अखिलेश यादव की सपा से छिन गया यूपी विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष का पद, जानिए कारण

उत्तर प्रदेश विधान परिषद: संख्याबल कम होने की वजह से अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (सपा) ने नेता प्रतिपक्ष का पद गंवा दिया है. आपको पूरा गणित इस रिपोर्ट में समझाते हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jul 8, 2022, 05:29 PM IST
  • अखिलेश यादव को लगा बड़ा झटका
  • सपा को विधान परिषद में गंवाया ये पद
अखिलेश यादव की सपा से छिन गया यूपी विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष का पद, जानिए कारण

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश विधानपरिषद के लिए हाल में 12 सदस्यों को सात जुलाई को कार्यकाल समाप्त होने के बाद समाजवादी पार्टी के सदस्यों की संख्या राज्य विधायिका के उच्च सदन में घटकर 10 के नीचे आ गई है. इसकी वजह से पार्टी को सदन में नेता प्रतिपक्ष का पद गंवाना पड़ा है.

छिन गया सपा से नेता प्रतिपक्ष का पद

उत्तर प्रदेश विधानपरिषद के प्रमुख सचिव राजेश सिंह द्वारा गुरुवार को जारी एक बयान के मुताबिक, '27 मई को विधान परिषद में सपा 11 सदस्यों के साथ सबसे बड़ी पार्टी थी और साथ ही गणपूर्ति (कोरम) हेतु भी सक्षम थी.इसकी वजह से पार्टी के सदस्य लाल बिहारी यादव को नेता प्रतिपक्ष के तौर पर मान्यता प्रदान की गई थी.'

राजेश सिंह ने बताया, 'सात जुलाई को विधान परिषद् में सपा के सदस्यों की संख्या घटकर नौ रह गई, जो 100 सदस्यीय विधान परिषद की प्रक्रिया तथा कार्य-संचालन नियमावली के अनुसार गणपूर्ति की संख्या-10 से कम है. इसलिए विधान परिषद के सभापति ने मुख्य विरोधी दल सपा के लाल बिहारी यादव को नेता प्रतिपक्ष के तौर पर मिली मान्यता तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दी है. हालांकि, उनकी सदन में सपा के नेता के तौर पर मान्यता बरकरार रहेगी.'

संजय लाठर ने क्या कहा? जानिए

इस बारे में विधान परिषद के पूर्व नेता प्रतिपक्ष और सपा नेता संजय लाठर ने कहा, 'सदन में सबसे बड़ी पार्टी के नेता को नेता प्रतिपक्ष बनाया जाता है, चूंकि समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी हैं; इसलिए उसे नेता प्रतिपक्ष का पद दिया जाना चाहिए.'

उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी इस मामले पर अदालत का दरवाजा खटखटायेगी. लाठर ने कहा कि सदन में विपक्ष का नेता नियुक्त करने के लिए सीटों के न्यूनतम प्रतिशत की जरूरत नहीं होती. उल्लेखनीय है कि बृहस्पतिवार को विधान परिषद के 12 सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो गया. इसके साथ ही नेता प्रतिपक्ष का पद भी समाप्त कर दिया गया.

विधान परिषद के विशेष सचिव ने बृहस्पतिवार को इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है. कार्यकाल पूरा करने वाले सदस्यों में जगजीवन प्रसाद, बलराम यादव, डॉ. कमलेश कुमार पाठक, रणविजय सिंह, राम सुंदर दास निषाद, शतरुद्र प्रकाश, अतर सिंह राव, दिनेश चंद्रा, सुरेश कुमार कश्यप और दीपक सिंह शामिल हैं.

12 सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो गया

इनका स्थान सात जुलाई से रिक्त घोषित कर दिया गया है. विधान परिषद के कुल 12 सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो गया है. इनमें उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और मंत्री चौधरी भूपेन्द्र सिंह भी शामिल हैं, लेकिन इन दोनों की हाल में हुए विधान परिषद के चुनाव में जीत के बाद सदन में वापसी हुई है.

इसके अलावा समाजवादी पार्टी (सपा) के छह, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के तीन तथा कांग्रेस के एकमात्र सदस्य का कार्यकाल बुधवार को खत्म हो गया. विधानपरिषद के पूर्व नेता प्रतिपक्ष लाठर ने कहा, 'विधान परिषद की आधिकारिक वेबसाइट पर दी गयी जानकारी के मुताबिक राज्य विधान परिषद का गठन पांच जनवरी 1887 को हुआ था और उसकी पहली बैठक आठ जनवरी 1887 को तत्कालीन इलाहाबाद (अब प्रयागराज)स्थित थार्नहिल मेमोरियल हाल में हुई थी. वर्ष 1935 में पहली बार गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया ऐक्ट के जरिये विधान परिषद को राज्य विधानमण्डल के दूसरे सदन के तौर पर मान्यता मिली थी.'

सदस्यों की संख्या बढ़कर 46 हो गयी

उन्होंने ने कहा कि शुरुआत में इस सदन में सिर्फ नौ सदस्य हुआ करते थे. मगर वर्ष 1909 में इंडियन काउंसिल ऐक्ट के प्रावधानों के तहत विधान परिषद के सदस्यों की संख्या बढ़कर 46 हो गयी. उसके बाद यह और बढ़कर 100 हो गयी. फरवरी 1909 में कांग्रेस नेता मोतीलाल नेहरू इस सदन के सदस्य बने थे.

उन्हें विधान परिषद में कांग्रेस का पहला सदस्य माना जाता है. प्रदेश की 100 सदस्यीय विधान परिषद में मौजूदा समय में भाजपा के 72 सदस्य हैं. इसके अलावा मुख्य विपक्षी सपा के नौ सदस्य हैं. सदन में बहुमत का आंकड़ा 51 सीटों का है.

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