GI टैग के चक्कर में फंसा यह सुगंधित चावल, जानिए बासमती की कहानी

सदियों और सदियों के पहले से शाही खान-पान की शान रहा है बासमती. समय का चक्का घूमता रहा, नहीं रहे अंग्रेज, न रहे अमीर दोस्त मोहम्मद. फारसी, अफगानी भी नहीं रहे, रह गए तो केवल हमारी-आपकी प्लेट में परोसे गए बासमाती, जिनकी सुगंध सदियों की कहानी अपने समेटे हुए है. 

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Aug 7, 2020, 03:35 PM IST
    • सदियों पहले फारसी व्यापारियों ने भी चखा था बासमती की किस्मों का स्वाद
    • भारत की धान परंपरा में बासमती सबसे प्रसिद्ध और उन्नत किस्म रही है
GI टैग के चक्कर में फंसा यह सुगंधित चावल, जानिए बासमती की कहानी

नई दिल्लीः बासमती, नाम ऐसा कि सुनते ही कानों में रस घुलने लगे, सुगंध ऐसी कि जुबान पर छूने से पहले ही तृप्ति का अहसास दे और स्वाद.. स्वाद के क्या ही कहने. बिरयानी हैदराबाद की हो या चौराहे पर खड़े रेहड़ी वाले की, पुलाव चाहे मटर हो या कश्मीरी, लेकिन चावल बासमती न हो तो सारा स्वाद बेमजा...

शाही खान-पान की शान रहा है बासमाती
सदियों और सदियों के पहले से शाही खान-पान की शान रहा है बासमती. लज्जतदार और लजीज स्वाद का यह राजभोग आज फंस गया है जीआई टैग के चक्कर में. इस लड़ाई में बासमती पर अपना पूरा हक जमा रहा है मध्य प्रदेश. उनका कहना है कि बासमती भले ही उनके यहां का न हो, लेकिन उसकी पारंपरिक पैदावार, उत्पादन, गुणवत्ता और व्यापार में मध्य प्रदेश का सानी कोई नहीं.

 हालांकि एक तरीके से उनकी बात ठीक भी है, क्योंकि बासमती की आपूर्ति पर मध्य प्रदेश के 13 जिलों का उत्पादन वाकई प्रभावी है. लेकिन, जीआई टैग के अपने कायदे-कानून हैं और मसला उसमें ही फंसा हुआ है. मध्य प्रदेश औऱ पंजाब इसमें आमने-सामने हैं. 

कभी इस खुश्बू से दूर-दूर तक महका गांधार
लेकिन..इतने सुगंध और दर्शनीय नाम की कोई कहानी न हो ऐसा हो नहीं सकता..  कहानी की शुरुआत इसके नाम से होती है. कहते हैं कि जब अफगानिस्तान हजारों साल पहले गांधार हुआ करता था तो पहाड़ों की तराई-घाटी इलाके अचानक ही साल की खास चार नम महीनों में खुश्बू से भर उठते थे.महीने 

बहुत खोजबीन करने पर स्थानीय लोगों ने पाया कि यह खुश्बू एक बेहद ही लचीली पौध के समूहों से आती है. पौधे इतने लचीले होते थे कि तेज हवा बिल्कुल नहीं सह सकते थे और झुक जाते थे. 
इन्हीं पौध के बीज से जो धान मिला उसकी खुश्बू ने उसे नाम दिया सुवास, और आगे चलकर यही बना बासमती. 

फारसी व्यापारी भी हुए थे मुरीद
बासमती की जन्म तो बड़ी ही खूबसूरत वादियों में हुआ, लेकिन अभी इसे जिंदगी में काफी कुछ देखना बाकी था. यह खुश्बूदार चावल सिंधु नदी के किनारे बसे शहरों में गया और इसकी सहायक झेलम नदी के शहरों की राजधानी में भी खूब बनाया गया. 

कहते हैं कि फारसी व्यापारी जब भारत के तक्षशिला और पौरव राज्यों में आए थे तो वे सिर्फ अपने साथ रत्न-मणिक का ही व्यापार नहीं कर रहे थे, बल्कि अपने साथ खुश्बूदार चावल की किस्में भी ले गए थे. इतिहास और भारतीय राजनीति के पिछले दस्तावेजों में भी बासमती चावल की सुगंध बिखरी हुई है. 

और सत्ता बदली तो बदला बासमती का घर
समय का चक्र घूमता रहा युद्ध-आक्रमण और सत्ता परिवर्तन के दौर चलते रहे औऱ इसी के साथ कला-संगीत और स्वाद की भी मिल्कीयत बदलती रही. कई सौ सालों का इतिहास देखने के बाद अब बासमती को निर्वासन का दंश भी झेलना था. इतिहास अब 1839 के दौर में था. 

यह वह समय था कि अंग्रेज भारत में कदम रख चुके थे और ईस्ट इंडिया कंपनी बनाकर सामने व्यापार कर रहे थे और इसकी ही आड़ में अपनी सत्ता फैला रहे थे. 

अंग्रेजों का पहला अफगान युद्ध
इस सिलसिले में उनका कांटा था अफगानिस्तान. अफगान. उस वक्त अफगान में अमीर शासन था. 1826 में दोस्त मोहम्मद खान अफगान का अमीर बना था. 1839 ईस्ट इंडिया कंपनी ने उस पर आक्रमण कर दिया और 1842 तक चले युद्ध का नतीजा हुआ कि 


अमीर दोस्त मोहम्मद को पद से हटा दिया गया और फिर उसे निर्वासित कर दिया गया. 

निर्वासित अमीर ने उत्तराखंड में रोपी बासमती
दोस्त मोहम्मद खान को निर्वासित जीवन गुजारने के लिए देहरादून भेज दिया गया. मोहम्मद खान की उदासी के दिनों को यहां की आबो हवा ने खुशनुमा तबीयत में बदलने की कोशिश की, लेकिन चावलों का स्वाद अमीर को पसंद नहीं आया.

अब अमीर ने उचित जलवायु, पानी की उपलब्धता और ठंडी तासीर देखते हुए अफगान से धान की किस्में मंगाईं. यहां देहरादून में उनकी रोपाई की गई और नतीजा जो सामने आया कि यहां का बासमती अफगान से भी उन्नत किस्म का था. 

किसे मिलेगा जीआई टैग
समय का चक्का घूमता रहा, नहीं रहे अंग्रेज, न रहे अमीर दोस्त मोहम्मद. फारसी, अफगानी भी नहीं रहे, रह गए तो केवल हमारी-आपकी प्लेट में परोसे गए बासमाती, जिनकी सुगंध सदियों की कहानी अपने समेटे हुए है. 

जीआई टैग मध्य प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड में से किसे मिलता है, यह देखने वाली बात होगी , तब तक के लिए बासमाती खाइए. 

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