इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए सहमत, जल्द होगी हियरिंग

इलेक्टोरल/चुनावी बॉन्ड मामले में सुनवाई के लिए देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सहमति जता दी है. इस मामले में जल्द सुनवाई की जाएगी.

Written by - Nizam Kantaliya | Last Updated : Apr 5, 2022, 01:47 PM IST
  • चुनावी बॉन्ड मामले में सुनवाई को मिली मंजूरी
  • सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए जताई सहमति
इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए सहमत, जल्द होगी हियरिंग

नई दिल्ली: देश के राजनीतिक दलों को चुनावों में इलेक्टोरल/चुनावी बॉन्ड के जरिए की जाने वाली फंडिग के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए सहमति दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह चुनावी बाॉन्ड जारी करने वाले कानून को चुनौती देने वाले मामले की सुनवाई करेगा. मंगलवार को सुनवाई के दौरान एडवोकेट प्रशांत भूषण ने सीजेआई एन वी रमन्ना के सामने इस मामले को मेंशन किया.

चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने से किया था इंकार

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स सहित कई एनजीओ की ओर से लगातार इन इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगाने की मांग की जाती रही है. एडवोकेट प्रशांत भूषण ने एक वर्ष पूर्व भी पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु व अन्य राज्यों के चुनाव से पूर्व इस मामले को उठाया था. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने इन चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था.

मंगलवार को एक बार फिर से एडवोकेट प्रशांत भूषण ने सीजेआई के समक्ष इस मामले को मेंशन करते हुए कहा कि कोर्ट में इस मामले को एक साल से अधिक समय होने के बावजूद सूचीबद्ध नहीं किया गया है. हर दो महीने में चुनावी बॉन्ड की नई किश्त जारी की जा रही है. प्रशांत भूषण ने मंगलवार को ही एक नई रिपोर्ट जारी होने की बात कहते हुए कहा कि कलकत्ता की एक कंपनी ने आबकारी छापेमारी से बचने के लिए चुनावी बांड के जरिए 40 करोड़ रुपये का भुगतान किया है. जो कि लोकतंत्र समाप्त करने की तरह हैं.

सीजेआई एन वी रमन्ना ने इस पर कहा कि अगर ये COVID की वजह से नहीं होता, तो बहुत पहले ही इस पर सुनवाई हो जाती. हम शीघ्र इस मामले को उठाएंगे.

राजनीतिक दलों को फायदा पहुंचाने की आशंका

एडीआर की ओर से दायर याचिका में इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मुखौटा कंपनियों से राजनीतिक दलों को फायदा पहुंचाने की आशंका जतायी गयी है. याचिका में दावा किया गया है कि सत्ताधारी दल को अब तक जारी किये गये बॉन्ड के 60 प्रतिशत हिस्सा दिया गया है. इस मामले में बाद एक ओर याचिका दायर करते हुए अत्यधिक आवश्यक श्रेणी का बताते हुए शीघ्र सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने की गुहार लगायी थी. इस मामले पर अंतिम सुनवाई 20 जनवरी 2020 को हुई थी.

2018 में जारी कि गयी थी चुनावी बॉन्ड योजना

केन्द्र सरकार ने 2 जनवरी 2018 को इस चुनावी बॉण्ड या इलेक्ट्रोल बॉन्ड योजना की अधिसूचना जारी की थी. इस योजना के तहत कोई भी व्यक्ति एसबीआई से चुनावी बॉन्ड खरीद कर किसी भी राजनीतिक दलों को फंड कर सकता है. इस तरह का बॉन्ड खरीदने पर बैंक को ड्राफ्ट या चैक के जरिए भुगतान करना होता है.

पूर्व में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड का समर्थन किया था, लेकिन साथ ही सरकार से यह भी पूछा कि क्या राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त इस धन के प्रयोग पर कोई ‘नियंत्रण’ नहीं है.

चुनावी बॉन्ड बिना किसी अधिकतम सीमा के 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के रूप में जारी करता है. एसबीआई इन बॉन्डों को जारी करने और भुनाने के लिये अधिकृत बैंक है, ये बॉन्ड जारी करने की तारीख से पंद्रह दिनों तक वैध रहते हैं. ये बॉन्ड किसी भी पंजीकृत राजनीतिक पार्टी के खाते में ही देय होता है.

चुनावी बॉन्ड के दुरुपयोग का मुद्दा ही उठाया

सरकार के अनुसार चुनावी बॉन्ड योजना गलत तरीके से की जाने वाली फंडिंग का नियंत्रण करती है, क्योंकि यह चेक और डिजिटल लेन-देन पर जोर देती है, हालांकि इस योजना के कई प्रमुख प्रावधान इसे अत्यधिक विवादास्पद बनाते हैं. सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बॉण्ड के दुरुपयोग का मुद्दा ही उठाया गया है, क्योंकि इसके तहत न तो फंड देने वाले और ना ही फंड लेने वाले की जानकारी सार्वजनिक की जाती है.

चुनावी बॉण्ड केवल SBI के माध्यम से ही खरीदे जाते हैं, इसलिये केवल सरकार ही इनके संबंध में जानकारी रख सकती है और इसके जरिए वो दूसरे दलों को मिलने वाले फंड पर नजर रख सकती है.

गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने भी इस योजना में दानदाताओं के नाम सार्वजनिक नहीं करने और घाटे में चल रही कंपनियां जो कि केवल शेल कंपनियां हैं, उनको बॉन्ड खरीदने की अनुमति देने पर चिंता जताई थी.

सरकार ने इस योजना का बचावा करते हुए कहा था कि इस योजना से पूर्व जो भी चुनावी चंदा मिलता था वह नकद दिया जाता था, जिसे काले धन की संभावना काफी बढ़ जाती थी. चूंकि इस योजना के तहत चुनावी बॉन्ड केवल चेक या ई-भुगतान के जरिये ही खरीदा या भुनाया जा सकता है, इसलिये काले धन संबंधी चिंता खत्म समाप्त हो जाती है.

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इस योजना के अनुसार केवल वे राजनीतिक दल ही चुनावी बॉन्ड प्राप्त करने के योग्य हैं, जो जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29 (A) के तहत पंजीकृत हैं और जिन्होंने बीते आम चुनाव में कम-से-कम 1% मत प्राप्त किया है.

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