Rahul politics: राजनीति का 'मौकापुर' बना हाथरस

दिल्ली से 200 किलोमीटर दूर एक मां बदहवासी के आलम में इंसाफ के लिए तरस रही है. उसी इंसाफ की तराजू पर एक बड़ी पार्टी के नेता अपने सियासी वजन को तोलने निकल पड़े.  हमदर्दी और हल्लाबोल के कॉकटेल से सजी राजनीति का खूब ड्रामा देखने को मिला.  जिसमें दर्द कम दिखावा ज्यादा था. पुलिस से भिड़े, बयानबाजी की और लौट आए. क्योंकि सियासत जरुरत के मुताबिक अपने अंजाम तक पहुंच चुकी थी.   

Written by - Umesh Gupta | Last Updated : Oct 2, 2020, 07:50 AM IST
    • हमदर्दी का 'दिखावा' - सियासत का 'तकाज़ा'
    • कांग्रेस पार्टी की दिखावे की राजनीति
    • रेप पीड़िता की मौत के बाद दर्द पर सियासत
Rahul politics: राजनीति का 'मौकापुर' बना हाथरस

हाथरस: बलात्कार और बेटी की मौत जैसे बड़े हादसे पर सियासत कर रहे कांग्रेस लीडर को ये जरूर समझना चाहिए. कि बेटियों के साथ होने वाले जुल्म पर सस्ती सियासत से बचना चाहिए.. बल्कि देश की हर बेटी से हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाकर बताना चाहिए था. कि सियासत से बड़ी संवेदना होती है.

'न्याय' की बेचैनी या राजनीति की ?
16 दिन से एक मां बेटी के घर वापस लौटने का इंतजार करती रही.. वो रोती रही. बेटी अस्पताल में तड़पती रही. आखिर उसकी राख ही दहलीज तक पहुंची. लेकिन तब तक ना तो राहुल गांधी को हाथरस का पता था. ना ही कांग्रेस का हाथ, पीड़िता के घरवालों को इंसाफ दिलाने के लिए साथ था. लेकिन आज अचानक से राहुल गांधी को याद आ गया. अरे यूपी में बीजेपी की सरकार है. इसलिए थोड़ा घेर लिया जाए. थोड़ा कांग्रेस में दम फूंक दिया जाए.

हाथरस में जिस परिवार पर मुसीबत का पहाड़ टूटा है. उसे पता ही नहीं कि एक्सप्रेस वे पर राहुल गांधी उनके लिए पुलिस से पंगा ले रहे थे. जबकि एक पुलिस अधिकारी प्रार्थना कर रहा था. लॉ एंड ऑर्डर का हवाला दे रहा था. लेकिन आज तो कांग्रेसियों को गुस्सा सातवें आसमान पर था. इसलिए नहीं कि बेटी को इंसाफ नहीं मिला.. बल्कि इसलिए राहुल गांधी आखिर गिर कैसे गए.

खैर सियासत में इतना ड्रामा ना हो तो कार्यकर्ताओं को भी बेचैनी रहती है.. रसातल में जा पहुंची कांग्रेस संजीवनी की चाहत में हाथरस तक जाने की कोशिश में थी. लेकिन पुलिस ने उसकी बेचैनी को और बढ़ा दिया.

सियासत करो लेकिन संवेदना मत भूलो !
राहुल गांधी और प्रियंका के तेवरों को देखकर लग रहा था. जैसे कांग्रेस बेटियों को बचाने के लिए कुछ कर गुजरेगी. अब के बाद भारत में बेटियों पर अगर कुछ हुआ तो राहुल गांधी हाथरस के रूट की तरह ही हर जगह पैदल ही जाने को तैयार हो जाएंगे. लेकिन ये उम्मीद तब टूट जाती है. जब यूपी के ही कुछ दूसरे शहरों में बेटियों से अत्याचार की खबर आती है.
- यूपी के बलरामपुर में छात्रा से गैंगरेप के बाद हत्या. राहुल गांधी वहां नहीं गए
- यूपी के आजमगढ़ में 9 साल की बच्ची से दरिंदगी. राहुल गांधी वहां भी नहीं गए
- यूपी के बुलंदशहर में नाबालिग से रेप फिर तेजाब से जलाने की धमकी. लेकिन राहुल गांधी वहां भी नहीं पहुंचे

अब सवाल ये क्या भाई-बहनजोड़ी को हाथरस में ही उपजाऊ सियासी फसल दिखाई. जिसे काटने दोनों कार्यकर्ताओं के साथ जा पहुंचे. क्या मीडिया के कैमरों के सामने कांग्रेस का विरोध सबको दिखाई देगा. इसलिए राहुल गांधी ने हाथरस की तरफ की कूच किया.

अब सियासी दोगलेपन की एक और नजीर देखिए. चलिए मान लिया यूपी में योगी राज पर सवाल उठाने के लिए कांग्रेस को आना पड़ा. लेकिन राजस्थान में बेटियों के साथ हुई दरिंदगी पर राहुल गांधी क्यों खामोश थे..

हाथरस पर हल्लाबोल लेकिन राजस्थान पर राहुल चुप
राजस्थान के सीकर में नाबालिग से रेप हुआ. राहुल गांधी ना गए ना कुछ बोले. राजस्थान के बारां में दो नाबालिग बहनों से गैंगरेप. राहुल गांधी की जुबान तक नहीं हिली. 
इतना ही नहीं बारां में आरोपियों को पुलिस ने छोड़ दिया. पीड़िता को जुबान नहीं खोलने की धमकी दी गई.. पिता इंसाफ के लिए तड़प रहा है. बच्चियां आरोपी का नाम तक बता रहीं हैं. लेकिन गहलोत और उनके सरपरस्त राहुल गांधी की जुबान सिल गई..अब सवाल ये कांग्रेस का हाथरस की बेटी को इंसाफ दिलाने का हल्लाबोल सिर्फ सियासत के लिए था. क्योंकि वहां देश भर की निगाहें थीं. मीडिया के कैमरे थे. ऐसे में कांग्रेस कैसे चूक जाती. सवाल तो ये भी है. अगर राहुल गांधी औऱ प्रियंका गांधी को वाकई बेटियों की इतनी चिंता होती तो वो दूसरी बेटियों को क्यों भूल गए. क्या सियासत के ड्रामे पर उनका किरदार कमजोर पड़ रहा था. या फिर राजस्थान में अपनी सरकार को देख. उनका कलेजा गहलोत के लिए नरम पड़ गया था.

ये भी पढ़ें- हाथरस रेप केस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का स्वत: संज्ञान

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