मोदी सरकार का ये कानून है शुद्ध रूप से किसानों के लिये

मोदी सरकार ने बहुत सोच समझ कर किसानों के हित के लिये ये कानून बनाया है, बस जरा समझने और थोड़ा समझाने की जरूरत है..

Written by - Parijat Tripathi | Last Updated : Sep 21, 2020, 07:21 AM IST
    • हरसिमरत बादल के इस्तीफे का अर्थ कुछ और है
    • इस कानून का विरोध ही किसान-विरोधी है
    • किसानों के हित में सबसे बड़ा प्रावधान हुआ है
    • कृषि मन्त्री ने न्यूनतम मूल्य पर स्पष्टीकरण दिया है
    • आढ़तियों के जाने के बाद अब है पूंजीपतियों का भय
 मोदी सरकार का ये कानून है शुद्ध रूप से किसानों के लिये

नई दिल्ली.  किसानों के कानून का विपक्ष कर रहा है विरोध. यद्यपि ये विरोध जितना बेमानी है उतना ही बेअसर भी है क्योंकि इसमें विपक्ष की नीयत देश के किसानों को गुमराह करने की है. किन्तु अब सरकार को देश के किसानों को ढंग से समझाने में भी उतना ही परिश्रम करना चाहिये जितना इस पर विचार करने और इसके निर्माण करने में करना पड़ा है.

हरसिमरत बादल के इस्तीफे का अर्थ

केन्द्र सरकार ने किसानों से संबंधित तीन कानून बनाये हैं और तीनों कानूनों से केंद्रीय मंत्री हरसिमरत बादल अप्रसन्न हुईं. उनकी अप्रसन्नता वास्तव में इस कानून से जुड़ी है या पर्दे के पीछे दूसरे कारण हैं जिनकी वजह से अपनी नाराजगी दिखाने का मौका उनको यहां मिल गया – ये बात आगे सामने आ जायेगी. फिलहाल उन्होंने सिर्फ विरोध के लिये विरोध किया है और त्यागपत्र दे दिया है जो शायद वे पहले  ही देना चाहती रही हों, किन्तु इस कानून की कमियों का समाधान न उन्होंने बताया न समाधान की दिशा में कोई चाहत दिखाई.

इसका विरोध ही किसान-विरोधी है

देश का पंजाब राज्य किसानों का राज्य है. देश की सर्वाधिक फसल वहीं पैदा होती है. पंजाब में कतिपय किसान संगठनों ने भी इन कानूनों का विरोध किया है किन्तु इसमें ढूंढी हुई अपनी समस्या के समाधान के लिये कोई विकल्प उन्होंने भी प्रस्तुत नहीं किया है. जाहिर है इस कानून का विरोध करने वाले व्यवहारिक उपयोगिता या लाभ-हानि को ध्यान में रखने की बजाये छिद्रान्वेषण करने और राजनीतिक मुद्दा बनाने के मकसद से ही विरोध कर रहे हैं. राजनीतिक विरोधियों के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष उकसावे में आकर किया जा रहा ये विरोध खुद ही किसान-विरोधी है.

किसानों का अधिकतम हित  

जब विपक्ष की सोच ही सिर्फ विरोध करने की है तो स्वर्ग भी जमीन पर उतार देने पर भी वे उसका विरोध करने में लज्जित अनुभव नहीं करेंगे. अतएव किसानों के शुद्ध हित हेतु निर्मित इन कानूनों का विरोध अरण्यरोदन जितना ही प्रभावी हो सकता है, उससे अधिक नहीं.

बन्धन-मुक्त हुए देश के किसान

किसानों की उपज पर से बहुत बड़ा ग्रहण हटा दिया है सरकार ने. अब तक होता ये था कि किसान अपनी फसल बेचने के लिये अपनी स्थानीय मंडियों और आढ़तियों अर्थात दलालों का मुंह देखने को मजबूर थे. किन्तु अब किसानों को इस बन्धन से मुक्त कर दिया गया है. किसान सीधे ही अपना उत्पाद  अब बाजार में ले जाकर बेच सकते हैं चाहे वो बाजार स्थानीय हो या देश के किसी भी कोने में हो.

किसान-हित में सबसे बड़ा प्रावधान

पूरा देश किसानों के लिये खुल गया है. अब न उनको स्थानीय मंडियों और आढ़तियों पर निर्भर रहना होगा, न ही उनको अब मंडी-टैक्स देना पड़ेगा. आढ़तिये और दलाल अब किसानों से दलाली वसूल नहीं पायेंगे. जाहिर है किसानों को अब अपनी फसल की कीमतें ज्यादा मिलेंगी. इसके बाद भी यदि कोई किसान इस नए प्रावधान का विरोध कर रहे हैं, तो दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है ये.  

किसानों का भय व्यावहारिक नहीं

किसानों को अब भय ये है कि उनकी फसल अब कम दाम पर बिकेगी क्योंकि बाजार में भाव स्थिर नहीं रहते अगर उठते हैं तो गिरते भी हैं. किन्तु मंडियों में उनको ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ तो मिलता ही है. किसानों को ध्यान इस बात पर देना चाहिये कि नुकसान की इस नकारात्मक सोच से मुक्त हो कर अब खुद ही अपने भाग्य के निर्माता बनें. पहले तो हमेशा ही समझौता करके उनको अपनी फसल बेचनी होती थी, अब न्यूनतम नहीं अधिकतम मूल्य पर बिकेगी उनकी फसल क्योंकि अब बीच में कोई नहीं होगा.

कृषिमन्त्री ने स्पष्ट कर दिया था

सरकार को किसानों के इस भय पर पूरा ध्यान है. इसीलिये संसद में कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने किसानों के लिये सरकार का यह संदेश स्पष्ट कर दिया था कि  हर स्थिति में किसानों को उनकी फसल का न्यूनतम मूल्य तो मिलेगा ही.

आढ़तियों के बाद पूंजीपतियों का भय

किसानों को इस बात की प्रसन्नता तो अवश्य होगी कि उनकी मेहनत की कमाई पर अब बिचौलिये अपना नाहक हक नहीं जमायेंगे. किन्तु एक भय से वे अपरिचित ही हैं जो व्यवहारिकता का भय है. अब जब आढ़तिये और दलाल मंडियों-बाजारों में नहीं होंगे तो पूंजीपति आ जायेंगे और इस बार फायदा तो किसानों को मिलेगा लेकिन फसल पर कब्जा पूंजीपतियों का होगा जिससे खरीदने वालों यानी कि आम ग्राहक के लिये अनाज और अनाज के उत्पाद महंगे हो सकते हैं. सरकार को पूंजीपतियों के पंजे से उत्पादक औऱ ग्राहक दोनो के हितों को बचाने के लिये भी दिशानिर्देश तय करने होंगे.

ये भी पढ़ें.  मोदी सरकार का ये कानून है शुद्ध रूप से किसानों के लिये

ट्रेंडिंग न्यूज़