Basant Panchami 2021 पर पढ़िए वीर हकीकत राय के बलिदान की गाथा

बसंत पंचमी के दिन लाहौर में हुआ वीर हकीकत राय का बलिदान पहला बलिदान माना जाता है जो धर्म परिवर्तन के खिलाफ हुआ था. 14 साल के इस बच्चे ने निर्भीकता और निडरता की ऐसी मिसाल पेश कर दी थी कि हर भारतीय मां अपने बच्चे से कहने लगी कि बनना हो तो हकीकत जैसा वीर बन.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Feb 16, 2021, 10:58 AM IST
  • पंजाब के सियालकोट में 1728 को जन्मे थे हकीकत राय
  • 1742 में धर्म परिवर्तन नहीं किया तो लाहौर में हुआ बलिदान
Basant Panchami 2021 पर पढ़िए वीर हकीकत राय के बलिदान की गाथा

नई दिल्लीः साल था 1742. सारे पंजाब में बसंत झूम कर तो आया था, लेकिन बहारों को न जाने क्या हुआ कि वह लाहौर जरा धीमे-धीमे पहुंची, लेकिन उनसे पहले लाहौर पहुंच गया एक 14 साल का बालक. जिसके हाथ बेड़ियों में जकड़े थे और कमर में जंजीरों से जकड़ कर भारी पत्थर लगाया गया था. 

लेकिन मजाल क्या कि उस बच्चे की जीभ ने उफ करना भी सीखा हो और पेशानियों ने बल पड़ना जाना हो. इतने में काजी की आवाज गूंजी, बोल ल़ड़के! तुझे इस्लाम राजी है या मौत?

बेड़ियां बंधे हाथ ऊपर उठाते हुए वह बालक गरजा. पहले ये बता, क्या मुसलमानों को मौत नहीं आती. क्या मुसलमान होकर मैं कभी नहीं मरूंगा?

काजी ने कहा- मजाक करता है क्या? इतना भी नहीं जानता हर किसी को एक दिन खाक होना है. तब उस लड़के ने फिर चीखते हुए कहा- तो जब ऐसा ही है और मौत तय है तो क्यों में अपना धर्म छोड़ दूं? मैं अभी मर जाऊं और तू कल? लेकिम मौत तो दोनों की ही होगी. 

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मैं अपना धर्म नहीं बदलूंगा
एक बार फिर पूरे जोश में चीखते हुए उस लड़के ने कहा-मैं अपना धर्म नहीं बदलूंगा. किसी कीमत पर भी नहीं. इतना सुनना था कि काजी के आदेश पर भीड़ ने पत्थर बरसा-बरसा कर उस बच्चे की हत्या कर दी.

भीड़ छंट गई तब वासंती हवा ने मैदान में गिरे उसे जिस्म को छुआ और दुनिया भर में इस शहादत का परचम लहरा दिया था, जिस पर लिखा था वीरगति को प्राप्त वीर हकीकत राय. 

पंजाब के स्यालकोट में जन्म
हकीकत राय की कहानी शुरू होती है पंजाब के स्यालकोट से. साल 1728 में यहां के व्यापारी बागमल और उनकी पत्नी कौरां के घर एक सुंदर-मनोहर बालक ने जन्म लिया. नाम रखा गया हकीकत. मां उसे ऊपर वाले का आशीर्वाद बताती और अपना सारा प्यार लुटा देती.

धीर-धीरे हकीकत बड़ा होने लगा, लेकिन उसके साथ एक अजीब बात होने लगी कि नन्हा सा बालक गीता-पुराण पढ़ने लगा.

आश्चर्य कि इस चार साल के बच्चे ने तब तक का सारा इतिहास पढ़ डाला था और पौराणिक कथाएं तो बिल्कुल याद कर ली थीं. 

मौलवी के यहां पढ़ने गए हकीकत
इस्लामी शासकों के उस दौर में अफसरी और सरकारी कामकाज की भाषा फारसी थी. इसलिए समाज के साथ कदमताल करने के लिए हकीकत को मौलवी के पास भेजा गया. तालीम में अच्छे हकीकत ने सारे सबक जल्द ही सीख लिए. यह वह समय था जब हिंदुओं को हेय दृष्टि से देखा जाने लगा.

मौलवी के यहां पढ़ने वाले अन्य लड़के सनातनी देवी-देवताओं का मजाक बनाया करता थे. एक दिन हकीकत की बहस कुछ मुस्लिम लड़कों से हो गई. उन्होंने मां दुर्गा को अपमानित किया. 

सनातन परंपरा का हो रहा था अपमान
इस पर हकीकत ने कहा कि मैं भी अगर आपके धर्म के लोगों पर ऐसी टिप्पणी करूं तो? हकीकत के इस सवाल ने माहौल में सन्नाटा भर दिया. आनन-फानन में हकीकत को बंदी बना लिया गया. मुस्लिम बच्चों ने शोर मचा दिया की इसने बीबी फातिमा को गालिया निकाल कर इस्लाम और मोहम्द का अपमान किया है.

इसके बाद हाकिम आदिल बेग के समक्ष हकीकत को पेश किया. आदिल समझ गया कि समझ गया की यह बच्चों का झगड़ा है, मगर मुस्लिम लोग उसे मृत्यु-दण्ड देने की मांग करने लगे. 

माता-पिता ने भी हकीकत को समझाया
अपने बेटे को बचाने के लिए पिता बगमाल ने किसी तरह लाहौर में फरियाद करने की मोहलत मांगीं. दो दिन तक चलकर हकीकत और उनके माता-पिता पैदल चलकर लाहौर पहुंचे. पंजाब का नवाब ज़करिया खान था.

उसके सामने भी हकीकत को मृत्युदंड की मांग की गई और यही विकल्प रखा गया कि हकीकत माफी मांग कर इस्लाम कबूल कर ले. इसके लिए उसके माता-पिता और अन्य सभी ने समझाया लेकिन हकीकत नहीं माना. 

2 दिन बैठक के बाद मुकर्रर हुई मौत
तब लाहौर के काजियों ने कहा कि यह इस्लाम का मुजरिम है. इसे आप हमे सौंप दे. हकीकत की सजा क्या हो यह तय करने के लिए दो दिन की बैठक हुई. तब तय किया गया 14 साल के बालक को पत्थर मार-मार कर मौत दे जाए. इसके लिए बकायदे मुनादी कराई गई ताकि लाहौर के लोग अधिक से अधिक पहुंच सकें.

अगले दिन हकीकत को कोतवाली के सामने आधा जमीन में गाड़ दिया गया और लोग उस पर पत्थर मारने लगे. 

वासंती रुत में याद कीजिए हकीकत का बलिदान
इसी बीच जब हकीकत पत्थर खाते-खाते हकीकत बेहोश हो गए तो जल्लाद ने उनका सिर कलम कर दिया. धर्म परिवर्तन के लिए अपना बलिदान देने वाले हकीकत राय पहले वीर थे. 14 साल की उम्र में उन्होंने त्याग और बलिदानन का मर्म समझ लिया था. उनके बलिदान के बाद लाहौर में उनका समाधि स्थल बनाया गया.

वहीं स्यालकोट में भी उनका समाधि स्थल बना दिया गया था. जिसे बाद में तोड़ दिया गया था. 

लाहौर में आज भी इस बलिदानी की बलिवेदी पर हर बरस मेले सजते हैं. वासंती रुत वाली बसंत पंचमी के दिन जब तेज हवा बहती है तो उनमें कहीं न कहीं वीर हकीकत राय की खिलखिहाट मिली होती है. उन्हें नमन.

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