो गया था. शायद उसी खुशफहमी में आकर उन्होंने दूसरी बार योगी सरकार बनने पर यूपी छोड़ने का एलान कर डाला था. अब तालिबान की तारीफ से लेकर महर्षि वाल्मीकि को दहशतगर्दों की कतार में खड़े करने की कोशिश सामने आई है. मुनव्वर राणा का ये बयान दरअसल यूपी के मुसलमानों को भड़काने का वो दांव लग रहा है, जिसका इशारा उन्हें अपने सियासी आकाओं से मिला था.
अब जिस तरह अफगानिस्तान में तालिबान के खूनखराबे को सही ठहराने की कोशिश में वो अपनी बात को खींचकर राममंदिर और बाबरी मस्जिद तक ले जा रहे हैं. वो बता रहा है कि ये शायर की जुबां नहीं है, ये तो सियासत की बोली है, नफरत का दांव है.
ओवैसी, जिन्ना और मुनव्वर राणा!
सवाल ये है कि तालिबान-वाल्मीकि और बाबरी मस्जिद-राममंदिर का किस्सा छेड़कर क्या मुनव्वर राणा यूपी में मुस्लिम वोटबैंक के ध्रुवीकरण को नई धार देने में जुटे हैं? लेकिन भड़काऊ सियासत के मामले में ओवैसी के सामने कहां टिक पाएंगे तालिबानी शायर? ओवैसी तो अपनी भड़काऊ जुबान से अखिलेश के मुस्लिम वोटबैंक में पूरी तरह सेंध लगा चुके हैं.
मुनव्वर राणा कई दफे कोशिश करके देख चुके हैं, लेकिन नफरती जबान के मामले में वो ओवैसी को टक्कर नहीं दे पाते हैं. और शायद इसी कसक में वो भड़काऊ भाईजान को दूसरा जिन्ना ठहराते हैं. खैर अब तो सच पूरी तरह खुलकर सामने आ गया है. ओवैसी को जिन्ना कहने वाले मुनव्वर राणा खुद तालिबान की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं. खूनखराबे वाला तालिबानी निजाम उन्हें 'निजाम-ए-मुस्तफा' लग रहा है.और तालिबान के दहशतगर्द उन्हें आजादी के दीवाने नजर आ रहे हैं, जो उनकी नजर में बेगुनाह इंसानों पर नहीं, अपने दुश्मनों पर गोलियां बरसा रहे हैं.
मुनव्वर साहब, कम से कम मां-बहनों पर जान लुटाने वाली अपनी शायरी का ही भरम रख लेते. तालिबान के दहशतगर्द अफगानिस्तान की महिलाओं पर जिस तरह जुल्म ढा रहे हैं. उनके दर्द का अहसास तब शायद आपको हो पाता.
शायर जब सियासत की जुबां बोलने लगे तो खूनखराबा और गहराने की आशंका बनने लगती है. गौर कीजिएगा मुनव्वर साहब, यूपी में आपकी जुबां उसी तालिबानी हथियार की शक्ल लेती जा रही है. 2014 और 2019 के चुनाव में आपका ये शातिरअंदाज दुनिया देख चुकी है.
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