महान शिष्य विवेकानंद का गुरु रामकृष्ण परमहंस से भेंट का अलौकिक संयोग

जैसे अद्वितीय गुरूदेव थे वैसे ही अद्वितीय उनके शिष्य भी थे.. और ठीक ऐसा ही अलौकिक संयोग भी बना था जब दोनो महापुरुषों की हुई थी प्रथम भेंट..  

Written by - Ravi Ranjan Jha | Last Updated : Nov 23, 2020, 04:37 PM IST
  • गुरू का दिशा-दर्शन कराया रामचंद दत्त ने
  • कलकत्ता में हुई थी गुरु-शिष्य मिलन सर्वाधिक अनूठी घटना
  • विलियम हेस्टी ने भी किया था रामकृष्ण परमहंस का उल्लेख
  • नवंबर 1881 में हुई थी दोनो महापुरुषों की प्रथम भेंट
महान शिष्य विवेकानंद का गुरु रामकृष्ण परमहंस से भेंट का अलौकिक संयोग

नई दिल्ली.     नरेन के एक रिश्तेदार थे रामचंद्र दत्त. वे रामकृष्ण परमहंस के अनन्य भक्त थे. उनसे विवेकानंद मन की बातें करते थे. एक बार उन्होंने विवेकानंद से पूछा कि आपके जीवन का लक्ष्य क्या है- उच्च शिक्षा हासिल करना, पद प्रतिष्ठा पैसा प्राप्त करना, समाज सुधारना या देश को आजाद कराना. विवेकानंद ने कहा कि मेरा मकसद तो बस ईश्वर की खोज करना है. क्या मुझे ये सौभाग्य मिल सकता है?

गुरू का दिशा-दर्शन कराया रामचंद दत्त ने

सत्य के प्रति नरेन की गहन जिज्ञासा देखकर रामचंद्र दत्त ने उनको गुरू की दिशा का दर्शन कराया. उन्होंने कहा कि आपको आपके सवाल का जवाब पाने के लिए दक्षिणेश्वर जाना होगा. इस धरती पर एक ही व्यक्ति है रामकृष्ण परमहंस जो इस सवाल का सही मायनों में जवाब दे सकता है. गुरु के बारे में सुनकर शिष्य के मन की अतल गहराइयों में जो लहरें उठी वो तब सतह पर नहीं आ सकीं.  हालांकि गुरु से मिलन का परम अलौकिक संयोग बहुत बाद की बात है.

गुरु-शिष्य मिलन की थी अनूठी घटना

रामकृष्ण परमहंस से स्वामी विवेकानंद की पहली मुलाकात हिन्दुस्तान की सदियों पुरानी गुरु-शिष्य परंपरा की सर्वाधिक अनूठी घटनाओं में से है. दरअसल 1877 से 1879 तक स्वामी विवेकानंद अपने परिवार के साथ रायपुर में रहे. इस दौरान उन्होंने स्कूली शिक्षा तो नहीं ली लेकिन स्वाध्याय में इतने लीन हो गए कि इतिहास, दर्शन शास्त्र, धार्मिक ज्ञान में निपुण हो गए. 1879 में कोलकाता लौटकर उन्होंने प्रसिडेंसी कॉलेज में एंट्रेस एक्जाम दिया और पहला स्थान हासिल किया. नोबेल पुरस्कार से सम्मानित फ्रांसीसी लेखक और नाटककार रोमां रोलां ने विवेकानंद के बारे में कहा था- "उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असंभव है, वे जहां भी गए प्रथम ही रहे, वे ईश्वर के प्रतिनिधि थे और सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशिष्टता थी."

विलियम हेस्टी ने भी किया था गुरुदेव का उल्लेख

प्रेसिडेंसी कॉलेज के बाद उन्होंने जनरल एसेंबलीज इंस्टीट्यूशन में दाखिला लिया. यही कॉलेज बाद में स्कॉटिश चर्च कॉलेज के नाम से विख्यात हुआ. यहां उन्होंने वेस्टर्न हिस्ट्री, वेस्टर्न फिलॉसफी और तर्कशास्त्र की पढ़ाई की. इस कॉलेज के प्रिंसिपल विलियम हेस्टी ने एक बार कहा था कि नरेन्द्र सही मायने में जीनियस है. मैं दुनिया भर में गया हूं लेकिन नरेन्द्र के स्तर का छात्र मैंने नहीं देखा है. विलियम हेस्टी एक बार विलियम वर्ड्सवर्थ की द एक्सकर्शन कविता को पढ़ाते हुए भाव-समाधि की व्याख्या कर रहे थे. विवेकानंद के मन में ईश्वर को जानने की स्वाभाविक तड़प थी. उन्होंने विलियम हेस्टी से पूछा क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में जानते हैं जिसने ईश्वर को देखा हो. विलियम हेस्टी ने कहा कि उनकी नजर में इस धरती पर सिर्फ एक ही व्यक्ति है और वो है दक्षिणेश्वर का संत रामकृष्ण परमहंस.

''एक बार दक्षिणेश्वर आना''

विकेकानंद के मन में बिजली सी कौंध गई. सहसा उन्हें रामचंद्र दत्त की कही बात याद आ गई- 'आपको आपके सवाल का जवाब पाने के लिए दक्षिणेश्वर जाना होगा.'  विवेकानंद के मन में रामकृष्ण परमहंस से मिलने की इच्छा और प्रबल हो गई. दरअसल विलियम हेस्टी के बताने से पहले स्वामी विवेकानंद एक बार रामकृष्ण परमहंस से मिल चुके थे. कोलकाता में सुरेन्द्रनाथ मित्रा रामकृष्ण परमहंस के भक्त थे. परमहंस स्वामी धर्म चर्चा और प्रवचन के लिए उनके घर आया करते थे.

नवंबर 1881 में आया ऐतिहासिक दिवस

नवंबर 1881 में आखिरकार वो दिन भी आया जब धरती पर उतरे इन दोनों देवदूतों की मुलाकात हुई. सुरेन्द्रनाथ मित्रा के घर जब रामकृष्ण परमहंस आए तो भजन गाने के लिए विवेकानंद को बुलाया गया. आध्यात्मिक इतिहास की सबसे अहम घड़ी सामने थी. विवेकानंद भजन गा रहे थे और रामकृष्ण परमहंस इस मंत्रमुग्ध कर देने वाली आवाज पर मुग्ध थे. जबतक विवेकानंद गाते रहे रामकृष्ण परमहंस एकटक, अपलक उन्हें निहारते रहे. बस निहारते रहे. जो महापुरुष भूत भविष्य और वर्तमान एक साथ देख सकता हो वो भला अपने शिष्य को नहीं पहचानता. भजन खत्म हुआ तो परमहंस स्वामी ने विवेकानंद से बस इतना ही कहा -एक बार दक्षिणेश्वर आना!

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