नई दिल्ली: महाराष्ट्र में हर कोई अपनी ताकत झोंक रहा है, उद्धव ठाकरे अपनी सरकार और कुर्सी बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. तो एकनाथ शिंदे एंड कंपनी उद्धव को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए जोर लगा रही है. शरद पवार को अपनी सियासी छवि बची रहने की चिंता सता रही है, तो कांग्रेस सत्ता में बने रहने के लिए विनती कर रही है. मगर इन सबके बीच बीजेपी के सारे नेता और राज ठाकरे इस पूरे सियासी सर्कस का मजा लूट रहे हैं.
महाराष्ट्र के चक्रव्यूह में राज ठाकरे की बाजी
एक हफ्ते गुज़र चुके हैं, लेकिन महाराष्ट्र का सियासी संकट का जस का तस है. अभी तक ये पूरा सियासी खेल शह और मात की बाजी तक नहीं पहुंच पाया है. मामला भले ही सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है, नोटिस तक जारी कर दिए गए हैं. हर कोई सोच रहा है कि इस सारी लड़ाई का नतीजा कब आएगा? तो वहीं अब सभी की निगाहें राज ठाकरे की गतिविधियों पर टिकी हुई हैं.
सवाल ये है कि पेंच कहां फंसा हुआ है, क्यों एकनाथ शिंदे बीजेपी के साथ विलय नहीं करना चाहते हैं, सबसे बड़ा सवाल ये है कि एकनाथ शिंदे अगर अपने समर्थक विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल नहीं होते हैं और अगर वो कानूनी लड़ाई भी हार जाते हैं तो उनका अगला कदम क्या होगा?
इसी के मद्देनजर महाराष्ट्र के सियासी चक्रव्यूह में एक नाम बेहद अहम और खास हो जाता है. वो नाम है उद्धव ठाकरे के चचेरे भाई राज ठाकरे का.. राज ठाकरे इस वक्त शिंदे एंड कंपनी के लिए सत्ता की सीढ़ी साबित हो सकते हैं.
बीजेपी नहीं तो मनसे को अपनाएंगे शिंदे?
महाराष्ट्र की सियासत में भले ही राज ठाकरे की पार्टी मनसे ने अब तक कोई बड़ा कमाल नहीं दिखाया हो, लेकिन राज ठाकरे की काबिलियत और सियासी सूझ बूझ पर कोई सवाल नहीं उठा सकता है, शायद यही वजह है कि सियासी दिग्गजों का मानना है कि राज ठाकरे एकनाथ शिंदे गुट की सत्ता की सीढ़ी बन सकते हैं.
सवाल यही है कि क्या महाराष्ट्र संकट का अंत राज ठाकरे करेंगे, क्या उद्धव के खिलाफ शिंदे का सियासी हथियार राज ठाकरे बनेंगे, क्या उद्धव ठाकरे और शिवसेना से राज ठाकरे अपना पुराना हिसाब चुकता करेंगे? ये सवाल इसलिए क्योंकि एकनाथ शिंदे ने भाजपा को विकल्प के तौर पर स्वीकारने से मुंह मोड़ लिया, शिंदे गुट के विधायक बार-बार ये कहते दिख रहे हैं कि वो भाजपा के साथ नहीं जाएंगे.
मगर ऐसा माना जा रहा है कि एकनाथ शिंदे भाजपा के बजाय राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना में शामिल हो सकते हैं. इसके लिए उन्होंने संभावना तलाशनी भी शुरू कर दी है.
ठाकरे से दगा कर ठाकरे के होंगे शिंदे
सूत्रों ने दावा किया है कि एकनाथ शिंदे ने राज ठाकरे को कई बार फोन किए. एकनाथ शिंदे राज ठाकरे को भी अपने साथ शामिल करना चाहते हैं. यही नहीं इसी मुद्दे पर सोमवार को राज ठाकरे के घर पर भी बैठक हुई. राज ठाकरे पिछले कई दिनों से स्वास्थ्य कारणों के चलते सियासी महकमे से थोड़ी दूरी पर थे. इधर महाराष्ट्र में खेला हो रहा है और राज ठाकरे की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, लेकिन अब वो एक बार फिर एक्टिव हो गए हैं.
इन सबके बीच ये सवाल भी उठता है कि एकनाथ शिंदे के सामने राज ठाकरे ही क्यों विकल्प नजर आ रहे हैं. एकनाथ शिंदे गुट बीजेपी में भी तो शामिल हो सकता है, लेकिन जैसा कि एकनाथ शिंदे के गुट के कई बागी विधायकों की प्रतिक्रियाएं आई कि बीजेपी में शामिल नहीं होना चाहते हैं. ऐसे में शिंदे गुट के लिए राज ठाकरे की पार्टी मनसे में जाना ज्यादा सहूलियत भरा कदम होगा.
राज ठाकरे मजबूरी या जरूरी?
सवाल यही है कि क्या राज ठाकरे के पास जाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प शिंदे गुट को नजर नहीं आ रहा है? आखिर ऐसा क्यों माना जा रहा है कि राज ठाकरे के साथ जाने में शिंदे गुट ज्यादा कम्फर्ट फील कर रही है, इसकी मुख्य 5 वजह आपको समझाते हैं.
पहली वजह
महाराष्ट्र की सियासत में ठाकरे परिवार के नाम का एक अलग ही वर्चस्व है. राज ठाकरे के पास ठाकरे परिवार की विरासत है.
दूसरी वजह
राज ठाकरे ने बाल ठाकरे के नेतृत्व में महाराष्ट्र की राजनीति में काफी काम किया है. उन्होंने कभी भी बालासाहब के विचारों का त्याग नहीं किया.
तीसरी वजह
बागी विधायक हिंदुत्व के मुद्दे पर भी शिवसेना से काफी नाराज हैं, ऐसे में राज ठाकरे की छवि कट्टर हिंदू नेता के तौर पर है.
चौथी वजह
महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना और एनसीपी के बाद महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना एक मजबूत संगठन के तौर पर देखी जाती है.
पांचवीं वजह
अब तक जो आरोप शिवसेना के बागी विधायकों पर लग रहे हैं, उन सभी खरीद-फरोख्त के आरोपों पर विराम लग जाएगा.
महाराष्ट्र की सियासत में ठाकरे नाम की बहुत अहमियत है. यही वजह है कि दो दिन पहले शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रस्ताव पास किया गया था कि शिवसेना और बाला साहेब ठाकरे का नाम कोई और इस्तेमाल नहीं कर सकता.
एकनाथ शिंदे भी जानते हैं, अगर बीजेपी से इतर अपने स्वतंत्र वजूद को जिदा रखना है कि ठाकरे या यूं कहें शिवसेना शब्द को नहीं छोड़ सकते. यही वजह है कि बागी विधायक कह रहे हैं कि हम हीं ओरिजनल शिवसेना हैं. किसी के साथ मर्जर नहीं करेंगे गठबंधन करेंगे.
शिंदे गुट के विधायक दीपक केसरकर ने बीजेपी, बच्चू कडू और राज ठाकरे के साथ मर्जर की अटकलों को खारिज किया. उन्होंने कहा कि 'हम ओरिजनल पार्लियामेंट्री पार्टी हैं, हम मर्जर किसी के साथ नहीं करेंगे. हम गठबंधन करेंगे.'
सवाल ये भी है कि क्या राज ठाकरे अपनी पार्टी को अपने चाचा यानि बाला साहेब ठाकरे की पार्टी शिवसेना के खिलाफ इस्तेमाल होने देने को तैयार होंगे? क्योंकि बालासाहेब अपने जिंदा रहते जो नसीहत देकर गए थे वो उन्हें जरूर याद होगा. बालासाहेब ठाकरे ने कहा था कि 'आज तुम्हें सम्मान शिवसेना और हिंदुत्व के नाम पर मिल रहा, इससे गद्दारी मत करो.'
ठाकरे नाम और हिंदुत्व की कश्ती उद्धव ठाकरे और एकनाथ दोनों के लिए जरूरी है. यही वजह है कि संजय राउत बार-बार बाप शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन बीजेपी कह रही है कि बाला साहेब के नाम पर किसी का कॉपी राइट नहीं है.
अगर एकनाथ शिंदे राज ठाकरे की पार्टी में विलय करते हैं तो बीजेपी के साथ गठबंधन करके आसानी से सरकार बन सकती है, लेकिन बीजेपी को राज ठाकरे पर भरोसा कम ही है. राज ठाकरे के तेवरों को संभालने में बीजेपी को मुश्किल हो सकती है. लेकिन राजनीति में कुछ भी नामुमकिन नहीं है. अब तो सिर्फ इस बात का इंतजार है कि महाराष्ट्र की सियासत आगे क्या होगा.
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