नई दिल्लीः हरि अनंत हरि कथा अनंता. गोस्वामी तुलसीदास ने यह पंक्ति लिखकर लीलाधर की लीला का एक पंक्ति में समर्पित कर दिया, क्योंकि वह जानते थे कि अनंत श्री हरि की लीला का वर्णन तीनों लोकों में कोई कर ही नहीं सकता. फिर भी भक्त हृदय का समर्पण बड़े से बड़े पहाड़ को झुका देता है. ऐसे ही दक्षिण के एक प्रसिद्ध भक्त कवि श्रीहरि के दो अवतारों की कथा बड़े ही संक्षेप में एक साथ कह डाली है. उनकी कृति अद्भुत और आश्चर्य जनक है.
राघवयादवीयम है इस कृति का नाम
इस अद्भुत कृति का नाम राघवयादवीयम है. इसे लिखने वाले महान प्राचीन कवि श्रीवेंकटाध्वरि हैं. इस कृति में कविवर ने श्रीराम और श्रीकृष्ण दोनों के ही जीवन वृत्तांत का अद्भुत वर्णन किया है. श्रीवेंकटाध्वरि का जन्म कांचीपुरम के एक गांव अरसनीपलै में हुआ था.
इन्होंने कुल 14 रचनाएं लिखी हैं जिनमें से "राघवयादवीयम्" और "लक्ष्मीसहस्त्रम्" सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं. कहते हैं कि कवि जन्मांध थे, लेकिन विलक्षण काव्य प्रतिभा के धनी थे.
ऐसे मिली लिखने की प्रेरणा
श्रीवेंकटाध्वरि श्रीवेदांत देशिक के शिष्य थे. वेदांत देशिक ने ही श्री रामनुजमाचार्य द्वारा स्थापित रामानुज सम्प्रदाय को वेडगलई धारा के जरिए आगे बढ़ाया. जन्मांध होने के बावजूद वेंकट कवि कुशाग्र बुद्धि के धनी थे. वेदान्त देशिक ने "पादुका सहस्रम्" नामक रचना की थी.
यह चित्रकाव्य कृति प्राचीन साहित्य की अनुपम देन है. वेंकट कवि ने इनका शिष्यत्व ग्रहण किया और काव्यशास्त्र में महारत हासिल की. कवि ने 14 ग्रन्थों की रचना की. इसमें भी 'लक्ष्मीसहस्रम्' सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. इस काव्य ग्रंथ के भक्तिपूर्ण गायन से उन्हें नेत्र ज्योति मिल गई थी. इसके बाद ही उन्होंने राघवयादवीयम कृति की रचना की.
इसलिए विशेष है यह काव्यकृति
राघवयादवीयम कृति में 30 श्लोकों लिखे हैं. इन श्लोकों आप सीधा पढ़ते हैं तो राम कथा पढ़ी जाएगी और यदि इसे उल्टा पढ़ते हैं तो श्रीकृष्ण कथा सामने आएगी. कृति के नाम भी यह स्पष्ट होता है. राघव यानी राम, यादव यानी कृष्ण का चरित्र गाने वाली है
राघवयादवीयम. इस कृति को ‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है. इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएं तो इसमें 60 श्लोक हो जाते हैं. उदाहरण के तौर पर पुस्तक का पहला श्लोक अर्थ सहित देखिए.
महाभारत की वह कथा जो जीवन में बुजुर्गों के आशीर्वाद का महत्व बताती है
वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे।।
मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं जिनके ह्रदय में सीताजी रहती हैं तथा जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्रि की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा वनवास पूरा कर अयोध्या वापस लौटे. अब इसी के शब्दों को अक्षरशः उल्टा पढ़ते हुए देखें.
विलोम श्लोक
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ।।
विलोम अर्थ
मैं रुक्मिणी तथा गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रणाम करता हू जो सदा ही मां लक्ष्मी के साथ विराजमान हैं तथा जिनकी शोभा समस्त रत्नों की शोभा को हर लेती है. यह काव्य कृति बताती है कि भारतीय सनातनी परंपरा हमेशा से विश्व में अग्रणी रही है.
अक्षय पुण्यों का फल देती है वैशाख अमावस्या, इसी दिन हुई थी श्रीराम के युग की शुरुआत