नई दिल्ली: रेल मंत्रालय ने अपने घर से दूर फंसे प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने की घोषणा की. लेकिन इस पर जमकर राजनीतिक घमासान शुरू हो गया. कांग्रेस और विपक्ष ने इसे सरकार पर निशाने का हथियार बना लिया. लेकिन सच सामने आया तो सब हक्के बक्के रह गए.
यहां से शुरू हुआ विवाद
श्रमिक स्पेशल ट्रेनें सामाजिक सरोकार के तहत चलाई गई हैं. रेल मंत्रालय ने एक बयान जारी करके कहा कि 'रेलवे ने देश के विभिन्न हिस्सों से अब तक 34 श्रमिक विशेष ट्रेनें चलाई हैं और संकट के इस समय में विशेष रूप से गरीब से गरीब लोगों को सुरक्षित और सुविधाजनक यात्रा प्रदान करने की अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को पूरा कर रही है.' रेल मंत्रालय के इस आदेश के बाद ट्रेनों का परिचालन शुरू हो गया.
लेकिन इस पर विवाद इसलिए शुरू हो गया क्योंकि आरोप लगाया गया कि भूखे प्यासे श्रमिकों को घर पहुंचाने के एवज में उनसे मोटी रकम वसूली जा रही है. विपक्ष ने आरोप लगाना शुरू कर दिया कि जिन गरीब मजदूरों के पास खाने के लिए पैसे नहीं हैं. वह घर पहुंचने के लिए किराया कहां से देंगे. इसके बाद आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया.
कांग्रेस ने हमेशा की तरह शुरू कर दी राजनीति
मामला गरीब मजदूरों से जुड़ा था. जो कि एक बड़ा वोटबैंक है. इसलिए कांग्रेस ने तुरंत मुद्दा लपकने की कोशिश की. गांधी खानदान तुरंत सामने आ गया. राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर हमला बोला कि 'रेलवे ऐसे समय में रेल टिकट के लिए प्रवासी मजदूरों से पैसे वसूल रहा है जिस समय वह PM-CARE फंड में पैसे दान कर रहा है'.
इसके बाद माननीय सोनिया गांधी जी प्रकट हुईं और गरीब मजदूरों के लिए घड़ियाली आंसू बहाते हुए अपने कांग्रेसी दरबारियों को आदेश जारी किया कि गरीब मजदूरों के हिस्से का किराया प्रदेश कांग्रेस कमिटियां वहन करेंगी.
कांग्रेस का झांसा इतना बड़ा था कि महाबुद्धिमान होने का दावा करने वाले सुब्रमण्यम स्वामी भी इसकी चपेट में आ गए. उन्होंने कहा कि "यह कितना मूर्खतापूर्ण है कि सरकार भूखे मजदूरों से रेलवे का महंगा किराया वसूल रही है और विदेश से लोगों को मुफ्त लेकर आ रही है. अगर रेलवे ने इसकी जिम्मेदारी लेने से मना किया था तो PM केयर्स से इसका इंतजाम करना चाहिए." हालांकि बाद में रेल मंत्रालय से बात करने के बाद उनका भ्रम दूर हुआ.
ये है पूरी सच्चाई
बाद में रेल मंत्रालय ने पूरी तरह साफ किया कि गरीब मजदूरों से किसी तरह का किराया नहीं वसूला जा रहा था. बल्कि उन्हें घर पहुंचाने का 85 फीसदी खर्च खुद मंत्रालय अपनी तरफ से प्रदान कर रहा था. जबकि 15 फीसदी हिस्सा उन राज्य सरकारों से वसूला जा रहा था, जिन राज्यों के लिए ट्रेनें रवाना हो रही थीं.
इसे साफ शब्दों में इस प्रकार समझें. यदि किसी जगह का किराया 1000(एक हजार) रुपए है. तो उसमें से 850 रुपए रेल मंत्रालय दे रहा था. 150 रुपए राज्य सरकारों को देना है. इसमें मजदूरों से एक भी रुपए लेने की बात ही नहीं थी. लेकिन विपक्ष ने भ्रम फैलाकर इस मुद्दे पर हंगामा खड़ा कर दिया.
राज्य सरकारों ने भी स्पष्ट किया
प्रवासी मजदूरों में से सबसे ज्यादा संख्या बिहार के लोगों की है. जहां के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सामने आकर स्पष्ट किया कि किसी भी मजदूर को एक रुपए भी देने की जरूरत नहीं है.
इसके बाद पूरा मामला शीशे की तरह साफ हो गया और कांग्रेस की राजनीति की कलई उतर गई.
जब 85 फीसदी केंद्र सरकार दे रही है. बाकी का 15 फीसदी राज्य सरकार दे रही है तो किस कांग्रेसी को कहां पैसा खर्च करना है. जिसके लिए सोनिया गांधी ने उन्हें आदेश दिया है. ये सिर्फ और सिर्फ गुरबत की त्रासदी की आग पर राजनीति की रोटियां सेंकने की साजिश थी.