नई दिल्ली: 12वीं शताब्दी के दौर में तुर्क जिहादी, भारत पर हमला करने लगे थे. उन दिनों जालौर में महाराजा सामंत सिंह का शासन था. उन्हीं दिनों उनके महल में एक वीर बालक का जन्म हुआ. जिसका नाम कान्हड़देव रखा गया. बचपन से ही बालक कान्हड़देव में वीरता के लक्षण दिखने लगे थे. जो आगे चलकर जालौर का राजा बन गया
राजा कान्हड़देव का कुशल नेतृत्व
एक तरफ दुश्मन लगातार छोटे-बड़े राज्यों पर हमला कर रहे थे तो दूसरी तरफ राजा कान्हड़देव के कुशल नेतृत्व में जालौर की सीमाओँ का विस्तार हो रहा था. कान्हड़देव, स्वर्णगिरी दुर्ग से अपने साम्राज्य की देखरेख करने लगे थे. 1298 ईस्वी के दौर में अल्लाउद्दीन खिलजी ने गुजरात में आक्रमण कर दिया था. खिलजी की सेना लूटपाट, मारकाट करती हुई आगे बढ़ रही थी. लुटेरे अल्लाउद्दीन खिलजी और उसकी सेना ने सोमनाथ मंदिर और दूसरे कई मंदिरों को मंदिरों को नष्ट कर उनकी सम्पत्ति लूट ली थी.
गुजरात के शहरों को तबाह करने के बाद खिलजी की सेना ने 1299 ईस्वी में राजपूताने क्षेत्र में घुसने लगी. अलाउद्दीन की सेना ने जालौर के आस पास के कई राजाओं को परास्त कर दिया. जिसके बाद अब खिलजी का अगला पड़ाव जालौर था.
जब खिलजी ने तोड़ दिया शिवलिंग
जालौर के दूतों ने राजा कान्हड़देव को खबर दी थी कि खिलजी ने महादेव का शिवलिंग तोड़ दी है और कई महिलाओं और बच्चों को बंदी बना लिया है. इसकी जानकारी मिलते ही राजा ने प्रतिज्ञा ली कि वो हर कीमत पर कैदियों को आजाद कराकर मंदिर का दोबारा निर्माण कराएंगे. उन्होंने खिलजी से युद्ध के लिए योद्धाओं और सेना को तैयार किया. अपनी सेना को दो भागों में बाटकर रणनीति बनाई और आधी रात को 9 कोस दूर साकरना गांव के पास जा पहुंची. राजा कान्हड़देव के नेतृत्व में सुबह, सूरज उगते ही 10 गुनी बड़ी सेना पर हमला बोल दिया. अचानक हुए हमले से तुर्क की फौज संभल नहीं पाई और मैदान छोड़कर भाग गई. इस युद्ध में अल्लाउद्दीन का भतीजा मारा गया था.
कान्हड़देव ने अपना वचन पूरा किया, औरतो-बच्चों को रिहा कराया. साथ ही लूटी हुई मूर्तियों को सोमनाथ मंदिर वापस भेजवा दिया था.
महाराजा कान्हड़देव के पुत्र राजकुमार वीरमदेव भी थे. जो बेहद सुंदर और वीर योद्धा थे. कहा जाता है कि राजकुमार वीरमदेव की सुंदरता की चर्चा सुनकर अलाउद्दीन की बेटी फिरोजा प्रभावित हुई और बेटी की जिद पर अलाउद्दीन ने राजकुमार वीरमदेव से अपनी बेटी के निकाह को प्रस्ताव राजा कान्हड़देव के पास भेजा. जिसे राजा कान्हड़देव ने ठुकरा दिया. इस अपमान से आग-बबूला होकर बौखलाए ने अपने सेनापति नहर मलिक को सेना के साथ जालोर पर आक्रमण करने भेजा. लेकिन इस बार भी खिलजी की सेना को पराजित होना पड़ा और सेनापति नहर मलिक युद्ध में मारा गया.
खिलजी ने जालौर पर बोला हमला
बार-बार हार का मुंह देखने वाले खिलजी ने एक बार फिर विशाल फ़ौज के साथ जालौर पर हमला बोला. इस बार कई महिनों तक युद्ध चला और अलाउद्दीन की फौज ने किले को चारों तरफ से घेर लिया था. हजारों राजपूत अपनी आखिरी सांस तक लड़ते रहे. राजा कान्हड़देव ने खिलजी के 50 योद्धाओं को मार गिराया और आखिरकार खुद वीरगति को प्राप्त हो गए. अब युद्ध का सारा भार पुत्र राजकुमार वीरमदेव और भाई मालदेव पर आ गया था. राजकुमार वीरमदेव अखण्ड ब्रह्मचारी थे. वे तीन दिन तक युद्ध लड़ते रहे. कहा जाता है कि वीर राजकुमार ने इस युद्ध में 40 तलवार तोड़ी.
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खिलजी के सेनापति ने राजकुमार के सामने फिर से शादी का प्रस्ताव रखा लेकिन राजकुमार वीरम ने इंकार करते हुए कहा, ''जैसल घर भाटी लजै, कुल लाजै चौहाण। हुं किम परणु तुरकड़ी, पछम न उगै भांण.'' इसका अर्थ है कि ‘मामा जैसलमेर के भाटी और मेरा कुल चौहान दोनों लज्जित होगें. मैं इस लड़की से विवाह उसी प्रकार नहीं कर सकता जिस प्रकार सूर्य पश्चिम से नहीं उग सकता.’
आखिरकार पिता के बाद राजकुमार वीरमदेव भी रणक्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हो गए. लेकिन आत्मसमर्पण नहीं किया. इतिहास में राजा कान्हड़देव को उनकी वीरता के लिए याद किया जाता है.
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