भारत को अपनी बेटियों पर गर्व है!

'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' का नारा देने वाले कर्मयोगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देश को अपनी बेटियों पर गर्व है जो देश में ही नहीं विदेशों में भी भारत का नाम कर रही हैं..

Written by - Parijat Tripathi | Last Updated : Sep 2, 2020, 01:49 AM IST
    • लंदन में नूरुन्निसा इनायत खान का बलिदान
    • नूर के भाई थे योगी
    • फ्रांस में बसा था नूर का परिवार
    • ब्रिटिश गुप्तचर बनी नूर
    • नाजियों ने पकड़ा और मौत की सजा दी
भारत को अपनी बेटियों पर गर्व है!

नई दिल्ली.  डेमोक्रेटिक पार्टी की वाइस प्रेसीडेंट पद की उम्मीदवार कमला हैरिस के नाम के साथ अमेरिकी चुनावों में इस बार भारत का नाम गूंज गया है. कमला हैरिस से भी पहले भारतीय मूल की अमेरिकी कांग्रेस की पहली हिन्दू महिला के रूप में तुलसी गब्बार्ड को भी अमेरिका ने भारत के नाम के साथ याद किया है इन्हीं चुनावों में. हालांकि तुलसी ने इन चुनावों में अपनी उम्मीदवारी का नाम वापस ले लिया है.

 

इंग्लैंड याद कर रहा है नूरुन्निसा को

अमेरिका की तरह इंग्लैण्ड भी भारत की एक बेटी को याद कर रहा है. लंदन में भारत की इस बेटी का नाम नूरुन्निसा इनायत खान था जिसके बलिदान को ब्रिटेन में बहुत प्यार के साथ स्मरण किया जा रहा है. नूरुन्निसा भारत की ही बेटी थी अर्थात उसके माता पिता भारत के एक इज्जतदार मुस्लिम खानदान के वारिस थे. नूर की मां टीपू सुलतान की संबंधी थी और उसकी दादी ओरा बेकर एक अमेरिकन महिला थी.

नूर के भाई थे योगी  

नूर के खानदान की तरफ से नूर का परिचय अभी समाप्त नहीं हुआ है. अपने परिजनों की तरह नूर का भाई भी अमेरिकी था और बेहतर अलफ़ाज़ में कहें तो एक अमेरिकी योगी था नूर का  बड़ा भाई. और खुद नूर हिन्दुस्तानी मूल की ज़रूर थी पर जन्म से रूसी थी अर्थात उसका जन्म मास्को में हुआ था आज से एक सौ छह साल पहले अर्थात वर्ष 1914 में. पांच साल की थी नूर जब वो परिवार सहित लंदन आ गई थी. भारत से उसका मूल परिचय बस इन्हीं पांच मासूम वर्षों का था.

 

फ्रांस में बसा था नूर का परिवार 

नूर जब छह साल की थी उसका परिवार फ्रांस आकर वहीं बएस गया. यहीं पढ़ लिख कर बड़ी हुई नूर और पच्चीस साल की आयु में उसने अपनी पहली पुस्तक लिखी जो बुद्ध की जातक कथाओं पर आधारित थी. द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारम्भ में नूर का परिवार फिर लंदन आ गया और वहां ने ब्रिटिश आर्मी ज्वाइन कर ली. उसे ब्रिटिश आर्मी में वायरलेस आपरेटर की भूमिका मिली. 

ब्रिटिश गुप्तचर बनी नूर 

अगले वर्ष अर्थात 1943 में नूर को ब्रिटिश गुप्तचर विभाग में नौकरी मिल गई. उसे बड़ी जिम्मेदारी दी ब्रिटिश सरकार ने और उसे फ़्रांस भेज दिया जहां नूर ने जर्मनी की खतरनाक नाजी सेना के खिलाफ जासूसी का काम शुरू कर दिया. नूर का काम इतना शानदार था कि शायद उस दौर में सारी दुनिया में नूर से बड़ा कोई जासूस नहीं था. और फिर वही हुआ जिसका डर था, नूर पकड़ा गई. वो साल था 1944 जब नाजियों ने नूर को बदतरीन यातनाएं दे कर मौत की नींद सुला दिया. नूरुन्निसा के उपकार को ब्रिटेन के लोग आज तक भूले नहीं हैं. नुरुन्निसा के सम्मान में लंदन के ट्रैफलगर स्क्वेयर पर उनके नाम की एक नीली तख्ती लगाई जा रही है. भारत को भी गर्व है अपनी बेटी पर.

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