नई दिल्लीः इधर कैलेंडर में जनवरी को विदा कर फरवरी ने एंट्री ली तो हिंदी महीने ने माघ का स्वागत किया. आजकल के वातावरण और पर्यावरण पर इसका असर दिखना शुरू हो गया है. फरवरी और माघ दोनों का संबंध वसंत ऋतु से है. इस ऋतु के आगमन के साथ ही जिंदगी में बहार आ जाती है.
शीत ऋतु के कारण पतझड़ में जो पत्तियां झड़ गई थीं वसंत में उनकी जगह नई कोपलें खिलने लगती हैं. माघ माह के दौरान ही शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि वसंत पंचमी का उत्सव मनाया जाता है. मां सरस्वती के अवतरण दिवस के कारण इसे ज्ञान दिवस भी कहते हैं. कहते हैं कि माघ मास में ही संसार को रस, सुर, गुण, नाद और ज्ञान की अनुमोल निधियां मिली थीं. इसलिए आध्यात्म की दृष्टि से भी वसंत पंचमी का उत्सव बहुत महत्वपूर्ण है.
देवी सरस्वती के कारण हुई नाद की उत्तपत्ति
कहते हैं कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ब्रह्मदेव ने सृष्टि की रचना की, लेकिन वह प्रसन्न नहीं थे. सृष्टि मौन थी और ब्रह्मा रिक्तता का अनुभव कर रहे थे. इस रिक्तता की प्रेरणा से उन्होंने स्त्री देवी की कल्पना की और उनका सृजन किया. जब देवी ने अपनी वीणा की तान छेड़ी तो झरनों में शोर आया. नदियां कल-कल करने लगीं.
पक्षी चहचहाने लगे. यानी सृष्टि रस से भर गई. यह देख ब्रह्मा भी प्रसन्न हुए. चूंकि देवी के आने से सृष्टि से सरस हुई थी, इसलिए इन्हें सरस्वती का नाम दिया गया. शब्द और नाद की उत्पत्ति को स्वर देने के कारण वह वाणी की देवी भी कहलाईं और श्रुतियों के संकलन के कारण वेदों का ज्ञान भी उन्हीं से प्राप्त हुआ.
सृष्टि को मिला सरसता का वरदान
एक कथा यह भी कही जाती है कि सृष्टि देखने में तो बहुत सुंदर थी, लेकिन इसमें किसी तरह की कोई धुन और शब्द न होने से ब्रह्म देव बहुत निराश थी. इसी निराशा में उन्होंने अचानक ही देवी सरस्वती की ओर देखा. परमपिता के विषाद से भरे चेहरे को देखकर देवी थोड़ी घबराईं और इस असहजता में ही उनका हाथ वीणा के तारों से टकरा गया.
यह ध्वनि सुनते ही श्रीब्रह्मा खिल उठे. उन्हें समझ आ गया था कि सृष्टि में क्या कम था? इसके बाद ही सृष्टि को सरसता का वरदान मिला और वह नव रसों से युक्त हुई.
ऐसे करें मां सरस्वती की पूजा
देवी मां सरलता की देवी हैं. इसलिए मां सरस्वती की पूजा बेहद सरल है. कुछ खास बातों का ध्यान रखकर आप अपनी पूजा को सफल बना सकते हैं. देवी मां को पीला रंग प्रिय है. यह चेतना का प्रतीक है. मां सरस्वती के कारण सृष्टि चैतन्य हो उठी थी. इसलिए आध्यात्म में इसे चेतना का दिन भी कहते हैं. मां सरस्वती की पूजा इन खास पद्धतियों से करें.
- मां सरस्वती की प्रतिमा या मूर्ति को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें.
- अब रोली, चंदन, हल्दी, केसर, चंदन, पीले या सफेद रंग के पुष्प, पीली मिठाई और अक्षत अर्पित करें.
- अब पूजा के स्थान पर वाद्य यंत्र और किताबों को अर्पित करें.
- मां सरस्वती की वंदना का पाठ करें.
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