नई दिल्ली. राजस्थान के आरोप प्रत्यारोपों ने एक तरफ गहलोत की सरकार को खड़ा किया है दूसरी तरफ सचिन और भाजपा को. एक तरफ राजस्थान में मुख्यमंत्री गहलोत के रिश्तेदारों पर छापे पड़ रहे हैं तो दूसरी तरफ ये आरोप लग रहे हैं कि सचिन पायलट और भारतीय जनता पार्टी मिलकर राजस्थान सरकार गिराना चाहते है वैसे ऐसा होने को गहलोती प्रतिक्रिया भी माना जा सकता है.
कांग्रेस की मांग गिरफ्तारी की
कांग्रेस को लगता है कि उसका तीर सही जगह लगाए है. अब उसने मांग शुरू कर दी है कि भाजपा का वह मंत्री हिरासत में लिया जाए जिसने तथाकथित रिश्वत की दम कांग्रेसी विधायको को दलबदलू बनाने की तथाकथित कोशिश की है. इस मंत्री की बातचीत की ऑडियो रिकॉर्डिंग भी सामने आ गई है. इस मामले में एक तथाकथित मध्यस्थ को भी हिरासत में ले लिया गया है.
विधानसभा अध्यक्ष का नोटिस भी हुआ जारी
एक तरफ कांग्रेस ने घेरा डाला है दूसरी तरफ विधानसभा अध्यक्ष ने भी कार्रवाई और सचिन पायलट और उके साथ खड़े विधायकों को अपदस्थ करने की दिशा में फटाफट नोटिस भी जारी कर दिया है जो कि अब न्यायालय की बहस का हिस्सा बन गई है. इसी तरह कर्नाटक में जो मामला हुआ था उसका उदाहरण सामने रखें तो जो नज़र आ रहा है वो ये है कि यहां भी यही होना है अर्थात राजस्थान का उच्च न्यायालय सचिन-समूह के उन्नीस विधायकों को विधानसभा से बाहर का रास्ता दिखा देगा.
सचिन पायलट का दावा
इधर सचिन पायलट के दावे को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. उनका कहना है कि उन्होंने और उनके साथियों ने अभी कांग्रेस नहीं छोड़ी है. इसलिए ये बात तो सीधे ही खारिज हो जाती है कि सचिन-समूह ने किसी तरह से पार्टी के व्हिप का उल्लंघन किया है- कारण ये है कि ऐसा तभी सम्भव है जब विधानसभा का सत्र चल रहा है. सिर्फ इसलिए कि कोई विधायक मुख्यमंत्री के निवास पर हुई विधायक-मंडल की बैठक में सम्मिलित नहीं हो सके उस पर व्हिप लागू हो जाए, ये बात तो समझ में आने वाली नहीं है.
अदालत में चुनौती की वजह यही है
निराधार आधार पर जब विधानसभा अध्यक्ष ने नोटिस जारी कर दिया तो ज़ाहिर है बात बड़ी अदालत में जानी है. बात चली गई और सचिन समूह के द्वारा इस नोटिस को राजस्थान उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई. कांग्रेस के वकील ये दलील दे रहे हैं कि दल-बदल विरोधी कानून के अनुसार पार्टी के अध्यक्ष का निर्णय अंतिम है और वही सर्वोच्च भी है.
पैदा हो सकती है वैधानिक समस्या
चूंकि अभी अध्यक्ष ने विद्रोही विधायकों पर अपना कोई निर्णय नहीं दिया है तो ऐसी हालत में अदालत केवल अपनी राय ही दे सकती है. यहां वैधानिक समस्या ये पेश होती है कि इस मामले में क्या अदालत अपने निर्णय के पालन का आदेश दे सकेगी? और यदि अदालत का आदेश केवल उसकी राय है तो क्या इस मामले पर अदालत का समय नष्ट करना उचित है?
घर का न घाट का की स्थिति हो सकती है
घर का न घाट का नामक एक हिंदी कहावत भी यहां लागू हो सकती है. अगर कर्नाटक के मामले को मील का पत्थर मान कर उसे मानदंड बनाये तो जो वहां निर्धारित हुआ था यहां भी हो सकता है. वहां भी विद्रोहियों ने औपचारिक तौर पर त्यागपत्र नहीं दिया था लेकिन उनका विद्रोह और विरोध त्यागपत्र से कम नहीं था इस कारण त्यागपत्र न दे कर भी वे सत्तारुढ़ दल के साथ नहीं माने गए. इसलिए ऐसा अगर राजस्थान में भी हुआ तो सचिन पायलट और उनके विधायक साथी घर के भी न रहेंगे और घाट के भी नहीं.
यदि फैसला सचिन के पक्ष में हुआ
यदि अदालत ने सचिन के पक्ष में निर्णय दिया तो बहुत कुछ अनपेक्षित हो सकता है. और उसके लिए राजस्थान सरकार के साथ उसके दिल्ली हाईकमान को भी तैयार रहना चाहिए.
ये भी पढ़ें. इंडियन एयरफोर्स की ब्लूप्रिंट आई इज़राइल की स्पेशल फोर्स बन कर