मुख्तार अंसारी और कृष्णानंद राय की क्या दुश्मनी थी? हत्या से दहल उठा था पूर्वांचल, लेकिन बाहुबली हुआ बरी

Mukhtar Ansari, Krishnanand Rai Fight: अप्रैल 2023 में अंसारी को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के लिए 10 साल की जेल की सजा सुनाई गई और उसे बांदा जिला जेल में बंद कर दिया गया.

Written by - Nitin Arora | Last Updated : Mar 29, 2024, 02:21 PM IST
  • राय पर 500 राउंड गोली चलाई गईं
  • मुख्तार और ब्रजेश की दुश्मनी से कृष्णानंद राय तक
मुख्तार अंसारी और कृष्णानंद राय की क्या दुश्मनी थी? हत्या से दहल उठा था पूर्वांचल, लेकिन बाहुबली हुआ बरी

Mukhtar Ansari, Krishnanand Rai Fight: जेल में बंद भारतीय गैंगस्टर और राजनेता मुख्तार अंसारी की गुरुवार (28 मार्च) को कार्डियक अरेस्ट के कारण मृत्यु हो गई. अंसारी पिछले कुछ वर्षों में कई मामलों में गिरफ्तार चल रहा था. अंसारी पर हत्या और जबरन वसूली सहित कई आपराधिक मामले चल रहे थे. हालांकि, मुख्तार अंसारी का नाम कृष्णानंद राय हत्याकांड से जुड़ा और यह हत्याकांड़ एक सबसे बड़े केस में तबदील हो गया. राय भाजपा विधायक थे, जब उनकी हत्या कर दी गई थी. तब पूर्वांचल दहल उठा था. जेल में बैठे-बैठे मुख्तार अंसारी ने कृष्णानंद राय की हत्या करवा दी थी. लेकिन अंसारी मामले में बरी हो गए थे.

अप्रैल 2023 में अंसारी को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के लिए 10 साल की जेल की सजा सुनाई गई और उसे बांदा जिला जेल में बंद कर दिया गया.

कौन थे बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय?
भाजपा नेता कृष्णानंद राय ने उत्तर प्रदेश राज्य में विधान सभा के सदस्य (एमएलए) के रूप में कार्य किया.

रिपोर्टों के अनुसार, राय 2002 के यूपी विधानसभा चुनावों में सुर्खियों में आए, जहां उन्होंने राज्य की मोहम्मदाबाद सीट से भाजपा के टिकट पर जीत हासिल की. वह 2002 से 2005 तक विधायक रहे. उन्होंने 1999 में उसी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन वह उस समय मतदाताओं को प्रभावित करने में विफल रहे थे.

2002 में इस सीट से उनकी जीत मुख्तार अंसारी और उनके बड़े भाई और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बसपा नेता अफजाल अंसारी को अच्छी नहीं लगी. राय के पक्ष में नतीजे आने से क्षेत्र में अंसारी बंधुओं के प्रभुत्व को चुनौती मिली.

अपनी चुनावी सफलता के साथ, वह अपने विरोधियों, विशेषकर मुख्तार अंसारी के गिरोह के निशाने पर आ गए. 29 नवंबर 2005 को राय की हत्या कर दी गई. मुख्तार अंसारी के गिरोह ने बसनिया चट्टी के पास उनके काफिले पर घात लगाकर हमला कर दिया था.

लगभग 500 राउंड गोली चलाई गईं. राय के साथ छह अन्य लोग भी इस हमले में मारे गए. इस घटना से पूरे क्षेत्र में हंगामा मच गया. राय की हत्या के बाद लोगों में भारी आक्रोश पैदा हो गया और न्याय की मांग की जाने लगी.

तब पूर्व मुख्यमंत्री और अब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वाराणसी में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. हालांकि, मुख्तार अंसारी और उसके भाई को अंततः 2019 में CBI अदालत ने बरी कर दिया गया. अफजाल अंसारी ने उस समय कहा था, 'हमें राय के परिवार और समर्थकों ने राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और एक सुनियोजित साजिश के तहत फंसाया था. हमारे खिलाफ बॉलीवुड जैसी साजिश रची गई. मेरे 40 साल के राजनीतिक करियर में यह मेरे खिलाफ दर्ज किया गया एकमात्र मामला था और यह मेरे लिए एक कलंक था. मुख्तार और मैं अपने अन्य रिश्तेदारों के साथ बरी होने से राहत महसूस कर रहे हैं.'

हालांकि, 2023 में मुख्तार अंसारी को एमपी/एमएलए अदालत ने राय की हत्या का दोषी पाया था. 13 मार्च, 2024 को नकली हथियार लाइसेंस मामले में शामिल होने के लिए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.

मुख्तार अंसारी और कृष्णानंद राय की दुश्मनी?
मुख्तार अंसारी पहली बार 1996 में मऊ से बसपा विधायक बना. 15 जुलाई 2001 को अंसारी पर बड़ा हमला हुआ. वे अपने काफिला के साथ मऊ से गाजीपुर स्थित अपने पैतृक घर मुहम्मदाबाद के लिए निकले थे. हमले में कुल 3 लोग मारे गए, लेकिन अंसारी बच गया. इसमें मुख्तार अंसारी के जानी दुश्मन ब्रजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह के खिलाफ नामजद रिपोर्ट फाइल की गई.

ब्रजेश सिंह और मुख्तार अंसारी की दुश्मनी दो चीजों में थी. एक यह कि अंसारी उसके(ब्रजेश सिंह) दुश्मन साधू सिंह का करीबी था. दूसरा यह कि 1990 में गाजीपुर में सरकारी ठेकों पर ब्रजेश सिंह गैंग ने कब्जा कर लिया और अंसारी के ग्रुप से ठेके लिए जाने लगे. बताया जाता है कि अंसारी पर हमले के बाद ब्रजेश ने इलाका छोड़ दिया. फिर वह कई अन्य घटनाओं को अंजाम देने के बाद ओडिशा से 2008 में गिरफ्तार किया गया.

ऐसे में अंसारी का नाम बढ़ता जा रहा था और ब्रजेश उसे गिराने की कोशिश में था. तब गाजिपुर में एक नाम उठने लगा था और वो था कृष्णानंद राय. राय को मुस्लिम बहुत मऊ, जहां अंसारी का प्रभाव था, वहां से ना लड़वाते हुए मुख्तार के भाई अफजाल गाजीपुर की मुहम्मदाबाद सीट से चुनाव लड़वा दिया गया. जहां 2002 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने जीत हासिल करते हुए मुख्तार के परिवार को चुनौती दी.

2002 में ही मुख्तार भी मऊ से विधायक चुने गए. ऐसे में उसने खुद पर करवाए गए हमले में शामिल लोगों की हत्या करना शुरू कर दिया और निशाने पर राय भी आ गया. इसके साथ मऊ दंगा भी हुआ, जिसमें मुख्तार पर आरोप थे और उसने 25 अक्टूबर 2005 में सरेंडर कर दिया. उस गाजीपुर जेल भेज दिया गया. जहां उसने राय की हत्या की प्लानिंग की और उसका साथ मुन्ना बजरंगी ने दिया. जहां 25 नवंबर 2005 में एके-47 से ताबड़तोड़ करीब 500 गोलियां चलाकर राय समेत 7 लोगों की हत्या कर दी गई. तब कृष्णानंद राय की हत्या के बाद पूर्वांचल दहल उठा था. तब बसें फूंकी जा रही थीं. संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया.

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