बेटियों की संख्या में वृद्धि के बाद भी लिंगानुपात को समान स्तर तक पहुंचाना है बड़ी चुनौती

2021 में जनगणना के नई आंकड़े सामने आने वाले हैं. यह जनगणना हर 10 सालों में की जाती है जो आखिरीबार 2011 में की गई थी. वहीं राजस्थान की बात करें तो तमाम कार्यक्रमों और जागरुकता फैलाने के बाद भी लिंगानुपात में समानता लाना लगभग नामुमकिन है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Feb 3, 2020, 11:53 AM IST
    • वर्ष 2019 तक राज्य में 154 डिकॉय ऑपरेशन किये गए
    • राजस्थान में बालिका लिंगानुपात में सुधार में सबसे अहम भूमिका पीसीपीएनडीटी एक्ट का
बेटियों की संख्या में वृद्धि के बाद भी लिंगानुपात को समान स्तर तक पहुंचाना है बड़ी चुनौती

जयपुर: वर्ष 2011 में राजस्थान में प्रतिदिन 218 बेटियां जन्म ले रही थी तो वहीं वर्ष 2019 में 2011 की तुलना में प्रतिदिन 116 बेटिया ज्यादा पैदा हुई. लेकिन इसके बाद भी समान लिंगानुपात आना इस जनगणना में नामुमकिन सा ही लग रहा है.

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वर्ष 2021 की जनगणना 2020 में प्रारंभ होगी. 2011 की जनगणना में राजस्थान (0-6) वर्ष का बालिका लिंगानुपात 888 था जो बढक़र करीब 925 तक जा सकता है. आंकड़ों के अनुसार जीवित शिशु जन्म दर के अनुसार प्रतिवर्ष बालिका लिंगानुपात में सुधार हुआ है. कैलेंडर वर्ष के अनुसार वर्ष 2014 में लिंगानुपात 927, वर्ष 2015 में 929, 2016 में 939 वर्ष, 2017 में 943, वर्ष 2018 में 948 तथा वर्ष 2019 में 947 है. 2021 की जनगणना में 2015 से 2021 जनवरी तक के बच्चों को शामिल किया जाएगा. इससे यह माना जा सकता है कि जीवित शिशु जन्म दर के आंकड़ों में बालिका लिंगानुपात का सुधार शिशु लिंगानुपात (0-6) वर्ष 2021 की जनगणना में दिखाई देगा.

सामाजिक कार्यकर्ता का अध्ययन 
सामाजिक कार्यकर्ता राजन चौधरी के द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार वर्ष 2014 में प्रतिदिन 148 बेटियां कम पैदा हो रही थी जो वर्ष 2019 के आंकड़ों के अनुसार प्रतिदिन 102 बेटियां, बेटों की तुलना में कम पैदा हो रही है. जिसका मतलब है कि 2014 के बाद वर्ष 2019 में प्रतिदिन 46 बेटियां ज्यादा पैदा होने लगी हैं. वर्ष 2015 में प्रतिदिन 141 बेटियां कम पैदा हो रही थी, वर्ष 2016 में प्रतिदिन 110 बेटियां कम पैदा हो रही थी जबकि वर्ष 2017 में प्रतिदिन 110 बेटियां कम पैदा हो रही थी, वहीं वर्ष 2018 में प्रतिदिन 100 बेटियां कम पैदा हो रही है. वर्ष 2019 में प्रतिदिन 102 बेटियां कम पैदा हो रही है यानी वर्ष 2018 के अनुपात में प्रतिदिन दो बेटियां ओर कम पैदा होने लगी है. यदि वर्ष 2011 के आंकड़े देखें तो प्रतिदिन 218 बेटियां कम पैदा होती थी यानी वर्ष 2011 के बाद बेटियों की बढ़ी हुई संख्या का आंकलन किया जाए तो करीब 3.25 लाख बेटियों की संख्या में वृद्धि हुई है.

लिंगानुपात को समान करने के लिए लोगों तक जागरूकता अभियान चलाया गया
राज्य में पीसीपीएनडीटी एक्ट का प्रभावी क्रियान्वयन 2009 में प्रारंभ हुआ था. वर्ष 2015 में पीसीपीएनडीटी एक्ट के अनुरूप राज्य स्तर पर कार्यवाही प्रारंभ की गई और वर्ष 2016 में इंटर स्टेट स्तर पर पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत भी कार्रवाई करना प्रारंभ किया गया. वर्ष 2019 तक राज्य में 154 डिकॉय ऑपरेशन किये गए. जिनमें से 42 डिकॉय ऑपरेशन इंटर स्टेट किए गए थे. सोनोग्राफी मशीन का दुरुपयोग करने वालों में कानून का भय पैदा होने से राजस्थान के विभिन्न जिलों में लिंग जांच करने वाले डॉक्टर व दलालों द्वारा स्थानीय स्तर पर लिंग जांच नहीं करवा कर अन्य राज्यों में भेजना प्रारंभ कर दिया गया. कुछ दलालों ने अवैध सोनोग्राफी के माध्यम से भी लिंग जांच व चयन प्रारंभ कर दिया लेकिन राज्य व जिला पीसीपीएनडीटी के मजबूत नेटवर्क व मुखबीरों की वजह से दलालों को भी कई बार पकड़ा गया. कानून की पालना के साथ-साथ गांव, कस्बा ब्लॉक व जिला स्तर तक बैठकों का आयोजन कर जागरूकता पैदा की गई.

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लिंग अनुपात में वृद्धि के बाद भी दोनों में समानता में है भारी कमी
जागरूकता का नतीजा यह रहा कि राजस्थान में अन्य राज्यों से अधिक बजट मुखबीर योजना में खर्च हुआ. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के साथ मिलकर डॉटर्स आर प्रिसीयस में अनके नवाचार किये. इन नवाचारों की वजह से बेटियों के प्रति भावनात्मक व सामाजिक बदलाव आने प्रारंभ हुए वही लिंग समानता के विषय पर स्कूल, कॉलेज व सार्वजनिक बैठकों में एजेण्डा बनाकर चर्चा होने लगी. राजस्थान में बालिका लिंगानुपात में सुधार में सबसे अहम भूमिका पीसीपीएनडीटी एक्ट का प्रभावी क्रियान्वयन ही रहा है. कानून लागू होने से पूर्व लिंग जांच व चयन की दर 1500 से 2500 रूपये थी जो बढक़र 50 से 70 हजार हो गई. कुल मिलाजुलाकर यह कहा जा रहा है कि राज्य में बेटियों की संख्या में वृद्धि तो हुई है लेकिन बेटियों की संख्या बेटों के बराबर लाना सरकार, सामाजिक संगठनों व आमजन के लिए बड़ी चुनौती ही रहेगी.

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