Parakram Diwas : नेहरू- नेताजी और निधन का रहस्य, क्या है तीनों का कनेक्शन?

पीएम रहे नेहरू के स्टेनोग्राफर श्यामलाल जैन ने खोसला आयोग के सामने गवाही दी थी कि 1945 में नेहरू ने उनसे ब्रिटेन के तत्कालीन पीएम क्लेमेंट एटली के नाम एक पत्र टाइप करवाया जिसमें लिखा था आपका वॉर क्रिमिनल रूस के कब्जे में है. 

Written by - Ravi Ranjan Jha | Last Updated : Jan 24, 2021, 06:07 PM IST
  • नेताजी की हैंडराइटिंग से मेल खाती थी गुमनामी बाबा की हैंडराइटिंग
  • नेताजी के परिवार की IB से जासूसी क्यों कराते थे पीएम नेहरू?
Parakram Diwas : नेहरू- नेताजी और निधन का रहस्य, क्या है तीनों का कनेक्शन?

नई दिल्लीः 1947 में आजादी मिलने के बाद तब की नेहरू सरकार पर नेताजी की मौत के रहस्य से पर्दा उठाने का भारी दबाव था. वजह थी नेताजी की बेहिसाब लोकप्रियता. बेबस पंडित नेहरू ने 1956 में शाहनवाज कमेटी का गठन किया. जिस शाहनवाज खान की अगुवाई में कमेटी गठित की गई.  वह पहले आजाद हिंद फौज के ओहदेदार सैनिक थे. नेताजी ने सिंगापुर में जापानियों की कैद में पड़े शाहनवाज खान को 1943 में रिहा करवाकर आईएनए में बड़ा पद दिया था. 

शाहनवाज कमेटी की रिपोर्ट पर नहीं हुआ भरोसा

कहते हैं कि नेताजी (Subhas Chandra Bose) की मौत की खबर के बाद शाहनवाज खान ने निष्ठा बदल ली और कांग्रेस में शामिल हो गए. मेरठ से कांग्रेस (Congress) के टिकट पर चुनाव जीतकर 4 बार लोकसभा पहुंचे और नेहरू की सरकार में मंत्री भी रहे. उन्हीं शाहनवाज खान ने जांच कर बताया कि नेताजी की मौत विमान दुर्घटना में हो गई थी.

हिन्दुस्तान (India) की जनता शाहनवाज कमेटी की रिपोर्ट पर भरोसा करने को तैयार नहीं हुई. इंदिरा गांधी जब पीएम बनी तो उनपर भी वही दबाव था. इंदिरा गांधी ने 1970 में उस जस्टिस जीडी खोसला को जांच का जिम्मा सौंपा जिन्होंने इंदिरा गांधी की ही जीवनी लिखी. जस्टिस खोसला ने भी विमान दुर्घटना में बोस की मौत की थ्यौरी को सही बताया. वैसे 1978 में तबके पीएम मुरारजी देसाई (Morarji Desai) ने शाहनवाज कमेटी और जीडी खोसला कमीशन की थ्यौरी को खारिज कर दिया.

पीएम नेहरू ने ब्रिटेन को भेजा था पत्र

नेताजी की मौत की रहस्यमय गुत्थी को सुलझाने के लिए 1999 में जस्टिस मनोज मुखर्जी (Justice Manoj Mukherjee) कमीशन का गठन तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने किया. जस्टिस मुखर्जी ने विमान हादसे की थ्यौरी को पूरी तरह खारिज कर दिया. इस रिपोर्ट में एक बेहद खनसनीखेज गवाही दर्ज हुई है. हैंडराइटिंग एक्सपर्ट डी लाल कपूर की गवाही, जिन्होंने मुखर्जी कमीशन के सामने कहा कि फैजाबाद में जो गुमनामी बाबा रहते थे उनकी हैंडराइटिंग और नेताजी की हैंडराइटिंग पूरी तरह मेल खाती है. 


रहस्य से शायद पर्दा उठ जाता लेकिन 2005 में जबतक मुखर्जी अपनी रिपोर्ट पेश करते केंद्र में यूपीए की सरकार बन चुकी थी. अब बड़ा सवाल ये है कि अगर विमान हादसे में नेताजी की मौत नहीं हुई तो कैसे हुई. यहां एक बात बेहद गौर करने वाली है. नेहरू के स्टेनोग्राफर श्यामलाल जैन ने खोसला आयोग के सामने गवाही दी थी कि 1945 में नेहरू ने उनसे ब्रिटेन के तत्कालीन पीएम क्लेमेंट एटली के नाम एक पत्र टाइप करवाया जिसमें लिखा था आपका वॉर क्रिमिनल रूस के कब्जे में है. 

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क्या नेहरू नेताजी के परिवार की जासूसी कराते थे

एक और सनसनीखेज सच ये है कि नेताजी ने अपने भतीजे अमिय नाथ बोस को 1939 में भेजे पत्र में लिखा था, मेरा किसी ने भी उतना नुकसान नहीं किया जितना जवाहरलाल नेहरू ने किया. इतना ही सरकार ने नेताजी से जुड़ी जो फाइलें डिक्लासिफाई की हैं उनसे साफ हो गया है कि नेहरू, नेताजी के परिवार की जासूसी आईबी से करवाते थे. सवाल ये है कि जो इंसान मर गया है उसके परिवार की जासूसी आईबी क्यों करती थी.

गुमनामी बाबा और नेताजी का कनेक्शन?

16 सिंतबर 1985 को फैजाबाद में रहने वाले गुमनामी बाबा की मौत के बाद उनके कमरे से बहुत सारी वो चीजें बरामद हुईं जिनका इस्तेमाल नेताजी करते थे.

सिगार और रोलेक्स घड़ी, बोस के 67वें जन्मदिन पर जारी हुए स्टैंप, जर्मन फौजी दूरबीन, जर्मन टाइप राइटर, महंगा केतली सेट, बांग्ला, अंग्रेजी और जर्मन की किताबें. इन सब के अलावा नेताजी और उनके परिवार की ढेर सारी तस्वीरें, कई नामचीन हस्तियों की ओर से गुमनामी बाबा को लिखे खत. सवाल ये है कि एक आध्यात्मिक बाबा को इन सब चीजों से क्या दरकार. 

गुमनामी बाबा की हैरतअंगेज समाधि

सबसे हैरान करने वाला सच ये है कि अयोध्या में सरयू के तट पर गुमनामी बाबा की समाधि है जिसपर जन्म की तारीख लिखी है 23  जनवरी, जो नेताजी की जन्मतिथि है.  इसी समाधि पर मृत्यु की तारीख के सामने तीन सवालिया निशान लगे हैं. ये तीन सवाल सुभाष चंद्र बोस और गुमनामी बाबा के कनेक्शन पर हजारों सवाल खड़ा करते हैं. अफसोस ये है कि नेताजी से बेपनाह मोहब्बत करने वाले देशवासियों को 36 सालों से इन सवालों के जवाब का इंतजार है.

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