मुबंई: महाराष्ट्र में आदित्य ठाकरे के शपथ लेते ही ऐसा पहली बार हुआ की बाप-बेटे एक ही मंत्रिमंडल में हों. पिता उद्धव मुख्यमंत्री हैं और बेटे आदित्य मंत्री. राजनीति में पिता-पुत्र संबंधों की एक खास बात यह रही है कि अगर पिता से राजनीतिक विरासत नहीं संभलती या लगता है कि अब बेटे-बेटी को कमान सौंप देनी चाहिए तो कुर्सी से खुद उतरते हैं और तमाम तिगड़मबाजियां कर बेटे को कुर्सी पर विराजमान करा देते हैं. मगर इस मंत्रिमंडल में वंशवाद की ये अकेली मिसाल नहीं है.
आज महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी सरकार के कैबिनेट का विस्तार हुआ है. दिलचस्प बात यह है कि तीनों ही पार्टियों में पिता-पुत्र की राजनीति सीधे शब्दों में जिसे वंशवाद की राजनीति कहते हैं, उसका ही बोलबाला दिखा.
- शिवसेना से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य
- एनसीपी से शरद पवार के भतीजे अजित पवार
- कांग्रेस से दिवंगत विलासराव देशमुख के बेटे अमित देशमुख
- कांग्रेस से एकनाथ गायकवाड़ की बेटी वर्षा
- कांग्रेस के दिवंगत पतंगराव कदम के बेटे विश्वजीत
- कांग्रेस के दिवंगत डी वाय पाटिल के बेटे बंटी पाटिल
- एनसीपी के नेता सुनील तटकरे की बेटी अदिति
- पूर्व कांग्रेसी सांसद दिवंगत यशवंतराव् गडाख के बेटे निर्दलीय शंकर राव
आदित्य ने कहा काम पर करेंगे फोकस
इसके बावजूद ना ही आदित्य ठाकरे ना ही अजित पवार महाराष्ट्र में वंशवाद के बोलबाले के सच को बर्दाश्त कर पाने को तैयार हैं. दोनों ने ही वंशवाद के आरोपों का सिरे से खंडन किया है. मंत्रिमंडल विस्तार के बाद आदित्य ठाकरे ने कहा कि उन्हें बहुत खुशी हुई. जिम्मेदारी बढ़ी, काम करने का मौका है, पिता के साथ, जो वो करेंगे. उन्होंने कहा कि पूरी शिवसेना मेरा परिवार है. हम पहले काम पर फोकस करते है, लोगों की सेवा करना ही मुख्य उद्देश्य है.
अजित पवार ने कहा भाजपा पहले अपने बारे में सोचे
वहीं एक बार फिर से उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले एनसीपी के नेता अजित पवार ने कहा कि आरोप लगाने से पहले भाजपा अपने बारे में सोचे. जिसकी मेजोरिटी होती है वो राज करता है. इसके अलावा कांग्रेस मंत्री असलम शेख ने कहा कि परिवारवाद का आरोप लगाना सही नहीं होगा. आदित्य युवा हैं काम करने की नई सोच है तो मंत्रीपद दिए जाने में गलत क्या है ?
महाराष्ट्र में इस मूव का दूरगामी उद्देश्य जाहिर है कि जेनेरेशन नेक्स्ट को पोलिटिकल ऑर्बिट में स्थापित करना है. लेकिन सवाल यह है कि परिवारवाद को बढ़ावा देने के फिराक में जब कई सारे पुराने और लायक विधायकों को नजरअंदाज किया जाएगा तो फिर शोर तो उठेगा ही. आज नहीं तो कुछ वक्त बाद ही सही. मगर ज्यादा देर तक इस विवाद को पार्टी अंतरकलह से दूर रखना संभव नहीं है. कई राजनीतिक पंडितों की मानें तो सरकार में कांग्रेस खेमे की थोड़ी नाराजगी भी देखने को मिल रही है.