गुजरात की बहुचरा माता का मूल संस्कृत नाम बहुचर्वा है. वह कुक्कुट यानी मुर्गे पर सवार होती हैं.
माता की उपासना से जाग्रत होती है कुंडलिनी शक्ति
बहुचर्वा का संस्कृत मूल अर्थ दो फणों वाली नागिन है. जो कि कुंडलिनी जागरण से संबंधित है. मानव शरीर में स्थित कुंडलिनी नागिन के रुप में कुंडली बांध कर बैठी होती है. जिसका एक मुख मूलाधार में होता है जबकि दूसरा मुख मस्तिष्क में स्थित सहस्त्रार चक्र तक जाता है. मां बहुचर्वा इसी कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है. उनकी कृपा से ही कुंडलिनी का जागरण होता है और एक सामान्य मनुष्य सिद्ध बन जाता है.
मुस्लिम फौज का किया सर्वनाश
माता के मंदिर प्रांगण में कई मुर्गे बेखौफ घूमते देखे जा सकते हैं. इन मुर्गों को कोई नुकसान पहुंचाने का साहस नहीं करता. इन मुर्गों से संबंधित एक चमत्कारी कथा भी प्रसिद्ध है. मध्य काल में धर्मांध इस्लामी बादशाह अल्लाउद्दीन द्वितीय ने जब पाटण को जीत लिया तब उसने बहुचरा माता के प्रसिद्ध मंदिर को तोड़ने का फैसला किया.
जब धर्मांध मुस्लिम सेना माता के मंदिर को तोड़ने पहुंची तो उन्होंने देखा कि वहां बहुच से मुर्गे घूम रहे थे. मुस्लिम सिपाहियों ने उन मुर्गों को पकड़कर खा लिया. लेकिन एक मुर्गा बचा रह गया और वह भाग खड़ा हुआ. रात में सभी कट्टरपंथी पेट पूजा करने के बाद सो गए. उन्होंने योजना बनाई कि सुबह मंदिर तोड़ दिया जाएगा.
लेकिन जब सुबह जब सुबह हुई तो बचे हुए एक मुर्गे ने बांग देनी शुरु कर दी. जिसके बाद सैनिकों के पेट के अंदर बैठे मुर्गे भी बांग देने लगे और पेट फाड़-फाड़ कर बाहर आने लगे. ये देखकर मुस्लिम फौज डर गई. खुद अल्लाउद्दीन के होश उड़ गए. वह भाग खड़ा हुआ. उसके पीछे पीछे उसके सभी सिपाही भी भाग निकले.
माता का यह मंदिर आज भी वैसे का वैसा ही शान से खड़ा है.
माता की कृपा से भरती है सूनी गोद
मां बहुचरा की उपासना संतान की प्राप्ति के लिए की जाती है. माता के आशीर्वाद के निस्संतान लोगों की गोद भर जाती है. जिसके बाद यहां बच्चों के मुंडन के केश छोड़े जाते हैं और माता के सम्मान में उनकी सवारी कुक्कुट यानी मुर्गे छोड़े जाते हैं.
संतान देने वाली माता बहुचरा की एक प्रसिद्ध कथा उस प्रकार है. गुजरात के एक नि:संतान राजा ने संतान प्राप्ति के लिए बहुचरा माता की आराधना की. जिसके बाद मां ने प्रसन्न होकर उन्हें पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया. राजा के घर पुत्र हुआ, लेकिन वह नपुंसक निकला.
राजा इससे बेहद निराश हुआ. लेकिन उसके बाद एक दिन बहुचरा माता उसके सपने में आईं और राजकुमार को गुप्तांग समर्पित करके मुक्ति के मार्ग में आगे बढ़ने का आदेश दिया. राजकुमार ने ऐसा ही किया और देवी का उपासक बन गया. बाद में माता की कृपा से उसके पिता को दूसरा पुत्र प्राप्त हुआ जिससे उनकी वंश वृद्धि हुई. इस घटना के बाद से ही सभी किन्नरों ने बहुचरा माता को अपनी कुलदेवी मानकर उनकी उपासना शुरू कर दी.
बहुचरा मंदिर जिला मेहसाणा (गुजरात) में स्थित है. यह अहमदाबाद से 110 किलोमीटर और महिसाना से 35 कि.मी. की दूरी पर स्थित है.
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