नई दिल्लीः सभ्यता के जन्म के साथ ही दो शब्दों का आविर्भाव भी हुआ. शक्ति और भय. जब शक्ति अथवा बल का अस्तित्व आया तो उसका ही साया बनकर भय ने भी जन्म लिया. जब शक्ति सब कुछ अपने नियंत्रण में लेने लगे और प्रकृति के नियम के नियंत्रण से बाहर हो जाए तो सभ्यता का भय चरम पर हो जाता है.
इस भय को दूर करने के लिए भैरव अस्तित्व लेते हैं. भैरव के अस्तित्व के इस दिन विशेष को शास्त्रानुसार भैरव अष्टमी कहते हैं. अगहन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी भैरव अष्टमी की नियत तिथि है.
क्या हैं भैरव
भैरव शब्द के शाब्दिक अर्थ को देखें तो यह भय और रव का संयुक्त प्रयोग है. भय यानी कि डर और रव अर्थात हरण करने वाला. भय का हरण करने वाला भैरव है. इस तरह कालभैरव का अर्थ हुआ काल से होने वाले भय को हरण करने वाला कालभैरव है. महादेव शिव की तामसी शक्ति के पुंज से कालभैरव की उत्तपत्ति हुई. शिवपुराण इसकी व्याख्या करता है.
ऐसे हुई भैरव की उत्पत्ति
पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था, यहां तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा. तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई. भैरव के कई स्वरूप हैं, जिस प्रकार वैष्णव मत के अनुसार श्रीहरि ने अलग-अलग अवतार लिए हैं, ठीक इसी तरह शैव मतानुसार महादेव के भैरव अवतार हुए हैं. महाभैरव रुद्र के शरीर से उत्पन्न प्रथम भैरव हैं.
देवी सती और शिव के अपमान के बाद महादेव की क्रोधाग्नि और शरीर के कंपन से कई भैरव प्रकट हुए. महाभैरव इन सभी के प्रतिनिधि हैं, जिन्हें शिव ने अपनी पुरी, काशी का नगरपाल नियुक्त कर दिया. संसार में उपस्थित सभी शक्तिपीठ भैरव के संरक्षण में सुरक्षित हैं. इसलिए शक्तिपीठ के निकट भैरव का स्थान भी होता है. जिनके दर्शनों से ही शक्तिपीठ के दर्शन संपूर्ण माने जाते हैं.
महादेव के रौद्ररूप हैं कालभैरव
कालभैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना जाता है. मान्यता है कि काल भैरव की पूजा से रोगों से मुक्ति व दुखों से निजात मिलती है. इसके अलावा इनकी पूजा करने से मृत्यु का भय दूर होता है और कष्टों से मुक्ति मिलती है. उपासना की दृष्टि से भैरव तमस देवता हैं.
उनको बलि दी जाती है और जहां कहीं यह प्रथा समाप्त हो गयी है वहां भी एक साथ बड़ी संख्या में नारियल फोड़ कर इस कृत्य को एक प्रतीक के रूप में सम्पन्न किया जाता है. यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि भैरव उग्र कापालिक सम्प्रदाय के देवता हैं और तंत्रशास्त्र में उनकी आराधना की ही प्रधानता है. तंत्र साधक का मुख्य लक्ष्य भैरव भाव से अपने को आत्मसात करना होता है.
शक्ति व रक्षा के प्रतीक हैं भैरव
भैरव शक्ति व रक्षा के प्रतीक हैं. जब समाज में कुरीतियां और बुराई व्याप्त हो जाए और सदाचार का हरण होने लगे तब भैरव का आगमन होता है. कहते हैं कि महाभारत युद्ध में भी प्रतीक रूप में भैरव ने ही समस्त बुराइयों का विनाश किया था.
अर्जुन की ध्वजा पर रुद्रावतार हनुमान जी विराजित थे और समस्त भैरवों का नेतृत्व कर रहे थे. वीरता के सही अर्थ को समझने और आत्मसात करने का दिन है भैरव अष्टमी. भारतीय मनीषा इसके लिए अनुशंसा की पात्र है.
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