नई दिल्ली: ज़ी हिंदुस्तान अपने सामाजिक कर्तव्यों के तहत अंग्रेजों और वामपंथियों की साजिश की परतें लगातार खोल रहा है. जिनके जरिए भारतीयों के जेहन में गुलामी भर दी गई है. इस षड्यंत्र का खुलासा अति आवश्यक है.
NCERT की किताबों में यज्ञ को लुटेरों का कृत्य बताया
वामपंथी इतिहासकारों ने विचारधारा की कुत्सित रोशनाई और फरेब की कलम से सनानत धर्म को दमभर बदनाम करने की कोशिश की है. अपनी इस विचारधाराई मुहिम को अमली जामा पहनाने के लिए उन्होंने खास तौर पर NCERT की किताबों में जमकर जहर का डबल डोज इंजेक्ट किया है. NCERT की छठी क्लास की किताब के पेज नंबर 46 पर ऋगवेद के हवाले से लिखा गया है-
"युद्ध में जीते गए धन का कुछ भाग सरदार रख लेते थे तथा कुछ हिस्सा पुरोहित को दिया जाता था। शेष धन आम लोगों में बांट दिया जाता था. कुछ धन यज्ञ करने के लिए भी प्रयुक्त होता था. यज्ञ की आग में आहुति दी जाती थी. ये आहुतियां देवी-देवाताओं को दी जाती थीं. घी अनाज और कभी-कभी जानवरों की भी आहुति दी जाती थी."
इन चंद पंक्तियों में ही आपको साजिश के बेशुमार सूत्र मिल जाएंगे. पहली साजिश तो ये कि हम सुसभ्य लोग नहीं बल्कि लूट-पाट करने वाले कबीलाई डकैत थे. जैसे डकैत लूटे हुए धन को आपस में बांटते हैं वैसे ही हम भी बांटते थे.
दूसरी साजिश ये कि हम यज्ञ के लिए लूटे हुए धन का इस्तेमाल करते थे और अधर्म से हासिल किए गए धन से देवी-देवाताओं को आहुति देते थे. साफ है कि यज्ञ जैसी सर्वहितकारी, लोक परलोक सुधारने वाली पुनीत क्रिया को ऐसे पेश किया गया जिससे बच्चों के मन में उसके प्रति घृणा पैदा हो जाए.
सनातन धर्म को नीचा दिखाकर सेमेटिक मजहबों को महान बताने की साजिश
शर्मसार करने वाली विचारधारा के आवेग में अपनी ही विरासत को कलंकित करने वाले इतिहास के इन कर्णधारों का एकसूत्री एजेंडा सनातन संस्कृति के गौरव पर कालिख पोतना और उसके बरक्स विदेशी मजहबों को महान बताना रहा.
वैदिक संस्कृति के लोगों को लुटेरा और दास बनाने वाला बताने के बाद क्रिश्चियनिटी को महान बताने की साजिश कैसे रची गई उसका भी प्रमाण हम NCERT की किताबों के जरिए ही आपको दे रहे हैं. NCERT की ग्यारहवीं कक्षा की किताब में क्या पढ़ाया गया है उस पर जरा गौर कीजिए. इस किताब के पेज नंबर 68 में लिखा गया है-
"भूमध्यसागर और निकटवर्ती पूर्व (पश्चिम एशिया) दोनों ही क्षेत्रों में दासतां की जड़ें बहुत गहरी थीं और चौथी शताब्दी में ईसाई धर्म ने राज्य धर्म बनने के बाद भी इस गुलामी की प्रथा को कोई गंभीर चुनौती नहीं दी."
सहज भाव से लिखी गई इन पंक्तियों में पहली नजर में आपको साजिश के सूत्र नजर नहीं आएंगे, लेकिन हम आपको समझाते हैं. यहां ये बताने की कोशिश हुई है कि सनातन संस्कृति में कमजोर लोगों को दास बनाने की परंपरा थी, क्रिश्चियनिटी ने भी उसे कोई गंभीर चुनौती नहीं दी. इसका मतलब ये कि चुनौती तो दी लेकिन वैसी नहीं जिसकी उनके मजहब से अपेक्षा थी. यानी वो मजहब मानवता पर आधारित था. सनातन धर्म कबीलाई था, क्रूर था.
अपने पापों को ढंकने के लिए लगाया सनातन धर्म पर आरोप
अब जरा आप ये भी जान लीजिए जिस मजहब को दास प्रथा से मुक्ति दिलाने वाला माना गया या बताया गया उसके आधार ग्रंथ बाइबल के ओल्ड टेस्टामेंट के निर्गमन हिस्से के 21वें अध्याय में अन्य नियम एवं आदेश शीर्षक से क्या लिखा है. उसमें लिखा गया है-
अन्य नियम एवं आदेश
तब परमेश्वर ने मूसा से कहा ये वो अन्य नियम हैं, जिन्हें तुम लोगों को बताओगे. यदि तुम एक हिब्रू दास खरीदते हो तो उसे तुम्हारी सेवा केवल 6 वर्ष करनी होगी. 6 वर्ष बाद वो स्वतंत्र हो जाएगा. उसे कुछ भी नहीं देना पड़ेगा. तुम्हारा दास होने के पहले यदि उसका विवाह नहीं हुआ है तो वो पत्नी के बिना ही स्वतंत्र होकर चला जाएगा. किन्तु दास होने के समय अगर वो व्यक्ति विवाहित होगा तो स्वतंत्र होने के समय वो अपनी पत्नी को अपने साथ ले जाएगा."
अब इसी चैप्टर में आगे क्या लिखा है वो भी जानना आपके लिए बेहद जरूरी है-
"कभी-कभी लोग अपने दास और दासियों को पीटते हैं. यदि पिटाई के बाद दास मर जाए तो हत्यारे को अवश्य दंड दिया जाए. किन्तु अगर दास मरता नहीं है और कुछ दिनों बाद वो स्वस्थ हो जाता है तो उस व्यक्ति को दंड नहीं दिया जाएगा."
खैर ये ओल्ड टेस्टामेंट का वर्जन है. कई बार ये भ्रम पैदा किया जाता है कि न्यू टेस्टामेंट में चीजों को सुधारा गया. अब जरा न्यू टेस्टामेंट दास प्रथा को लेकर क्या कहा गया है ये भी जान लेते हैं-
"लोग जो अंधविश्वासियों के जुए के नीचे दास बने हैं, उन्हें अपने स्वामियों को सम्मान के योग्य समझना चाहिए ताकि जीसस के नाम और हमारे उपदेशों की निंदा ना हो."
जिनके मजहबी ग्रंथों में ईश्वर के आदेश के हवाले से दासता की इजाजत दी गई हो उन्हीं के अनुयायियों से हमारे खास विचारधारा वाले इतिहासकारों ने कितनी धूर्तता के इस प्रथा से मुक्ति की उम्मीद कर ली और जहां वसुधैव कुटुंबकम को धर्म और संस्कृति का प्राण तत्व माना गया उसे कबीलाई, असभ्य और लुटेरा बता दिया गया.
परोपकार आधारित सनातन धर्म की बदनामी की साजिश
सार्वभौमिक सच्चाई ये है कि हमारी संस्कृति में परोपकार को ही पुण्य माना गया है और दूसरों को पीड़ा पहुंचाने को ही पाप बताया गया है. क्या रही है सनातन संस्कृति उसे इस श्लोक के माध्यम से समझिए.
अष्टादश पुराणेषु, व्यासस्य वचनद्वयम् ।
परोपकार: पुण्याय, पापाय परपीडनम् ।।
इसका अर्थ ये है कि अठारहों पुराण और महर्षि व्यास ने अपनी अप्रमेय लेखनी में बस दो ही बातें स्थापित की हैं. 'परोपकार सबसे बड़ा पुण्य है और दूसरों को पीड़ा पहुंचाना ही सबसे बड़ा पाप'. ये पुण्य संदेश हमारी संस्कृति का, सनातम धर्म का सार तत्व है. लेकिन इन आप्त वाक्यों को जानने समझने के लिए तंग विचारधारा के कुत्सित बंधन से मुक्त होना पड़ेगा.
इतिहास के पुनर्लेखन की जरुरत
इसके लिए स्वतंत्र नजरिया विकसित करने की बेहद जरुरत है. क्योंकि वामपंथी इतिहासकारों ने जो लिखा है. वह झूठ के अतिरिक्त कुछ नहीं. उनको सनातन संस्कृति की पावन धरोहर से पैदाइशी बैर है. अफसोस कि विध्वंसक विचारधारा की नामुराद चाशनी में पगे लेखनी को ही हम अपने देश का प्रामाणिक इतिहास मान बैठे हैं.
कितना अद्भुत और अप्रतिम है हमारा अतीत. लेकिन कमजर्फ विचारधारा की कलम ने उसके बारे में उकेरा क्या है? आदिकाल से ही भारत ज्ञान, विज्ञान, दया, करुणा, प्रेम और संवेदना की भूमि रही है. यहां पर परोपकार, त्याग और वैराग्य को सर्वोच्च प्रतिष्ठा दी गई है. लेकिन हमारे एजेंडाधारी इतिहासकारों ने उसी गौरवशाली अतीत को बेपरवाह, बेखौफ होकर ऐसा धोया-पोंछा कि हम अपने इतिहास पर गर्व करना भूल गए.
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