नई दिल्ली. तौहीन बाग़ उर्फ़ शाहीन बाग़ एक अड्डा है देशद्रोहियों का जिन्होंने बड़े ही शातिराना तरीके से अपने चेहरे पर नकाब डाल रखा था ताकि ऊपरी तौर पर यह नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध नज़र आये लेकिन अंदर से यह अपना राष्ट्र-द्रोही एजेंडा चलाता रह सके. कुछ मीडिया संस्थान भी इस साजिशाना विरोध को हवा देने में लगे हैं चाहे वे कुछ बड़े नामवर न्यूज़ चैनल हों या नामवर न्यूज़पेपर. इनमें आप इस तरह की हेडलाइंस देख सकते हैं - देश भर में फैला शाहीन बाग़, एक और शाहीन बाग़, शाहीन बाग़ प्रजातंत्र की पहचान, शाहीन बाग़ नहीं झुका, आदि-आदि. साथ ही इनमें शरजील और कन्हैया कुमार टाइप के लोगों के नाम और चेहरे चिंतक, क्रन्तिकारी, आंदोलनकारी, स्कॉलर और आदर्श युवा-नेताओं के तौर पर प्रस्तुत किये जा रहे हैं. ये वही मीडिया मन्च हैं जो चंद्रशेखर रावण को चंद्रशेखर आजाद कहने लगे हैं और देश-द्रोहियों को देश-विरोधी कह कर उनकी नरम मदद करने में लगे हुए हैं.
साजिश का काला चेहरा शाहीन बाग़
देशद्रोह की साजिश का काला चेहरा बन चुका है शाहीन बाग़. यहां से पाकिस्तान और आतंक के समर्थन की आवाज़ें खुल कर सामने आ गई हैं. सीएए तो बहाना है जबकि मोदी और मोदी का राष्ट्रवाद निशाना है. हिन्दुस्तान का राष्ट्रवाद, हिन्दुस्तान के राष्ट्रवादी संगठन, हिन्दुस्तान के देशप्रेमी नेता, हिन्दुस्तान के बहुसंख्यकों का धर्म और हिन्दुस्तान की संस्कृति के खात्मे का सीधा-सीधा लक्ष्य है इन जिहादियों का जो अब खुल कर धमकियां भी देने लग गये हैं. गद्दार शब्द से अगर किसी को मिर्ची लगने लगे तो उसके भीतर का छुपा गद्दार साफ नजर आजाता है. कांग्रेस और वामपंथियों के राष्ट्रविरोधी षड्यंत्र की प्रयोगशाला शाहीन बाग़ अपने साजिशाना चेहरे को देर तक छुपाये न रख सकी. टुकड़े-टुकड़े गैंग का सीक्वल बनते ही इसकी कलाई खुल कर देश के सामने आ गई. नए कन्हैया कुमार के तौर पर शरजील इमाम और उसकी चेली आफरीन का उदय हुआ और सारे राष्ट्रद्रोही ठिकानों से इनको समर्थन की आवाजें आनी लगीं. भारत के टुकड़े करने और असम को अलग करने की की चाहत पाले काले चेहरे रोशन हो गये.
बनाया तिरंगा झंडा अपना हथियार
बाकायदा पूरी तैयारी की गई देशद्रोही मिशन को देशप्रेमी जामा पहनाने की. न केवल शाहीन बाग के देशद्रोही जमावड़े ने हांथ में तिरंगा झंड़ा थाम लिया बल्कि देश भर में इस के ही प्रीक्वल्स और सीक्वल्स वाले जुलूस हांथों में तिरंगा लिये दिखाई देने लगे. जो लोग वंदे मातरम कहना पसंद नहीं करते उनके हांथों में तिरंगा क्या कर रहा है और क्या कह रहा है - साफ-साफ समझ में आ रहा है. जन-सहानुभूति जीतने और दुनिया का ध्यान खींच कर एक सकारात्मक संदेश देने की नकली मंशा जाहिर करने के उद्देश्य से हांथों में लिया गया है तिरंगा झंडा. इन तिरंगे झंडे वालों का हुजूम न जुलूस में न ही उसके आगे-पीछे कभी भारत मां की जय या वन्दे मातरम कहते सुना गया है न ही कभी सुना जा सकता है.
हिन्दुस्तान नहीं, अब बोलते हैं भारत
अचानक ही इस टुकड़े-टुकड़े वालों की जिहादी सोच ने एक नई चीज और सोच ली और उसको तुरंत एप्लाई भी कर दिया. अब तक ये लोग मजबूरन हिन्दुस्तान कहते थे क्योंकि इन्डिया तो उर्दू शब्द नहीं था और इन्डिया शब्द की प्रतिष्ठा भी दुनिया भर में है, इसलिये हिन्दुस्तान बेहतर विकल्प लगता था इन लोगों को. किन्तु अभी कुछ समय से हिन्दुस्तान शब्द को तीन तलाक दे दिया गया है और भारत शब्द बोला जाने लगा है. इसके पीछे की तहरीरी संदेश वाली समझ ये है कि हिन्दुस्तान कह कर तो ये लोग खुद ही इन्डिया को हिन्दुओं का देश बता रहे थे. सो तुरन्त ही भूल सुधार कर ली गई.
स्लोगन्स की देशद्रोही आवाज़ शाहीन बाग़
विरोध शुरू हुआ था नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर और देखते ही देखते इसमें एनपीआर और एनआरसी और कश्मीर भी शामिल हो गया. इसके बाद फिर ज्यादा देर नहीं लगी जब पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे सुनाई दिए. इंडियन आर्मी मुर्दाबाद के नारे सामने आये और तो और अल्लाहू अकबर के नारे भी गूंजने लगे. फिर तो देश क्या दुनिया भी हकीकत समझ गई इस शाहीन बाग़ के असली चेहरे और असली नीयत की.
भुगतान वाला रोजगारी धंधा शाहीन बाग़
सारे देश ने देखा जब एक स्टिंग ने शाहीन बाग़ की असलियत दिखाई कि यहां बैठ कर टाइम पास करने वालों को रोज़ का पेमेन्ट होता है, फ्री का खाना-पीना नाश्ता और मनोरंजन अलग से मुहैया कराया जाता है. अभी हाल ही में प्राप्त अपुष्ट जानकारी के अनुसार पेमेन्ट में इजाफा हुआ है. अब मर्दों को पांच सौ रुपये प्रतिदिन, महिलाओं को साढ़े सात सौ रुपये और बच्चे वाली महिलाओं को एक हज़ार रुपये प्रतिदिन का भुगतान होने लगा है. जब से पीएफआई की फंडिंग का खुलासा हुआ है इन सच्चाइयों की परतें खुलने लगी हैं. जब यहां बैठ कर रोज हाजिरी देने वालों का इतना भुगतान है तो इसके बड़े संचालकों के बड़े पेमेन्ट्स बड़ी अच्छी तरह समझे जा सकते हैं. कपिल सिब्बल जैसों को अभी सिद्ध करना है कि पीएफआई से उनको मिले सतत्तर लाख के भुगतान का राज क्या है. इस तरह अब शाहीन बाग़ में ये लोग ज़िंदगी भर भी बैठे रहें तो भी कोई फर्क नहीं पड़ना है. साजिश विरोध बन जाए और विरोध धंधा बन जाए तो फिर अंग ही बचता है प्रदर्शन के लिए!
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