आज गोवा मुक्ति दिवस, जानें कैसे आजादी के 14 साल बाद आजाद हुआ गोवा

15 अगस्त 1947 को सारा भारत अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हो चुका था, लेकिन समुद्र तट की खूबसूरती लिए गोवा अभी भी पुर्तगालियों के कब्जे में था. यह स्थिति 1961 तक कायम रही. इस दौरान कई छिटपुट संघर्ष होते रहे, लेकिन इस साल 19 दिसंबर को सफल हुए ऑपरेशन विजय ने गोवा की स्वतंत्रता की नींव रखी. इस दिन को आज गोवा मुक्ति दिवस के तौर पर मनाते हैं. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Dec 19, 2019, 05:58 AM IST
आज गोवा मुक्ति दिवस, जानें कैसे आजादी के 14 साल बाद आजाद हुआ गोवा

नई दिल्लीः  पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंटोनियो कोस्‍टा गुरुवार (19 दिसंबर) को भारत आ रहे हैं.  वह पहले भी भारत आ चुके हैं, लेकिन इस दिन उनका भारत आना खास है. दरअसल 19 दिसंबर याद दिलाता है उस दिन की जब भारत के सभी भू-भाग पर भारतीय अधिकार हो गया था. यानी कि गोवा भी आजाद होकर भारतीय गणराज्य में शामिल हुआ था. 19 दिसंबर को इसी याद में गोवा मुक्ति दिवस मनाया जाता है. इसे पुर्तगालियों के कब्जे से आजादी मिली थी. इसीलिए पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंटोनियो कोस्‍टा का आज भारत आना खास है. 

कौन हैं एंटोनियो कोस्‍टा
पुर्तगाल के प्रधानमंत्री हैं एंटोनियो कोस्टा. यह महज इत्तेफाक है कि वह आज के दिन भारत आ रहे हैं.  वह गोवा मूल के एक कवि ओर्लान्दो के बेटे हैं. उन्‍होंने गोवा की औपनिवेशिक सामंतवादी व्यवस्था पर एक किताब ‘ओ सिंग्नो दा इरा’ भी लिखी है.

कोस्‍टा को लिस्बन का गांधी भी कहा जाता है. गोवा में आज भी उनकी बहन रहती है और यहां पर उनका पुराना घर आज भी है. उनका आना पुर्तगालियों के शासन की याद दिला रहा है, ले चलते हैं उस ओर.

यह है गोवा मुक्ति दिवस
देश के इतिहास में 19 दिसंबर का दिन स्‍वर्ण अक्षरों में दर्ज है. इसी दिन भारतीय सेना ने गोवा, दमन और दीव को पुर्तगालियों के कब्‍जे से मुक्‍त करवा कर भारत में शामिल किया था. पुर्तगालियों का यहां पर साढ़े चार सौ वर्ष का शासन इसके साथ ही खत्‍म हो गया था और यहां पर शान से तिरंगा लहराया था.

गोवा को भारत में शामिल करने के लिए बड़ी सैन्‍य कार्रवाई की गई थी. 30 मई 1987 को गोवा को राज्‍य का दर्जा दिया गया जबकि दमन और दीव केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया. इसी गोवा में मिली इसी जीत के नाम पर हर वर्ष 'गोवा मुक्ति दिवस' मनाया जाता है. 

पुर्तगाली 1510 में आए और सबसे आखिरी में गए
पुर्तगाली 1510 में भारत आए थे और वह यहां पर आने वाले पहले यूरोपीय शासक थे. वहीं 1961 में वह भारत छोड़ने वाले भी अंतिम यूरोपीय शासक थे. गोवा में पुर्तगालियों का शासन अंग्रेजों से काफी अलग था. यहां के शासकों ने गोवा के लोगों को वही अधिकार दिए थे तो पुर्तगाल के लोगों को थे.

हालांकि हाईक्‍लास हिंदुओं और ईसाइयों के साथ-साथ अमीर लोगों को कुछ विशेषाधिकार भी प्राप्‍त थे. ये साधन संपन्‍न लोग शासकों या सरकार को संपत्ति कर भी देते थे और 19वीं शताब्दी के मध्य में उन्‍हें मताधिकार का अधिकार भी मिल गया था.

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व्यापारिक क्षेत्र था गोवा
गोवा क्षेत्रफल में छोटा जरूर था लेकिन रणनीतिकतौर पर काफी अहम था. छोटे आकार के बावजूद यह बड़ा ट्रेड सेंटर था और यहां पर विदेशी व्‍यापारी काफी आते थे. इसकी भौगोलिक स्थिति की वजह से ही मौर्य, सातवाहन और भोज राजवंश भी इसकी तरफ आकर्षत होने से खुद को नहीं रोक पाए थे. गोवा पर काफी समय तक बाहमानी सल्तनत और विजयनगर सम्राज्य की हुकूमत रही है. 1954 में, भारतीयों ने दादर और नागर हवेली के ऐंक्लेव्स पर कब्जा कर लिया था.

इसकी शिकायत पुर्तगाली शासन ने इसकी शिकायत हेग में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में की थी. 1960 में इस कोर्ट का फैसला भारत के खिलाफ आया और कोर्ट ने गोवा पर पुर्तगालियों के कब्‍जे को सही बताया था. 

बातचीत से नहीं निकला रास्ता
इसके बाद भारत सरकार ने गोवा सरकार से लगातार बातचीत करने की कोशिश की लेकिन हर बार यह पेशकश ठुकरा दी गई. 1 सितंबर 1955 को भारत ने गोवा में मौजूद अपने कॉन्सुलेट को बंद कर दिया. साथ ही पंडित नेहरू ने कहा कि भारत सरकार गोवा में पुर्तगाली शासन की मौजूदगी को किसी भी सूरत से बर्दाश्‍त नहीं करेगी. इसके लिए गोवा, दमन और दीव के बीच में ब्लॉकेड कर दिया.

गोवा ने इस मुद्दे को अंतरराष्‍ट्रीय मंच पर ले जाने की पूरी कोशिश की, लेकिन भारतीय दांव के आगे ये कोशिश विफल साबित हुई. दरअसल, पंडित नेहरू ने ब्‍लॉकेड के बावजूद वहां पर यथास्थिति को बरकरार रखा था. 

भारतीय सेना की अंतिम चढ़ाई और गवर्नर का सरेंडर
8 दिसंबर 1961 को आखिरकार वो दिन आया जब भारतीय सेना को गोवा पर चढ़ाई का आदेश दे दिया गया. आदेश के साथ ही सेना ने गोवा, दमन और दीव पर चढ़ाई कर दी. इसको ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया था.

भारतीय सेना की त्‍वरित कार्रवाई के बाद पुर्तगालियों की सेना बुरी तरह बिखर गई और टूट गई. नतीजतन भारतीय सेना गोवा में प्रवेश कर चुकी थी. इस दौरान करीब 36 घंटे तक सेना ने गोवा में जमीनी, समुद्री और हवाई हमले किए गए. आखिरकार भारतीय सेना प्रमुख पीएन थापर के सामने पुर्तगाल के गवर्नर जनरल वसालो इ सिल्वा को आत्‍म समर्पण करना पड़ा था. 

ऐसे हुआ पूरा ऑपरेशन
ऑपरेशन विजय के दौरान मेजर जनरल केपी कैंडेथ को 17 इंफैंट्री डिवीजन और 50 पैरा बिग्रेड की कमान सौंपी गई थी. भारतीय सेना के पास उस वक्त 6 हंटर स्क्वाड्रन और 4 कैनबरा स्क्वाड्रन थे. गोवा अभियान की हवाई कार्रवाई की जिम्मेदारी एयर वाइस मार्शल एरलिक पिंटो के पास थी. भारतीय सेना ने अपने अचूक बमबारी से पुर्तगालियों को गोवा छोड़कर भागने पर मजबूर कर दिया.

ऑपरेशन विजय में 30 पुर्तगाली मारे गए थे, जबकि 22 भारतीय जवान शहीद हुए थे. इस ऑपरेशन में 57 पुर्तगाली सैनिक जख्मी हुए थे, जबकि जख्मी भारतीय सैनिकों की संख्या 54 थी। इस पूरे ऑपरेशन केदौरान भारत ने 4668 पुर्तगालियों को बंदी बनाया था. 

एक गलती पड़ी भारी
पुर्तगाली किसी भी कीमत पर गोवा छोडने को तैयार नहीं थे. इसी बीच साल 1961 में दिल्ली में 10 हजार लोगों ने प्रदर्शन किया और पुर्तगाल से भारत छोड़ने की मांग की. इसी दौरान 24 नवंबर 1961 को पुर्तगाली सेना ने भारतीय नौसैनिक जहाज पर हमला बोल दिया, जिसमें दो भारतीय जवान शहीद हो गए. फिर क्या था.

भारत को मौका हाथ लग गया और भारत ने गोवा पर हमला बोल दिया और गोवा को आजाद करा लिया. इसके पहले भारत लगातार कई कूटनीतिक कोशिशें कर चुका था.

उग्र हमले की नहीं थी उम्मीद
18 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना ने गोवा बॉर्डर में जा घुसी. इसके बाद दोनों तरफ से फायरिंग और बमबारी शुरू हुई. 30 हजार की भारतीय सेना के सामने 6000 पुर्तगाली टिक नहीं पाए. भारतीय सेना ने जमीनी, समुद्री और हवाई हमले किए. पुर्तगाली बंकरों को तबाह कर दिया गया.

भारतीय वायुसेना ने डाबोलिम हवाई पट्टी पर बमबारी की. इससे पुर्तागाली सकते में आ गए. उनको उम्मीद नहीं थी कि शांतिप्रिय भारत उनपर हमला भी कर सकता है. भारत की बमबारी के बीच दो पुर्तगाली विमान भागने में कामयाब रहे. लेकिन सिर्फ दो विमान में कितने पुर्तगाली आ पाते, ज्यादातर पुर्तगालियों को भारतीय सेना का सामना करना पड़ा.

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