नई दिल्ली: प्रदूषण एक ऐसी समस्या है जिससे होने वाली मौतों और इससे होने वाले नुकसान का पता लगाने का कोई वैज्ञानिक आधार फिलहाल मौजूद नहीं है, लेकिन ये एक ऐसी बीमारी बन चुकी है जो 24 घंटे हमें नुकसान पहुंचा रही है. CSE यानी Centre for science and environment ने गर्मियों में वायु प्रदूषण के स्तर का डाटा जारी किया है.
इस डाटा के मुताबिक केवल दिल्ली जैसे बडे शहर ही नहीं, अब छोटे शहरों में भी प्रदूषण नए रिकॉर्ड बना रहा है. हाालांकि दिल्ली NCR रीजन अब भी प्रदूषण के मामले में टॉप पर है. दक्षिणी राज्यों के मुकाबले दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण का स्तर तीन गुना ज्यादा है. इस वर्ष पिछली गर्मी के मुकाबले प्रदूषण ज्यादा रहा है.
भारत के सबसे प्रदूषित शहर
इस रिपोर्ट के लिहाज से देखें तो अब भारत का सबसे प्रदूषित शहर राजस्थान का भिवाड़ी है जहां गर्मियों के दौरान प्रदूषण का औसत 134 रहा इसके बाद हरियाणा के मानेसर की बारी आती है, जो भारत का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर है. यहां गर्मियों के प्रदूषण का औसत 119 रहा. तीसरे नंबर पर मध्य प्रदेश का सिंगरौली जिला का है जहां प्रदूषण का स्तर 110 रहा इसके बाद हरियाणा के रोहतक और उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर का नंबर आता है.
भारत के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 12 शहर दिल्ली एनसीआर के हैं, गर्मियों में भारत के सबसे कम प्रदूषित शहरों की बात की जाए तो मिजोरम का एजवाल और तमिलनाडु का गुम्मीडिपुंडी सबसे कम प्रदूषित है. हालांकि उत्तर भारत के कुछ शहर ऐसे भी हैं जहां पिछली गर्मियों के मुकाबले इस बार प्रदूषण में कमी दर्ज हुई है.
वाराणसी में हुई रिकॉर्ड गिरावट
पहले नंबर पर उत्तर प्रदेश का वाराणसी है जहां प्रदूषण के स्तर में 59% की कमी आई. इसके अलावा बल्लभगढ़ जालंधर पाली आगरा और श्रीनगर में प्रदूषण का स्तर कम हुआ है.
प्रदूषण के यह आंकड़े 1 मार्च से 31 मई के बीच के हैं. इस दौरान के सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड का पीएम 2.5 डाटा को एकत्रित कर उसका विश्लेषण किया गया है. सीपीसीबी के 356 स्टेशन से यह डाटा लिया गया. यह स्टेशन भारत के 26 राज्यों के 174 शहरों में मौजूद हैं. प्रदूषण के मामले में पूरे उत्तर भारत का हाल सबसे खराब है और दिल्ली एनसीआर गर्मियों के दौरान प्रदूषण का हॉटस्पॉट बना है.
गर्मियों के औसत प्रदूषण का स्तर हुआ बेहद खराब
गर्मियों के मौसम में भी उत्तर भारत में पीएम 2.5 का स्तर 71 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर रहा है. इसके बाद पूर्वी भारत का नंबर आता है जहां पीएम 2.5 का स्तर 69 ग्राम माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर रहा है. पश्चिमी भारत में यह स्तर 54 रहा है. मध्य भारत में 46 जबकि उत्तर पूर्वी भारत में 35 और दक्षिण के राज्यों में यह स्तर 31 रहा है.
भारत में दिल्ली एनसीआर रीजन सबसे ज्यादा प्रदूषित पाया गया, इस रीजन में राजस्थान के भिवाड़ी में सबसे ज्यादा प्रदूषण का स्तर रिकॉर्ड किया गया. यहां प्रदूषण का औसत गर्मियों के दौरान 134 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर रहा है. मानेसर में यह स्तर 119 गाजियाबाद में 101 दिल्ली में 97 गुरुग्राम में 94 और नोएडा में पीएम 2.5 80 के करीब रहा है,
दक्षिण के राज्यों के मुकाबले एनसीआर रीजन का यह स्तर 3 गुना ज्यादा है. हालांकि यह गर्मियों का औसत प्रदूषण निकाला गया है, अगर बात इस बारे में करें कि 1 दिन में किस शहर में या किस इलाके में प्रदूषण पीक पर पहुंचता है तो उसमें बाजी बिहार ने मारी है. बिहार में गर्मियों में प्रदूषण का पीक याचरम 168 रहा है, उत्तर भारत में प्रदूषण का चरम स्तर 142 था. पश्चिमी भारत में 106 मध्य भारत में 89 उत्तर पूर्व में 81 और दक्षिण भारत में यह स्तर 65 रहा है.
बिहार में प्रदूषण बना चिंता का विषय
बिहार जहां पर प्रदूषण अपने चरम स्तर पर लगभग रोजाना पहुंचता रहा, वहां बिहार शरीफ में प्रदूषण का स्तर 285 तक चला गया. कटिहार में 245 और पटना में यह स्तर 200 तक पहुंचा.
उत्तर भारत में रोहतक में भी प्रदूषण का पिक काफी खराब रहा और यह 258 तक पहुंचा इन आंकड़ों से यह साफ होता है कि अब छोटे शहरों में भी प्रदूषण के हॉटस्पॉट बनते जा रहे हैं. पिछले वर्ष की गर्मियों के मुकाबले इस वर्ष गर्मियों में हर रीजन में प्रदूषण में बढ़ोतरी हुई है.
उत्तर भारत में पिछले वर्ष के मुकाबले सबसे ज्यादा बढ़ोतरी देखी गई जो 23% की और उत्तर भारत में एनसीआर रीजन में ही सबसे ज्यादा प्रदूषण बड़ा पिछले वर्ष के मुकाबले दिल्ली एनसीआर रीजन के लोगों ने 25.8% ज्यादा प्रदूषण झेला. मध्य भारत में 15% की बढ़ोतरी दर्ज हुई, पश्चिमी भारत में 4%, पूर्वी भारत में 1.8%, दक्षिण के राज्यों में प्रदूषण नहीं बढ़ा. नॉर्थ ईस्ट के रीजन में पिछले वर्ष के मुकाबले प्रदूषण के स्तर में कमी दर्ज हुई.
सीएससी की रिसर्चर अनुमिता रॉय चौधरी के मुताबिक गर्मियों में प्रदूषण के बढ़ने की वजह गाड़ियां इंडस्ट्री पावर प्लांट वेस्ट बर्नींग और धूल का ज्यादा उड़ना है और इन समस्याओं से निजात पाने के लिए बड़े स्तर पर जमीन पर काम करना होगा. जंगलों को कटने से बचाना होगा शहरों में तापमान कम करने के तरीकों पर काम करना होगा और फसलों में और जंगलों में लगने वाली आग पर काबू पाना होगा.
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